Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

जंगल में दंगल समर सभा पंद्रह

जंगलाधीश की आंखों में खुशी उतर आई थी। उसने पूरे दरबार को संबोधित कर जुड़ने वाली जंग की रूप रेखा सामने रक्खी थी।

“पूरी शक्ति का संचालन करने के लिए मैंने उप सेनापतियों के साथ मिल कर एक कारगर योजना तैयार की है।” जंगलाधीश गरजा था। “हमारे पहले लड़ाके बलम सूचना एकत्रित करेंगे! दूसरे लड़ाके दलम का काम होगा झूठा और भ्रामक हो-हल्ला! तीसरे – खलम का काम होगा – कारगर और मारक हमला।” जंगलाधीश ने हुल्लड़ को देखा था। “अब उप-सेनापति आपको आगे की रणनीति समझाएंगे।” कहते हुए जंगलाधीश ने अपनी बात समाप्त कर दी थी।

अब हुल्लड़ की प्रसन्न होने की बारी थी। कमर पर बैठा काग भुषंड भी खुशी से कूदा कूदा डोल रहा था।

“बलम का संचालन करने की जिम्मेदारी मैंने अपने काबिल दोस्त शशांक को दी है।” हुल्लड़ ने घोषणा की थी। “इन जैसा चतुर संयमी और सूझ-बूझ वाला दूसरा कोई नहीं है।” हुल्लड़ तनिक ठहरा था तो एक उद्घोष उठ खड़ा हुआ था। शशांक की नियुक्ति सब को पसंद थी।

शशांक तनिक उचक कर बैठ गया था। जंगलाधीश ने उसे प्रसन्न निगाहों से घूर कर आशीर्वाद दिया था।

“दलम का दायित्व मिला है हमारे चहेते लालू जी को।” हुल्लड़ हंसा था। “बहुत बड़ी जिम्मेदारी का काम है।” हुल्लड़ ने मुड़ कर पूरे दरबार को घूरा था। “जो है – वह नहीं है। और जो नहीं है – वह है।” उसने फिर से ठहाका लगाया था। “यही हैं जो आदमी को मूर्ख बना सकते हैं।” उसने लालू को देखा था।

लालू का चेहरा आरक्त था। वह जानता था कि उसकी जिम्मेदारी बड़े महत्व की थी।

“खलम की बात करते हैं तो एक ही नाम सबके जेहन में आयेगा।” हुल्लड़ ने इस बार मुड़ कर सभी जमा जानवरों को बारी बारी देखा था।

“काग भुषंड!” नाम की घोषणा करामाती ने की थी।

पूरे दरबार में एक हो-हल्ला उठ खड़ा हुआ था। काग भुषंड की खुशी का अंदाजा लगाना भी कठिन था।

“खलम का काम है – मौतें बांटना, उजाड़ बिगाड़ करना, भगाना – खा जाना और खत्म कर देना।” हुल्लड़ कहता ही जा रहा था। “काग भुषंड के साथ महाबली जरासंध होंगे और होंगे हम सब।” उसने बात का तोड़ कर दिया था।

पूरे दरबार में दो ही सूरमा नजर आये थे – काग भुषंड और जरासंध! जंगलाधीश को इस घोषणा से तनिक सा झटका तो लगा था पर वह संभल गया था। यह राज काज था – अब जंगलाधीश भी जान गया था।

“युद्ध का शुभारंभ होने से पहले और बलम का मुखिया होने की हैसियत से मेरा पहला अनुरोध स्वीकार हो – मेरी ये गुजारिश है!” शशांक ने बड़े ही विनम्र स्वर में कहा था।

एक चुप्पी छा गई थी। नकुल ने अपने दिमाग को तेजी से दौड़ाया था। वह शशांक को कभी से कम न आंकता था। दरबार में कोई ऊक-चूक न हो जाए उसे इस बात का लिहाज था।

“अगर कोई गुप्त बात हो तो यूं दरबार में ..?” नकुल ने प्रश्न दागा था।

“आम बात है और दरबार में ही तय होने योग्य है।” शशांक ने सीधा उत्तर दिया था। “बहुत ही जरूरी प्रस्ताव है श्रीमान!”

“कहो शशांक। बेधड़क हो कर बोलो।” पृथ्वी राज ने अनुमति दी थी।

“युद्ध की इस पूरी प्रक्रिया को गुप्त रक्खा जाए – इस बाबत हम सब को शपथ लेनी होगी।” शशांक ने विनती की थी। “हवा तक को हमारे इरादों की गंध न पहुंचे – यह हमारा पहला कदम होना चाहिये।”

“हमारे अलावा और जानता कौन है?” नकुल ने प्रति प्रश्न किया था।

“मैं भविष्य की बात कर रहा हूँ, महामंत्री!” शशांक ने बात का खुलासा किया था। “जैसे कि – भोली, जैसे कि पालतू कुत्ते, पालतू जानवर जिसमें शेर और हाथी भी शामिल हैं।” शशांक ने दरबार में छाते सन्नाटे को महसूसा था। “वह हमारे दुश्मन नहीं तो दोस्त भी नहीं हैं। हमें उन सबसे परहेज करना होगा। अगर आदमी के कान तक बात की भनक भी पहुंची तो ..?”

शशांक की बात सब की समझ में आ गई थी। नकुल ने चतुराई से सब को शपथ नामा समझा दिया था।

युद्ध का आरम्भ आज हो गया लगा था।

“महाबली जरासंध के सहयोग से मुझे अब विश्व विजय करने से कोई नहीं रोक सकता!” काग भुषंड चहका था। “महाराज!” उसने पृथ्वी राज को बड़े ही प्यार से संबोधित किया था। “मेरा एक छोटा सा प्रस्ताव है, यह एक विनती है और एक आभार है!” उसने आंखें नचा कर पूरे दरबार को देखा था।

फिर एक बार सन्नाटा लौट आया था। काग भुषंड क्या मांग बैठे – कोई नहीं जान सकता था। गरुणाचार्य भी काग भुषंड की इस चाल को भांप नहीं पा रहे थे। हुल्लड़ ही था जो प्रसन्न था।

“मांग पूरी होगी वत्स!” पृथ्वी राज ने घोषणा की थी।

“एक जश्न हो जाए, महाराज!” काग भुषंड चहक कर बोला था। “एक ऐसा जश्न जो युद्ध के आरम्भ को अंत तक लेकर चले।” उसने फिर से आंख उठा कर पूरे दरबार को घूरा था।

एक हो-हल्ला उठ खड़ा हुआ था। जश्न मनाने की बात सब को जंच गई थी। खूब मौज मस्ती करने का सबका मन बन आया था। लड़ाई के पूर्व का ये होने वाला जलसा सभी को भा गया था।

“महा मंत्री नकुल और महा रानी तेजी इस जश्न का आयोजन करेंगे – मेरा ऐसा मत है।” गरुणाचार्य ने हंसते हुए कहा था।

एक जयघोष हुआ था। एक निनाद था जो पूरे दिगंत पर छा गया था। पूरे जमा जानवरों के कान तरह तरह की धुनें सुनने लगे थे! ढोल-ढमाकों की आवाजें भी आने लगी थीं। नाच गाना आरम्भ हो गया था। चारों ओर उछल-कूद होने लगी थी। खाना गाना और संगीत सौहार्द सब कुछ सामने आने लगा था।

एक आनंद लहरी हवा पर चढ़ कर बांसुरी की तरह बज उठी थी। जय गान था .. प्रशस्ति गान था .. प्रार्थना के स्वर थे .. युद्ध की ललकार थी और थी आने वाले सुनहरे भविष्य का एक दिल दहलाता दृश्य – जहां जानवरों के साम्राज्य का शुभारंभ था और आदमी के साम्राज्य का अस्त!

मेजर कृपाल वर्मा
Exit mobile version