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Kaala Sooraj

मैं उस का हुकुम मोड़ न पाई थी !!

कहानी , दूसरी किश्त :-

“…………………” उस ने मेरे कान में फुस-फुस आवाज़ में कहा था .

“क्या बोला ….?” मैंने तड़क कर प्रश्न किया था .

“डर्टी …डायलाग ….!” उस ने जोरों से हँसते हुए कहा था . “तुम्हारे हुश्न पर फूल चड़ाए हैं मैंने , मेरी मलिका !” अब वह मेंरे समीप था ….बहुत समीप . “कुछ कहेंगी …?” उस का मधुर आग्रह था .

उसे उम्मीद थी कि मैं भी उसी की तरह का कोई ‘डर्टी डायलोग ‘ बोलूंगी….चुपचाप उस के कान में ‘कनबतिया’ कहूँगी और उसे उत्तेजित करूंगी . पर मेरे लिए सर्वथा नया था -यह ! हालाँकि मैं दिन-रात इसी व्यवसाय में उलझी थी लेकिन मेरे लिए ये आदमी और इस का ‘डर्टी डायलोग’ एक खोज जैसी ही थी . जो शब्द उस ने कहे थे उन का असर मुझ पर हुआ था-में मान रही थी ! वह अभी भी मुझे आग्रही आँखों से देख रहा था !

“…………….” लो ! मैंने भी तीर छोड़ दिया !! मैंने उस से भी भारी ‘डर्टी डायलोग’ बोला था .

“बाई ,गॉड …!” वह गरजा था ….और उस ने मुझे जेट में भर लिया था ….धरती की तरह घुमा दिया था और एक सामीप्य स्थापित कर लिया था .

मैं महसूस रही थी कि मुझे न जाने क्यों पहले जैसी न घिन हुई थी …न कोई दुर्गन्ध उस के शारीर से आती लगी थी ! हाँ ! एक भीनी-भीनी सुगंध मेरी और चली आई थी . मैं सोचने लगी थी -कि न जाने इस ने कौनसा इत्र स्तेमाल किया है – जो इतनी मधुर सुगंध रिस रही है ? मैं अभी सोच ही रही थी कि उस ने मुझे छू दिया था . अवांछित स्थान पर छू दिया था -बेईमान ने ! और कोई होता तो मैं शायद एक झापड़ रशीद कर देती -अब तक ! लेकिन उसे मैंने शरारती निगाहों से घूरा भर था . मैं अब सच में ढह ने लगी थी !!

पहली बार , हाँ-हाँ ! यह पहली बार ही था कि उस ने स्पर्शों का सिलसिला शुरू कर दिया था . मैं इसे जानती तो थी ….पहचानती भी थी ….पर हमेशा ही इस से कन्नी काटती रही थी ! मुझे ये सब छिछोरापन लगता था . ‘बेस्ट ऑफ़ टाइम ‘ में इसे बताती थी . हालाँकि मैं इस धंधे में थी ….पर आज लगा कि में निपट अनाडी थी ! स्पर्श-सुख और आता अनमोल आनंद ….मुझे आज नूतन और अति श्रेष्ट लगा था ! मैं अब समर्पित थी ….उस के साथ थी ….उस का ही अनुकरण कर रही थी …झूम रही थी ….डूब रही थी …और आनंदातिरेक से लवालव भर आई थी !

न जाने क्या विचित्र बात थी इस पुरुष में – मैं पहचान न पा रही थी !!

“चलें ….?’ आग्रह उसी ने किया था .

“चलो …..!!” मैं उठी थी . मैं उस का आग्रह समझती थी . वह भी सब जानता था . ‘खिलाडी’ था – मैं अब जान गई थी . मैं ही अनाड़ी थी – मैंने मान लिया था !

मैं उसे अपने शयन-कक्ष में ले आई . उस ने एक आश्चर्य से मेरे शयनागार को देखा था …..पहचाना था …और फिर निगाहें नचा कर मुझे देखा था . मैं प्रसन्न थी . मैं मान गई थी कि उसे मेरा ये भव्य शयन-कक्ष पसंद आया था …जमा था …!!

“बैठो …!” मैंने आग्रह किया था . मेरी आवाज़ में एक अतिरिक्त आभार उस के लिए लरज आया था .

वह सोफे पर बैठा था . सोफा इतना मुलायम था कि उस के भार के नीचे दबता ही चला गया था ….और वह पूरा सोफे में समां गया था . उसे एक विचित्र आनंदानुभूति हुई थी . वह तनिक मुस्कराया था . उस ने पलट कर मुझे देखा था . मैं भी हंस रही थी . पहली बार उस ने मुझे एक सम्मान भरी निगाह से निहारा था .

“ला-ज़बाब ….!! वह बोला था . फिर उसने एक बार अपनी निगाहें घुमा कर मेरे पूरे ठाट-बाट को देखा था . “कैसा अज़ब -ग़ज़ब है !’ वह बोला था . “पाठशाला -सा ….कुछ …?” उस ने मुझे घूरा था . वह मुझ से उत्तर मांग रहा था !

“न…न…!” मैं मदभरी आवाज़ में कह रही थी . “न पाठशाला है …न ही प्रयोगशाला !’ मैंने बड़े ही सधे अंदाज़ में कहा था . “ये भोगशाला है …!!” मैंने आँखें मटकाई थीं . मैं बड़े ही मुग्ध भाव से हंसी थी . “हर प्रकार से …..हर तरह से ….हर इच्छा के अनुरूप ….आदमी का मुंह माँगा …मोहिया कराने …में ….”

“बाई , गॉड ….!” उस ने तनिक सोफे से उचक कर कहा था . “मौना , डार्लिंग ! मर गया मैं तो …..!!” वह फिर से सोफे में जा धंसा था . “आओ ! बैठें …..” उस ने आग्रह किया था . उस का इशारा था कि मैं …उस के ऊपर …उसी सोफे पर बैठूं . लेकिन मैं जानती थी कि क्या उचित था . में सेटी पर अपनी टाँगे लपेट कर उस के सामने बैठ गई थी . मेरी इस मोहक भंगिमा में उस का मन अचानक रम गया था ! मैं मान गई थी कि वह मेरा आशिक था ….मन-प्राण से मुझ पर फ़िदा था ….मुझे भोगने के लिए लालायत था ….और ….और चाहता था कि मैं …उसे ….”भूख लगी है …!” उस ने बड़े ही दीन भाव से आग्रह किया था .

“खा लो , न ….!” मैंने शरारती आवाज़ में कहा था . “रोका किसने है ….?” मैं हंसी थी .

“थोडा …..लाइट -सा ….कुछ लेंगे , मौना !” वह अब की बार मेरे पुरुष की तरह बोला था …..हाँ ! मेरे पुरुष की ही तरह …..जैसे उस ने मुझे पा लिया था ….जीत लिया था ….और वह अब मुझे अपना हुकुम सुना रहा था !

सच मानिए ! मैं उस का हुकुम मोड़ न पाई थी !!

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श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

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