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जंगल में दंगल संग्राम नौ

इस घटना को बहुत लोगों ने देखा था। अजीब ही घटना थी। माझी मयूरा का इतना उग्र रूप कभी किसी ने पहले नहीं देखा था। वो तो दया और प्रेम का प्रतीक था। फिर उसका ये विकराल रूप किसी की भी समझ में न आया था।

तेजी को काटो तो खून नहीं। नकुल के चेहरे पर तो हवाइयां उड़ रही थीं। छज्जू तो कब का जा चुका था। भोली ने संतो की तरह ही आज भगवान को याद किया था।

संतो ने आंखें खोल दी थीं। उसने पास बैठी भोली को देखा था। अनायास ही संतो का हाथ भोली की कमर पर जा टिका था। भोली फूट फूट कर रो पड़ी थी।

माझी मयूरा और छज्जू दोनों के हाथ एक अनमोल अस्त्र लगा था – तक्षक!

“हां तो बताओ भाई तुम्हें वहां किसने भेजा था?” छज्जू ने अंधे हुए तक्षक की गर्दन अपने पंजों में दबा रक्खी थी। उसने तनिक सा दबाव गर्दन पर बढ़ाया था ताकि तक्षक अपनी चुप्पी तोड़ दे। “देखो तक्षक! यों भी तुम अंधे हो गए हो और अब आगे भी ..” छज्जू ने तक्षक का फन पेड़ के तने पर हलका सा घिसा था। “बेरहम मौत क्यों मरते हो मित्र?” पीड़ा से डकराते तक्षक को छज्जू ने सलाह दी थी। “बताओ बताओ! ये माजरा है क्या? क्यों बेचारे आदमी की जान के प्यासे बने हो?” छज्जू ने प्रश्न किया था।

तक्षक तड़प कर शांत हो गया था। वह कुंडली में सिमट कर किसी तरह से छज्जू को लपेटे में ले लेना चाहता था। अपनी आंखें फूटने का उसे गम था। माझी मयूरा की ये सबसे ज्यादा कारगर चाल थी – वह जान गया था।

“घाग है ये साला, छज्जू!” माझी मयूरा बोला था। “मुझे दो तनिक इसे! मैं इसकी नस नस में से सारे राज चूंस लूंगा!” उसका सुझाव था।

अब तक्षक का हिया कांप उठा था। माझी मयूरा कितना बेरहम था – वह जानता तो था। उसकी चीख निकल गई थी।

“चल चल! बता दे सब कुछ!” छज्जू ने उसे पुचकारा था। “मेरा वायदा रहा तक्षक – मैं तुझे छोड़ दूंगा! तू मेरे साथ यहीं रह लेना भाई। आदमी तो सबकी सेवा करता है। तेरे भाग का भी तुझे देगा!”

तक्षक ने पूरा जहर उगल दिया था। उसकी बताई सूचना, योजना और चलती तबाही के बारे में सुन कर छज्जू के तो प्राण सूख गए थे। माझी मयूरा भी बेहोश होने को था।

अगर आदमी का अंत आ गया तो उनका अंत भी आया धरा था।

तक्षक की दर्दनाक मौत की खबर जोरों से फैली थी!

मंदिरों में राम धुन बज रही थी। आदमियों के ठट के ठट पूजा में तल्लीन होकर राम के नाम का रस पी रहे थे। दीन दुनिया से कटे लोगों को नहाने खाने तक की सुध न थी।

गिरिजा घरों में ईशु की उपासना के स्वर उभर उभर कर आसमान पर घटाओं की तरह गोल गोल घूम रहे थे। लोगों को अटल विश्वास था कि प्रभु ईशु उनकी अवश्य सहायता करेंगे और इस आए संकट का अंत ला देंगे।

मस्जिदों में भी गूंजते स्वर और अल्लाह को टेरते मुल्ला और आंखें मूंद कर दुआ मांगते मुसलमान भी एक अटूट विश्वास से भरे थे कि उनका मोहम्मद ही उन्हें बचाएगा – इस बला का नाम चाहे जो हो।

गुरु द्वारों में गुरु वाणी गूंज रही थी। अपने सुख दुख भूल सभी संत संगत गुरु चरणों में समर्पित थी। वाहे गुरु जी की अरदास में तन मन से लगे लोग आज एक नई अरदास कर रहे थे जो अभी तक किसी ने कभी नहीं की थी।

और गूंज रहे थे – बुद्धं शरणं गच्छामि के स्वर! वेद मंत्रों से हवा पर लहराते स्वर अपने आराध्य की शरण में जाने का बार बार अनुग्रह कर रहे थे और कह रहे थे हमें बचाओ प्रभु! हम आपकी शरण में ही तो हैं।

जमा होते सर्पों ने बिलबिलाते कुलबुलाते, बीमार अपाहज और अंधे आदमियों को पहली बार इस अवस्था में देखा था।

“बहुत आसान काम है भाई!” नकुल मणिधर को सलाह दे रहा था। “कल ही विजय की घोषणा करा दूंगा!” उसने विहंस कर कहा था। “रात के अंधकार में चुपके से सारे सर्प घुस जाएं और फिर एक के बाद दूसरा ..! सुबह होते न होते ये सब लाशें होंगे।” वह ठहाके लगा रहा था। “खुद ही आ मरा ये मूर्ख आदमी।” नकुल ने व्यंग किया था। “मैं तो इसे बहुत ही सावधान और विद्वान ..” उसने ठहर कर मणिधर को देखा था।

मणिधर गंभीर था। उसे कुछ था – जो खाए जा रहा था।

“क्या दुख है भाई?” नकुल ने प्रश्न किया था।

“तक्षक की मौत!” मणिधर ने अपना दुख कह सुनाया था। “तक्षक की मौत का एक ही अर्थ है नकुल!” वह बता रहा था। उसने अपना सर हिलाया था। “यह एक बहुत बड़ा अपशकुन है भाई।”

“आदमी की तरह तुम भी ..?” हंस गया था नकुल।

“नहीं नहीं! ये है ही एक बड़ा अपशकुन।” मणिधर गंभीर था। “कहीं सर्प जाति का अंत तो नहीं आ गया?” उसने जैसे अपने आप से ही ये प्रश्न पूछा था। “कहीं .. ऐसा तो नहीं ..”

“डर रहे हो महाबली!” नकुल ने बात काटी थी। “अब डरो मत! एक नया युग आरंभ होने को है! मानव विहीन ये पृथ्वी कल से ही हमारी होगी।” नकुल ने घोषणा जैसी की थी।

“कौन जाने मित्र!” कहते हुए मणिधर शांत हो गया था।

जानकार लोगों के कैमरों में पकड़े गए चित्रों को लोगों ने समझा था, पढ़ा था और उनके बारे सोचा था। हाथियों के जमघट थे – लेकिन क्यों? शेरों का वो जमावड़ा आदमियों को क्यों फाड़ फाड़ कर खा रहा था? और ये सर्प – दुनिया के हर कोने से चल चल कर देवालयों के आस पास क्यों जमा हो गये थे? और ये हवा में उड़ता फिरता जरासंध लोगों को तबाह करने पर क्यों तुला था?

ये किसी दूर की दुनिया से आए कारण तो नहीं थे? धरती पर किसी भी दूसरी दुनिया के लोगों का दखल नहीं हुआ था – यह बात तो समझ आ चुकी थी।

और ये कोई दैवीय प्रकोप भी नहीं था – अब तक जानकार जान गए थे।

बचा जाए इस बला से – आदमी ने आदेश जारी कर दिए थे।

“गजब हो गया है मित्र!” शशांक खबर लाया था। “तक्षक मारा गया है! छज्जू बंदर ने उसकी बहुत दुर्गति की और माझी मयूरा ने ..” शशांक रुका था।

“क्या किया उस मयूरा ने?” लालू ने चौंक कर पूछा था।

“एक बेरहम मौत दी तक्षक को! और उसने सब कुछ उगल दिया। सारा भंडा फोड़ कर दिया!” लालू को आज पहला बड़ा आघात लगा था।

“आदमी अब चल पड़ा है मित्र!” शशांक ने पूरी सूचना दी थी। “उसके यंत्र मंत्र तंत्र और षड्यंत्र सब हरकत में आ गये हैं। तनिक सा हमारा विलंब भी हमें मार डालेगा भाई!”

लालू तनिक उबरा था – सदमे से! उसे फिर से होश लौटा था। उसने शशांक की आंखों में झांका था। खतरा तो था – वह ताड़ गया था। लेकिन अभी भी वक्त था। वक्त को अगर पकड़ा जा सकता था तो जीत भी अवश्यंभावी थी।

“मणिधर ..!” लालू गंभीर स्वर में बोला था। “रात – एक रात का समय है मित्र! अगर धरती का राज लेना है तो हुक्म दाग दो और कर डालो नर संहार रातों रात!”

मणिधर एक विकट सोच से उबरा था। तक्षक की दर्दनाक मौत के किस्से उसे खाए जा रहे थे।

“मैं अब चूकूंगा नहीं मित्र!” मणिधर ने वायदा किया था। “जंग है! हार जीत का क्या?” उसने तोड़ कर दिया था।

अब बात दोनों ओर से तन आई थी। आदमी भी अब लड़ने के लिए खड़ा हो गया था।

मेजर कृपाल वर्मा
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