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जंगल में दंगल संग्राम आठ

तक्षक आ गया था – तेजी को सूचना मिली थी।

“अब आदमी मंदिरों में, गिरिजा घरों में मस्जिदों में और गुरु द्वारों में जा जाकर जमा हो रहा है!” शशांक सूचना लाया था। “ठठ के ठठ इन देवालयों में जमा होते जा रहे हैं। सब के सब भजन कीर्तन और आराधना उपासना में मस्त हैं! तरह तरह के ढोल-ढमाके और वाद्य यंत्रों का शोर मचा है। अपने अपने देवों को प्रसन्न करता ये आदमी अब और भी डरावना लग रहा है।” शशांक ने अपना मत सामने रक्खा था।

“क्यों?” पृथ्वीराज ने चौंक कर पूछा था।

“महाराज! अगर इन्होंने देवताओं को प्रसन्न कर लिया और वो आदमी की सहायता के लिए चल पड़े तो ..?”

एक हंसी ठहाका उठा था और आसमान पर जा फैला था। शशांक का शक कितना बेबुनियाद था – वह इन हंसी ठहाकों से स्पष्ट हो गया था।

“क्या तुम भी भगवान जैसी बेबुनियाद और वाहियात बात को आदमी की तरह मानते हो, शशांक?” नकुल ने हंसी रोक कर पूछा था।

शशांक चुप था। पहली बार उसके पास भगवान के होने न होने का कोई उत्तर न था। लेकिन वह इतना अवश्य महसूस रहा था कि आदमी इतना पागल तो नहीं था जो भगवान जैसे बहकावे में यों ही आ जाता! लेकिन नकुल की बात का उसके पास न कोई उत्तर था और न कोई पुष्ट प्रमाण।

“मौका है महाराज!” लालू ने कुछ सोचते हुए कहा था। “देवालयों में जमा हुए आदमी को यहीं खत्म कर दिया जाए! इन देवालयों को ही इनका कब्रगाह, मरघट और ..!”

“कहीं कोई अनर्थ न हो जाए लालू।” गरुणाचार्य ने रोका था। “ये बहुत पवित्र माने जाने वाले स्थल हैं – आदमी के! अगर यों मौतें हुईं तो ..?”

“फिर तो हम कभी भी न जीतेंगे ये युद्ध!” लालू ने हाथ झाड़े थे। “जहां दुश्मन के लिए ही सहानुभूति हो – वहां फतह कैसी?”

गरुणाचार्य का चेहरा उतर गया था। शशांक के बाद गरुणाचार्य एक अलग दायरे में आ खड़े हुए थे। उनके ऊपर भी एक प्रश्न चिन्ह लगा दिखाई दिया था।

पृथ्वीराज गहरे सोच में डूबा हुआ था। लालू का सुझाया विकल्प बुरा कहां था? अगर इकट्ठे हुए आदमी को इकट्ठा ही मार दिया जाता तो बुरा क्या था! अनभोर में किया वार ही कारगर सिद्ध होता है। अगर आदमी संभल गया तो ..

“मणिधर को सोंप दो यह काम महाराज!” काग भुषंड का संकेत अपनी गर्दन में आ लटके ढोल को दूसरे की गर्दन में डालने के लिए था। “बुलाओ पूरी पृथ्वी के सर्पों को और कहो – कि एक साथ डस लें इन जमा आदमियों को! एक बार में ही सब साफ!” काग भुषंड चहका था। “और यहां तो शहीद होने या बलिदान देने जैसा भी कुछ नहीं था! कितना अच्छा मौका हाथ आ लगा है!”

बात फिजा पर फैल गई थी। एक बेहद आसान हल सामने आ गया था।

नकुल ने मणिधर को तोला था। मणिधर तनिक सतर्क हुआ लगा था। उसे याद आ गया था कि तक्षक ने शायद अब तक संतो को डस लिया होगा! वह जानता था कि अगर दुनिया भर के सर्प जमा हुए तो आदमी को डसने के लिए नाकाफी ना होंगे! और फिर उनका तो आदमी से कभी का बैर चला आया था।

“आपने काग भुषंड को आधा राज देने का वायदा किया है महाराज!” मणिधर ने भी मुंह खोला था। “अगर आप ..?”

“तुम पूरा राज ले लेना, भाई!” लालू ने हंस कर कहा था। “अब कुछ काम करके दिखाओ मित्र!” उसने साथ ही उलाहना दिया था। “इतना लालच भी क्या भाई?” उसने सभी सभासदों को सचेत किया था।

मणिधर मान गया था। उसने सर्पों के लिए संदेश भेज दिया था। जहां जहां जिस जिस इलाके में देवालय, धर्म स्थल, गिरिजा घर और गुरु द्वारे थे वहीं वहीं उन्हें पहुंचना था। आदमी के जमा होते होते सर्पों को भी जमा हो जाना था। मणिधर के अगले हुक्म का उन्हें इंतजार करना था और ..

वार – एक साथ और संगठित रूप से होना था ताकि जो परिणाम आएं वो एक पूर्ण विजय के रूप में आएं! मणिधर इस जंग में होती जीत का सेहरा अपने सर बांध लेना चाहता था।

तक्षक दबे पांव और बिना किसी आहट – सुरसुराहट के संतो के घर में प्रवेश पा गया था। सूचना के अनुसार ही तक्षक के लिए दूध का बेला भर कर तेजी के कमरे में ही रख दिया गया था। तक्षक को दूध देख कर जोरों की भूख लग आई थी। सदियां ही गुजर गई लगी थीं उसे जब उसने कभी इस तरह दूध पिया था।

आदमी ने आजकल सांपों को दूध पिलाना बंद जो कर दिया था।

तेजी की आंख तक्षक पर लगी थी।

कितना सुंदर, सुघड़, सजीला और सामर्थ्यवान था तक्षक! उसकी दमकती काया तेजी की आंखों में आकर जड़ गई थी। विशालकाय फन, भुजंग काला रंग और उसकी मस्त चालचलगत एक अलग व्यामोह भरते लगे थे – तेजी के मन में! उसका मन हुआ था कि तक्षक से वो दो दो बातें कर ले, लेकिन नकुल ने वरज दिया था। नकुल तो वहां था और वह प्रत्यक्षदर्शी बना छुपा बैठा था।

छज्जू अचानक ही छज्जे पर आ बैठा था। उसकी चालाक और चतुर निगाह ने सब कुछ एक साथ देख लिया था। भोली छज्जू को देखते ही प्रसन्न हो गई थी। लेकिन माझी मयूरा का अभी तक कोई नामों निशान नहीं था। भोली की आंखों में अशुभ बना डर डोल रहा था। उसे अपनी मालकिन संतो की जान की पड़ी थी।

तक्षक ने दूध पी लिया था। उसने एक अंगड़ाई तोड़ी थी। उसे अब अपना शरीर विशालकाय और सक्षम लगा था। अब वह वार करने के लिए तैयार था।

संतो को तो अपने बदन का कोई होश हवास ही नहीं था।

वह तो पलंग पर बेहाल पड़ी थी। हाथ दाएं बाएं फैले थे तो उसकी टांगें पलंग से आधी बाहर लटक रही थीं। आंखें बंद थीं। बाल खुले थे। चेहरा उदास था। उसे अपने तन मन की तो कोई सुध ही नहीं थी।

तक्षक आहिस्ता से संतो के पलंग पर चढ़ गया था। उसने चोर नजर से अपने चारों ओर खतरे को सूंघा था। उसे सब सुरक्षित लगा था। उसने पलंग पर बेहोश पड़ी संतो को आंख में भर कर नापा था। वह उसके लिए कोई खतरा नहीं थी। फिर उसने अपना फन फैलाया था, आंखों में रोष पैदा किया था और पलंग पर फुटों ऊपर उठकर, गर्दन लहराकर संतो पर वार किया था।

तेजी ने सांस रोक ली थी। नकुल ने भी दांत भिंच लिए थे। भोली मरने मरने को थी। लेकिन छज्जू छलांग लगा कर आंगन में उतर आया था।

फिर न जाने कौन सा अजूबा घटा था कि तक्षक की दोनों आंखें संतो पर वार करने से पहले ही माझी मयूरा ने फोड़ दी थीं। और इससे पहले कि तक्षक संभल पाता माझी मयूरा ने उसे पूंछ से पकड़ा था और आंगन में चित्त फेंक दिया था। फिर वह लपका था। और तक्षक जैसे ही भागने को हुआ था माझी मयूरा ने उसे फिर पूंछ से पकड़ा था और अधर में उठा कर उड़ चला था। तक्षक का शरीर हवा में जूनी सा लहरा रहा था। वह चाहकर भी माझी मयूरा पर वार नहीं कर सकता था।

मेजर कृपाल वर्मा
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