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Kaala Sooraj

मैं चौंक पड़ी थी !

मैं पहाड़ के नीचे नहीं ……एक प्रेमी के नीचे आ गई थी !

वो अब मेरा मनभावन पुरुष था ….मेरा इच्छित प्रेमी था ! वह मेरा बहुत-बहुत अपना था ….मेरा सदाबहार सावन था …रिम-झिम ….रिम-झिम वरषता मेरा मेघ था ….और था मेरा एक महकता उपवन !

“उ-ई , माँ ….!” मैं चीखी थी . लेकिन मेरी ये चीख -चीख नहीं थी -मेरा प्रेम-गीत थी !

उस ने मुझे दबाया था ….मसोस था ! तब ….हाँ तभी मैंने महसूसा  था …कि उस के बदन में अपार शक्ति का श्रोत था -जो मुझ से सब कुछ लेलेना चाहता था ….और मुझे अपने आप में समो लेना चाहता था .

“क्यों रोकूँ , उसे ….?” मैंने ये प्रश्न स्वयं से पूछा था . “पुरुष है ….अपना हक़ मांग रहा है …..! ले रहा है …तो कुछ दे भी तो रहा है ….! फिर क्यों रोकूं , उसे ….?”

“हाउ ….स्वीट ……!!” वह फूसफुसा रहा था .

“ओह ….माई-माई ………” मैं भी तो कहना चाह रही थी ….पर कह न पा रही थी .

अब वह मेरी आँखों में देख रहा था . फिर उन्हें चूम रहा था ….और प्यार कर रहा था !

“पुकारती …तुम्हारी इन आँखों में ….न जाने कैसा आकर्षण है , मैना !” अब वह विहंस कर बता रहा था . “क-स-म ! मन तो है कि ….इन में डूब मरू !!” उस ने अब की बार आह भरी थी

उस की बात झूठ नहीं थी . वास्तव में ही मेरी आँखें बे-जोड़ थीं ! मैंने लोगों को इन आँखों पर निछावर होते देखा था . लेकिन आज तो उस ने मेरी इन सुंदर और मोहक आँखों को अपने उत्तप्त होंठो से चुंबन ले-लेकर – मुझे बेहोश कर दिया था ….और मेरी इन आँखों को जैसे अमर बना दिया था !

“छोड़ोगे …..नहीं …..?” मैंने विनम्र आग्रह किया था – यों ही !

“नहीं …..!!” वह साफ़ नांट  गया था . “निचोनूगा  ….!” उस ने कसाव बढ़ा दिया था . “पीऊंगा ….खाऊंगा ….!!” वह मुझे फिर से खोजने-टटोलने लगा था .

“हे, भगवान ! कैसे अनूठे पल थे – ये …..? कैसा विचित्र संयोग था ….! कैसा …भोग ….और कैसा …..”

“ओपन …….!!” उस का आदेश आया था .

“मैड …..?” मैंने ललकारा था , उसे . “नो ….वे …., मैन …..!!”

“गेट ….वे ….टू ……हैवन ….!!” उस ने हँसते हुए कहा था और मुझ से उलझ गया था . “लेट्स गो …..?’ उस ने मांग की थी . .

अब क्या करूं -समझ न आ रहा था . मेरा उस पर वश भी क्या था ? उस ने मुझे बंधी मुश्क से अभी तक आज़ाद ही न किया था . मैं पूरी तरह से उस के आगोश में समाई हुई थी . मेरे कोमल वदन को उस ने अपने काठ जैसे कठोर शरीर के साथ चिपका लिया था . लग ही रहा था कि हम दोनों एक थे ….एक दूजे के लिए थे ….समर्पित थे …पूरी तरह से !!

“…………………….” उस ने मेरे कान में कहा था . ये भी ‘डर्टी डायलोग ‘ था . लेकिन था – बहुत-बहुत मादक……भ्रामक ….और इस के शब्दों ने मुझे खोल-सा दिया था . कैसा जादू था उस की मंत्रपूत वाणी में -मैं हैरान थी !

“कम …..विद मी , मौना !” इस बार उस का सभ्य आग्रह था . “चलते हैं …..सैर पर …..!” उस ने मुझे मनाया था . “मैं तुम्हें जन्नत के उस पार ले जाऊँगा ….जहाँ मैं और तुम …आपा ही भूल जाएंगे !” वह हंस पड़ा था . “मैं और मेरी मौना ….एक होंगे ….”

“सच्च ……?” मैंने इस बार आल्हादित हो प्रश्न किया था .

झूट क्यों बोलूँ ….अब तो मैं भी उस के ही साथ ….उस आकांक्षित सैर पर जाने के लिए तैयार थी …..नहीं,नहीं ….आमादा थी ….आतुर थी ! मेरी जिन्दगी में आया यही पहला पुरुष तो था ….जिस ने मुझे पुकारा था …बुलाया था ….और साथ-साथ आने को कहा था ! हाँ,हाँ ! मेरा यही पुरुष तो था ….जिसे मैं अपना कह सकती थी ….! बाकी तो मेरा तो यह ठिकाना था …मेरी ये भोग शाला थी …मेरा तो ये धंधा था ….जहाँ न जाने कितने लोग आते-जाते थे …और न जाने कितने मेरी लात खा कर लौट जाते थे ….!!

आज तक ….अभी तक ….इस पल के पहले तक ….मुझे इतना कोई भी पुरुष न भाया था …..और न ही कोई मेरे इतना नज़दीक आया था ….!!

ये मेरा मनमीत था ….मुझे पुकारता पपीहा था ….मुझे आवाज़ देता …मेरा ही आवारा बादल था ….और था ये मेरा कर्णधार -जिसे अपनाने के लिए मैं अपना भला -बुरा सब त्यागने के लिए तैयार थी !!

“मौना …..डार्लिंग ….!!” उस की ये प्रेम-पगी पुकार सुन – मैं चौंक पड़ी थी !

……………………………

क्रमश:-

श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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