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खानदान 119

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जैसे ही रमेश के मुहँ से यह बात निकली थी.. कि रामलालजी को विनीत ने मार डाला.. दर्शनाजी एकदम चुप-चाप बैठीं रहीं थीं। बात रंजना से हटकर अब बटवारे पर आ गई थी..  रमेश पुलिस वालों के सामने अपनी पर आने ही वाला था.. कि एकबार फ़िर विनीत ने बात का रुख घुमा दिया था। बात हिस्से की चलने लगी थी.. हिस्से को पकड़ते हुए.. ही पुलिस वाले झट्ट से रमेश से प्रहलाद को देखते हुए, बोल पड़े थे..

” अरे! अब तेरा क्या है! हक तो इसका बनता है!”।

पुलिस वालों का हिस्से को लेकर इशारा प्रहलाद की तरफ़ था.. जिसे सुनते ही विनीत का चेहरा अजीब सा हो गया था.. सुनीता ने यह बात बख़ूबी नोट कर देखी थी।

” भाई! आराम से रह! भगवान का दिया तेरे घर मैं सबकुछ है.. लोग तो दो-दो हज़ार की नौकरी के पीछे भागते फिरते हैं.. तेरे से लगी लगाई फैक्ट्री में काम नहीं बन रहा..!!”

इतना समझाकर रमेश की पीठ पर ज़ोर से हाथ मारकर वर्दी वाले अपनी राह हो लिए थे.. पर फिर पल भर को थम कर बोले थे..

” और हाँ! मैडम..! जनाब को लेकर पहले भी आपने कंप्लेंट कर रखी है.. दोबारा यदि कुछ होता है.. तो थाने में आकर लिखित में आप अपनी शिकायत दर्ज कर देना! घर से ही उठा ले जाएंगें!”।

और पुलिस की गाड़ी घर के आगे से तेजी से निकल गई थी। विनीत और दर्शनाजी अभी रमा सहित वहीं बैठे थे।

” मन्ने बापू मार दिया..!! हैं..!!”।

विनीत ने दर्शनाजी की ओर देखते हुए, कहा था.. कि क्या उनको भी ऐसा ही लगता है.. कि रामलालजी को उसनें जान-बूझकर मारा है! जवाब में दर्शनाजी एकदम चुप बैठीं थीं.. उनके पास इस बात की कोई भी सफ़ाई नहीं थी।

” ये इस बात पर बिल्कुल भी नहीं बोलेंगी.. तुम मत परेशान हुआ करो..!!”।

रमा विनीत से बोली थी।

पुलिस वाले भी निकल गए थे.. और सभी अपने-अपने कमरों में चले गए थे.. कमरे में पहुँचकर और इतने नाटक के बाद भी रमेश बाबू के वही तेवर और अंदाज़ थे। धमकी और नसीहत का बन्दे पर कोई भी फ़र्क नहीं था.. फ़िर वही चिल्लाना और बदतमीज़ी शुरू थी।

पूरा इलाज करा कर छोड़ना था.. खाली कैसे छोड़ दिया..  पैसे और हिस्से की चकरी में कैसे क्या होगा! जानने के लिये पढ़िये… खानदान।

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