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जंगल में दंगल संकट नौ

“महाबली हुल्लड़ की जय!” पोखर से बाहर आकर टेंटू मेंढक टर्राया था।

“महारानी तारा मति जिंदा बाद!” अन्य अनेकों मेंढकों ने सुर भरे थे।

सारा उपवन एक साथ सजग हो उठा था!

“हमारा और आपका तो हमेशा से एका रहा है!” टेंटू कह रहा था। “लेकिन इस आदमी का क्या कहना?” उसने हाथियों के जमा झुंड को घूरा था। “हम न इसका कुछ खाते है – न कुछ बिगाड़ते हैं! लेकिन ये हमें खाता भी है और हमारा बिगाड़ता भी है!” टेंटू रो पड़ना चाहता था। “ये मरे तो हम बचें! वरना ..”

“इसके अब दिन आ गये! अब ये मरेगा!” गोधू ने भविष्यवाणी की थी।

“अति कर दी है इस आदमी ने भी!” अब की बार तारा बोली थी। “किसी को भी तो नहीं छोड़ता! जो भी इसके चंगुल में आ गया – गया!”

“भाभी! अब आप ही बताओ!” टेंटू हाथ जोड़कर तारा के सामने खड़ा था। “हमारा कोई दोष हो तो हमसे कहो! हमने इसका कभी कुछ बिगाड़ा हो या इससे कुछ बांटा हो आप ही बताओ!”

“इसका पेट पहाड़ से भी बड़ा हो गया है टेंटू!” तारा बता रही थी। “इसकी भूख में और हमारी भूख में बहुत अंतर है! हम तो खाकर सो जाते हैं लेकिन ये खाकर और खाने चल पड़ता है!”

“न रात को सोए न दिन को!”

“न अंधेरे से डरे न उजाले से!”

“जल वायु और अग्नि सब इसके वश में हैं!”

“अब जंग ही जोड़ते हैं महाबली!” टेंटू ने उछल कर सामने आते हुए कहा था। “अब आप हमारे जौहर देखना!” उसने टर्राते हुए गर्जना की थी।

मेंढकों की उठी टर्राहटों से जंगल भर गया था!

हाथियों का जमा झुंड उत्साहित हुआ था। मेंढकों की हिम्मत और बहादुरी देख कर वह सब दंग रह गये थे।

जंगल की हवा दिन ब दिन गरम होती जा रही थी। आदमी की अच्छाइयां उसकी बुराइयों के नीचे दब गई थीं। आदमी का स्वार्थ सबको अखरने लगा था। सब जानवर जानते थे कि आदमी अब अपनी जरूरत से ज्यादा ले रहा था।

“अब हम आदमी को खत्म करके ही दम लेंगे!” काग भुषंड मुनादी करता हुआ डोल रहा था। उसके साथ साथ चुन्नी दौड़ भाग कर रही थी। “हाथियों-साथियों! हमारे साथ मिल कर जंग करो! जंगल को आदमी से आजाद कराते हैं। फिर अपना राज कायम करेंगे!” वह हाथियों की पीठों पर फुदकता फिर रहा था। “चुन्नी!” उसने चुन्नी को पुकारा था। “इन भाई लोगों को हमारे कानून कायदे पढ़कर सुना दो!” उसने तनिक धीमी आवाज में कहा था।

हाथियों का झुंड सकते में आ गया था। यह कौवे तो पहले ही राजा बन बैठे थे? काग भुषंड की मुनादी से तो लग रहा था जैसे सब आदमी मारे जा चुके थे और अब केवल कौवों का ही राज था।

“हमारे राज में सब कानून के हिसाब से होगा!” चुन्नी उन्हें बता रही थी। “हमारे राज में शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पायेंगे ..!”

“और हम कौन से घाट पर पानी पीएंगे रानी?” लंगड़ा हाथी मजाक करने पर उतर आया था। “हमारा तो किसी आठ घाट पर गुजारा नहीं होगा!” उसने चुन्नी को सुझाया था।

काग भुषंड को मजाक करता लंगड़ा बहुत बुरा लगा था। अगर आज एका करने की बात न होती तो वह उसे मुंह तोड़ जवाब देता! अपनी पैनी चोंच को उसकी लंगड़ी टांग में घुसेड़ कर उसका दम आंखों में ला देता! लेकिन आज वक्त ही और था!

“लंगड़ा शाह!” काग भुषंड ने अपनी कड़वी जबान को मीठा बनाते हुए कहा था। “हमें सीखना तो आदमी से ही होगा!” उसने चारों ओर नजर घुमा कर अपनी बात की पुष्टि चाही थी। “हमारी असल मुसीबत है – हमारी अलग अलग पहचान!” अब उसने चुन्नी की ओर देखा था।

“आदमी की कोई अलग पहचान नहीं है!” चुन्नी ने मुंह मटका कर कहा था। “हालांकि आदमी के बीच भी हजारों तरह के आदमी हैं। साधू संत, पिशाच भेड़िये और गुंडे सुंडे सभी तो हैं! लेकिन हैं सब घिल्लमिल्ल! उनमें पता ही नहीं चलता कि कौन शरीफ है और कौन बदमाश!”

“लेकिन हम ..?” अब काग भुषंड चहका था। “नजर डालते ही पता चल जाता है ये गीदड़ है या शेर! हाथी है या बघेर! बस आदमी को आसानी हो जाती है। अब जैसी जिसकी गर्दन वैसा ही उसका फंदा! उसे तैयार करने में लगता क्या है?”

“अरे, अब हाथी चूहा तो बनने से रहा!” इस बार गोघू गर्जा था। “बेकार का वक्त खराब कर रहे हो, कालू महाराज!” वह भन्नाया था। “आंखें मटकाने से और इस तरह की मुनादियां करने से ही काम नहीं चलेगा!”

“काग भुषंड जी को कम मत आंकिये भाई साहब!” चुन्नी चहकी थी। “सारे चराचर की खबर रखते हैं हमारे जंगल के राजा!” चुन्नी ने मधुर स्वर में कहा था। “इन जैसी काग दृष्टि है किसी की – अब आप ही बताइये ..?”

“बोलो बोलो! अब बोलो!” काग भुषंड गोधू की कमर पर आ बैठा था। “अरे भाई हाथी का काम हाथी करेगा तो कौवे का काम कौवा करेगा – कोई और नहीं!” उसने सारे हाथियों के झुंड को अब एक साथ संबोधित किया था। “क्यों तारा रानी! है कोई और कौवे का सानी?”

हास परिहास का एक सिलसिला उठ खड़ा हुआ था!

यह पहला ही मौका था जब सारे जंगल के जानवर एक साथ मिल कर मोद मना रहे थे! आदमी से हुआ वैर भाव खो सा गया था। सब के मन में अब एकजुट हो कर आदमी से जंग करने की भावना घर कर गई थी!

“तो आज हमें वही मधुर गाना सुनाओ चुन्नी रानी जो आपने सुंदरी को सुनाया था!” तारा हंस रही थी। “चुन्नी तू सुर लगाना और हम लोग तालियां बजाएंगे!” कौवे कह रहे थे।

“आप भी तो कुछ सुनाओ काग भुषंड जी!” लंगड़ा हाथी बीच में बोल पड़ा था।

“अरे भाई, जब से हम जंगल के राजा हुए हैं – हमने गाना छोड़ दिया है!” कह कर काग भुषंड उड़ गया था!

अब लंगडे ने हुल्लड़ को देखा था और हुल्लड़ ने तारा को!

रात का अंधकार घिरने लगा था!

मेजर कृपाल वर्मा

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