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जंगल में दंगल संग्राम चार

घमंडी गिद्ध ने आसमान को अलग से अपना युद्ध क्षेत्र बना लिया था।

गिद्धों की जो दुर्दशा आदमी के हाथों हुई थी – जग जाहिर थी। गिद्धों की आंखों में दम आया हुआ था। आदमी ने तो उनसे लाशों तक को छीन लिया था। उनके लिए खाना खुराक कहीं था ही नहीं। ऊंचे आसमान पर टंगे टंगे वह घंटों इस फिराक में उड़ते रहते थे कि कहीं कुछ मरा गिरा मिल जाए तो पेट भरें। लेकिन कहां था उनका ऐसा नसीब।

आदमी के लिए तो अब मरा हाथी भी सवा लाख का था।

“लड़ते रहो बहादुरों। अब हमारी भुखमरी के दिन समाप्त हो जाएंगे।” घमंडी अपने झुंड के बहादुरों को बता रहा था। “धरती पर आदमी की लाशें बिखरी पड़ी हैं। खूब खाओ और खूब पचाओ।” वह हंस रहा था। “लेकिन जो काम शेष है उसे हमें ही समाप्त करना होगा।” उसने आसपास जमा गिद्धों को घूरा था।

“अहंकारी का नाम गिद्धों के इतिहास में सबसे ऊपर लिख दो सरदार।” गज्जू कह रहा था। “बलिदान होने का अंदाज कोई अहंकारी से सीखे।” उसने प्रशंसा की थी। “साले उड़ते हवाई जहाज के पेट में घुस कर आर पार हो गया।” उसने आंखें उठा कर जमा गिद्धों को देखा था। “बहुत बचा था चालक। वो तो भाग सा लिया था। लेकिन अहंकारी ऐसा टकराया कि पार।”

“और फिर कलाबाजियां खाता वह हवाई जहाज किस तरह बम के गोले सा फटा था जमीन पर जाकर याद है ..?” गज्जू ने प्रसन्नता पूर्वक साथियों से पूछा था।

“दुनिया भर के जहाज और हेलिकॉप्टर अब आसमान पर आ टिके हैं।” घमंडी सूचना दे रहा था। “बचने एक भी न पाए बहादुरों।” उसका आदेश था। “आज का निशाना हममें से कौन कौन साध रहे हैं?” उसने पूछ लिया था।

“गज्जू, राजू और गजानन तीनों ने कमर कस ली है सरदार।”

“तीन नहीं तीस की तैयारी करो। काम जल्दी-पल्दी होना है। तड़ाक-फड़ाक हो जाए। विलंब का तो मतलब है ..”

आसमान पर उड़ते हवाई जहाज और हेलिकॉप्टरों के चालकों की शायद शामत आ चुकी थी। इन हवा में उड़ते पंछियों से बच निकलना दूभर हो गया था। कुछ इस तरह से टकराते थे पंछी कि हवाई जहाज की काया के पार हो जाते थे। इतने गजब का धक्का लगता था हवाई जहाज को कि मरकर ही दम लेता था। हेलिकॉप्टर की तो मौत थी – निरी मौत।

“बचाओ .. बचाओ .. वो आया पंछी ..” पीटर ने शैली को खबरदार किया था। “मर जाएंगे पार्टनर। तुम कर क्या रहे हो ..?”

“क्या करूं यार। ये तो पंछी ही पीछे पड़ गया है। न जाने हुआ क्या है इसको? मैं बचने की कोशिश कर रहा हूँ और ये टकराने चला आ रहा है।” शैली कहता जा रहा था और भागता जा रहा था।

“धड़ाम .. धड़ाम! सीं .. सूं .. छूं छां।” गिद्ध हेलिकॉप्टर से आर पार हो गया था। “लो .. मर गये मित्र!” पीटर ने कहते हुए आंखें बंद कर ली थीं।

उलटा-पुलटा हुआ हेलिकॉप्टर हवा में लुढ़का था, फिर पेड़ों से टकराया था और निकल कर बिजली के तारों में जा उलझा था। फिर न जाने कैसे खंड खंड हो कर जमीन पर बिखर गया था।

“वाह रे गज्जू वाह।” घमंडी प्रसन्न था। “वाह रे मेरे गिद्ध, तेरा नाम भी आदमी की तरह शहीदों में लिखा जाएगा।”

जमीन से उठ कर अब एक आतंक हवा पर छा गया था। आसमान मौत का ठिकाना जैसा बनने लगा था। टकराने वाले पंछी न जाने कहां कहो से पल छिन में आ जाते थे और घबराया बौखलाया पायलट अपना बचाव भी नहीं कर पाता था। जिस फुर्ती से पंछी घूम जाता था, उस फुर्ती से भीमकाय हवाई जहाज को घुमाना असंभव था।

“इतने सारे गिद्ध आ कहां से गए?” दुनिया भर के जानवर इस पहेली को सुलझा नहीं पा रहे थे। “और फिर इन्हें टकराने और हवाई जहाज तोड़ने का ये जुनून किसने दे दिया है? ये तो एक अजीब ही अजूबा है। इस तरह की घटनाएं आदमी के इतिहास में तो कहीं भी दर्ज नहीं थीं।”

कोई नया युग तो आरंभ नहीं हो रहा?

सुरंगों में गहरे जा घुसे लोग भी बहुत डरे हुए थे। उन्हें भी जंच गया था कि जरूर कुछ नया घट रहा था। जरूर कुछ था – अभूतपूर्व था जो अब हो रहा था। उनकी आंखों के सामने घटता ही चला जा रहा था – कुछ अघटनीय।

“अब पीछा मत छोड़ो आदमी का वत्स।” गरुणाचार्य का परामर्श था। “अगर वह जमीन में जा घुसा है तो जमीन में भी घुस कर उसे मारो। उसके बाहर आने का इंतजार करना घातक है। यह हमें कभी भी महंगा पड़ सकता है।” उन्होंने आंखें उठा कर जानवरों के जमघट को देखा था। “अगर आदमी का बीज भी बच गया तो समझो कि सब जानवरों का सफाया। यही एक छोटा समय है जब हम कामयाब हो सकते हैं।”

गरुणाचार्य की बात में दम था। नकुल ने आंख उठा कर पृथ्वी राज को देखा था। पृथ्वी राज कहीं गहरे सोच में डूबा था।

मेजर कृपाल वर्मा
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