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जंगल में दंगल संकट ग्यारह

पृथ्वी राज आज पहली बार जैसे उजालों में आया था। किलों में रह रह कर उसकी दृष्टि का कबाड़ा हो गया था।

अंधकार में रहना भी पाप है – उसने सोचा था!

आदमी का ये ज्ञान विज्ञान ही तो है – जो वह सबसे आगे है – तेजी सोचे जा रही थी। वरना तो ये बे शऊर संतो उसके सामने दाने भी नहीं बेचती!

“मेरी मानो तो काग भुषंड से मिल लो!” भोली ने राय दी थी। “हो सकता है कोई सुलह सफाई हो जाये!” उसने चालाकी से इधर उधर देखा था। “और फिर मैं तो हूँ हीं तेरे साथ! काग भुषंड क्या खाकर मेरे साथ चाल खेलेगा?” उसने दांत निपोरे थे। “नास पीटे के पर कतर दूंगी!” अब भोली ने तेजी की ओर देखा था। “तू तो जानती है ना तेजी – मेरे पंजे की मार को!”

“हॉं हॉं मौसी मुझसे ज्यादा तुम्हें कौन जानता है!”

“बस तो! भेज दे इसे मेरे साथ!” भोली ने बात का तोड़ कर दिया था।

पृथ्वी राज और तेजी ने एक दूसरे को घूरा था। साम्राज्य का लालच – जान के लालच से भी बड़ा था। अगर साम्राज्य ही चला गया तो जान रहे या जाए – क्या फर्क पड़ता था!

“ये सब क्या अवाल-बवाल बका जा रहा है!” भयंकर फुफकार के साथ शेष नाग गर्जा था।

अब सब ने एक साथ शेष नाग को देखा था!

काला भुजंग था शेष नाग। उसके फन पर सफेद टिकला था। उसकी आंखों में रोष की ज्वाला जल रही थी। वह जमीन से दो फुट ऊपर उठ कर खड़ा था। हवा में गर्दन लहराते हुए उसने दुश्मनों की जमात को सावधानी से घूरा था।

भोली ने भी आंखें झिपझिपाई थीं!

पृथ्वी राज भी भागा था, तेजी भी उससे पीछे नहीं थी।

“बना बनाया खेल बिगाड़ दिया इस पागल ने!” भोली ने मन में कहा था। “इसे अभी आकर मरना था क्या? बेवकूफ! सांप का सांप!”

“धरती हमारी है!” शेष नाग ने फुंकार मार कर कहा था। “आज से नहीं, अनंत से हम इसे फन पर धरे खड़े हैं!” उसने लोगों की आम अवधारणा का खुलासा किया था। “कौन नहीं जानता कि शेष नाग ..”

“काग भुषंड ..” भोली ने जबान खोली थी।

“कौन काग भुषंड!” शेष नाग ने फन फैलाया था। “कहीं कौवे की बात तो नहीं कर रही हो?”

“हॉं हॉं वही!”

“अपने अंडे बच्चे तो बचा ले पहले!” हंसा था शेष नाग। “सांपों से दुश्मनी मोल लेकर रहेगा कहां ये कौवा?”

“कहता है – शेर और बकरी एक घाट पानी पीएंगे!”

“तो पीएं!”

“लेकिन सांप और छछूंदर भी ..” भोली ने अपनी ओर से बात गढ़ी थी।

“और चूहा और बिल्ली भी?” मुसकुराया था शेष नाग।

“हॉं हॉं चूहा और बिल्ली भी मॉं बेटों की तरह साथ साथ रहेंगे शेष नाग!” मैं यही तो पृथ्वी राज को समझा रही थी ..”

“लेकिन क्यों ..?”

“वो .. वो .. आदमी से जंग जो लड़नी है! आदमी ने हम सब का हक हड़प लिया है .. और ..”

“नहीं! कौन कहता है?” गुर्राया था शेष नाग। “नागों की तो आदमी पूजा करता है! सर्पों को तो वह दूध पिलाता है!”

“वो तो बिल्ली को भी पिलाता है ..”

“तो फिर ..?” शेष नाग पूछ रहा था।

“लेकिन वक्त आने पर किसी को भी नहीं बख़्शता! दोस्त हो या दुश्मन, मारने में एक मिनट भी नहीं लगाता!”

“लेकिन कितने जानवर हैं जो आदमी के साथ रह रहे हैं?”

“वही जो उसके काम के हैं! किसी का दूध पी रहा है तो किसी का मांस खा रहा है! मुफ्त में तो किसी को घास भी नहीं डालता!”

शेष नाग ने जैसे भोली की बात को समझ लिया था। अब वह ठंडा हो कर भोली के सामने कुंडली मार कर बैठ गया था। उसका क्रोध तनिक कम हुआ था तो ज्ञान लौटा था!

“कीमती – कातर को कहो कि दौड़ कर करामाती से कहे और नकुल नेवले को बुला दे!” पृथ्वी राज ने तेजी को चलते चलते आदेश दिये थे। “आज इस काले नाग का भी अंत ला देते हैं!” वह रोष में बड़बड़ा रहा था।

“जा री कीमती! भाग कर करामाती को जगा और बुला नकुल को! कहना मैंने बुलाया है! जल्दी कर जल्दी!” तेजी चीखे जा रही थी।

वास्तव में ही इस आदमी ने सब कुछ अपने हाथ में ले लिया था। शेष नाग सोचे जा रहा था। विष उसका था और उपयोग कर रहा था – आदमी! आश्चर्य की बात थी। सांपों की भी तो खेती कर रहा था। क्या कोबरा – क्या करात, सभी तो आदमी के वश में थे! अब तो सांप के नाम से छोटे बच्चे तक नहीं डरते थे!

“भोली!” शेष नाग ने गंभीरता पूर्वक कहा था। “अगर आदमी के खिलाफ जंग जुड़ती है तो तेरा तो खेल ही बिगड़ जाएगा!” उसने भोली को सहज होते हुए देखा था। “तू तो संतो की सखी है। बिना तुझे बगल में लिए तो वह सोती भी नहीं है!”

“कसम उठाती हूँ नाग राज!” भोली तनिक दरक गई थी। “मैंने अब संतो का सहेला छोड़ दिया है। मैं तीन दिन से उपवास पर हूँ ..”

“पर चूहा खाना कब से छोड़ा है?” हंस गया था शेष नाग। “अब तू जा! इस पृथ्वी राज को तो अब मैं ही निगलूंगा!” उसने घोषणा की थी।

अब इस सांप के मुंह कौन लगे!

“रे, शठ! तू छुपा कहां था?” घर में घुसते ही नकुल दहाड़ा था। शेष नाग को देखते ही उसकी आंखें रोष से लाल हो गई थीं। अपनी चाकू सी धारदार चोंच को संभाल कर वह सीधा सांप पर वार कर देना चाहता था।

शेष नाग भी फनफना कर खड़ा हो गया था। धूर्त नेवले नकुल को देखते ही उसकी त्योरियां तन गई थीं। उसका मन आया था कि नकुल की बित्ते भर की काया को अपनी कुंडली में कस कर निचोड़ डाले।

लेकिन नकुल अव्वल दर्जे का फुर्तीला था और काइयां भी! शेष नाग जानता था कि आसानी से काबू आने वाला नकुल था नहीं!

अपनी लंबी डील डौल वाली काया को शेष नाग ने कुंडली की शक्ल देकर बहुत छोटा कर दिया था। वह जानता था कि नकुल घाव देने में निपुण था!

“आज मैं तेरे दो टुकड़े कर दूंगा!” नकुल शेष नाग के सामने दुपाया खड़ा था। “तेरी तो मुझे बहुत दिन से तलाश थी!”

“जबान लड़ा कर तो कोई कैसा भी महाभारत जीत ले!” शेष नाग ने उत्तर दिया था। “तू पहले अपनी खैर मना! आज मैं तेरी ये अकड़ ..” कहते हुए शेष नाग ने पूंछ का फंदा फेंका था। अब संभाल बेटे!” वह गर्जा था।

मेजर कृपाल वर्मा

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