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जंगल में दंगल महा पंचायत पंद्रह

फैसला अब महा पंचायत में ही होना था। राजा नियुक्त करने का पूरा बोझ भार गरुणाचार्य पर ही आ गया था।

काग भुषंड पलट गये पासे को सीधा करने में जुटा था। हार जाना उसे किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं था। उसने हवा को पूरी तरह से गरमा दिया था। बातों के बम हवा में फूट रहे थे। शिकस्त बांटी जा रही थी। कृष्णा नदी रिस रिस कर बह रही थी। आशा निराशा की किरणें जल बुझ रही थीं। पूरे जंगल में अजीब प्रकार का शोर व्याप्त हो गया था।

छोटे बड़े और बड़े छोटे बन रहे थे। जो कभी बिलों के बाहर ही न आते थे आज मैदान में सीना ताने सरेआम आ खड़े हुए थे। और जो कभी डरते ही न थे वह आज दहला गये थे, कांप रहे थे और बुरी तरह से डर गये थे।

पद प्रतिष्ठा का नशा हर किसी पर तारी हुआ लगा था।

भूख को सब भूल गये थे, खाना रहना अब मूल प्रश्न नहीं रह गया था क्योंकि गुजारा तो चाहे जैसे चल सकता था। लेकिन जो ऐश्वर्य आदमी भोग रहा था उसे ही अब उनकी आंख देख रही थी। अब उन सबको वही चाहिये था ..

आदमी से सब छीन छान कर धरती को अपने लिए स्वर्ग बनाने का सपना उन सब की आंखों में करक रहा था।

गरुणाचार्य ने जमजमाती सभा को आंखें पसार कर देखा था। अपने अपने पक्ष को संभाले सभी जमा थे। सब गुटों में, खेमों में और खुले में अपनी बात सरेआम कहने के लिए तैयार थे। न किसी को किसी से भय था ओर न कोई भाई चारा था। अब वो सब एक स्वतंत्र विचार के पीछे थे जिसे पृथ्वी राज ने हर कान तक पहुंचा दिया था – सर्व हिताय और सर्व सुखाय।

तेजी का कथन कि वो तो तोले दो तोले खाते हैं ओर बाकी सब तो सब का है – एक राम बाण बन गया था। उनका वैभव सबका वैभव था – ये बात आग की लपटों की तरह चहुं ओर फैल गई थी।

और फिर चूहा किसी के लिए कोई खतरा तो था ही नहीं। पृथ्वी राज तो सेवक ही बनना चाहता था – यह बात नकुल ने जोर देकर सब को समझा दी थी।

सभा में पृथ्वी राज खड़ा हुआ तो तेजी भी उसके साथ आ खड़ी हुई थी।

“धीरज से काम लेना है।” तेजी ने पृथ्वी राज को समझाया था। “काम तो सब हो गया है।” उसने सूचना दी थी। “हिम्मत के हथियार होते हैं। काम तो वक्त करता है। एक बार नाम चल पड़ा तो हवा भी ठहर जाएगी। धरा पति बन जाओ फिर तो सब चलेगा।” वह तनिक मुसकुराई थी। “देखना! मैं और नकुल मिल कर ..” वह कहती रही थी। लेकिन पृथ्वी राज नकुल का नाम सुनते ही बहरा हो गया था।

“ये क्या था? तेजी और नकुल मिल कर कौन सा गुल खिलाने जा रहे थे?” सोचते सोचते पृथ्वी राज आधा रह गया था।

“मेरे चंद सवाल हैं, श्रीमान गरुणाचार्य जी!” काग भुषंड जोरों से बोला था। “पृथ्वी राज एक चूहा है – वो आदमी से कैसे लड़ेगा? कब लड़ेगा? और क्यों लड़ेगा?” उसने भरी सभा को घूरा था। “या तो ये वक्त बावला हो गया है या फिर हवा सूख गई है! अरे, ये बित्ते भर का चूहा जिससे ठीक से चला तक नहीं जाता – जंग लड़ेगा? और वो भी आदमी से – भला कैसे?”

काग भुषंड की बातें सुनकर जमा भीड़ में एक खुसुर-पुसुर चल पड़ी थी। किये सवाल तो सब ठीक थे, जायज थे और उन सबका खुलासा होना भी जरूरी था। आंख बंद कर किसी बात को स्वीकार करने का वक्त तो कब का लद गया था।

पृथ्वी राज बोलने को हुआ था लेकिन तेजी ने रोक लिया था।

नकुल सामने आया था। नकुल ने सभी विराजमान हस्तियों को एक आंख से देखा था। उन सब को उन प्रश्नों के उत्तर दरकार थे – वह जानता था।

“श्रीमान गरुणाचार्य के आदेश और परामर्श के अनुसार ही मैं बोलूंगा!” नकुल ने बात की भूमिका बनाई थी। “लड़ाई का प्रारूप पहले!” नकुल सीधा मुद्दे पर आ गया था। “हमारे श्रीमान काग भुषंड जी प्रपंच आचार्य होंगे।” वह तनिक मुसकुराया था। “कोई भी प्रपंच रचने में इन का इस पृथ्वी पर कोई जोड़ नहीं!” एक हंसी का तूफान तैर कर चारों ओर फैलने लगा था। “और सच में इनकी आंख के जादू का भी कोई तोड़ नहीं!” हंस गया था नकुल।

काग भुषंड का कद उसके सामने आकर खड़ा हो गया था।

“और हमारे धर्म गुरु हमारे परामर्श दाता होंगे श्री गरुणाचार्य!” नकुल ने एक और घोषणा की थी। “सेना पति श्रीमान शेर और उप सेनापति श्रीमान हुल्लड़ हाथी होंगे!” नकुल कहता ही जा रहा था। “राजदूत होंगे हमारे श्रीमान लालू जी और गुप्तचर विभाग का संचालन करेंगे श्रीमान शशांक!”

तालियां बजने लगीं थीं। एक उल्लास उठ खड़ा हुआ था। उत्साह की लहर जमा लोगों के आर पार चली गई थी।

“ग्रह मंत्रालय संभालेंगी श्रीमति चुन्नी!” नकुल ने स्वर को ऊंचा कर घोषणा की थी।

एक बारगी उपस्थित भीड़ ने इस नाम ओर पद पर स्वीकृति की मोहर लगा दी थी। सभी प्रसन्न थे चुन्नी का नाम और काम सुनकर!

“मणि धर! पूज्य सर्प देवता हम सबके राष्ट्राध्यक्ष होंगे!” नकुल ने एक महत्वपूर्ण बात कह दी थी।

एक जोरों का अट्टहास हुआ था। यह पूर्ण सहमति का जयघोष था। समवेत स्वर में सबने उठकर नाग देवता को प्रणाम किया था।

“पृथ्वी राज राजा होंगे और मैं हूंगा इन का अनुचर – महामंत्री!” उसने अंतिम घोषणा की थी और बैठ गया था।

अब बहती इस हवा को रोकता कौन?

“शेष प्रश्न!” काग भुषंड खड़ा हुआ था तो सबकी त्योरियां तन आई थीं। “शेष प्रश्न तो मुझे पूछना ही होगा!” काग भुषंड ने दोहराया था।

दुष्ट तो था ही काग भुषंड! उसे पुचकारना, बहलाना और बहकाना आसान काम नहीं था। राजा बनने का सपना देखते देखते वह प्रपंच आचार्य बना दिया गया था। सब तो प्रसन्न थे लेकिन वह अकेला ही अप्रसन्न था।

“अवश्य पूछिये श्रीमान प्रपंच आचार्य!” नकुल ने सहर्ष अनुमति दे दी थी।

सब जानते थे कि काग भुषंड का छोड़ा तीर कोई मामूली तीर तो होगा नहीं! अगर निशाने पर लगा तो सब ढा देगा ये काना, ये सब जानते थे।

लेकिन किसी भी हाल में अब काग भुषंड के राजा बनने की संभावना तो बहुत दूर जा खड़ी हुई थी। उसे उसके पंख काट कर जहां नकुल ने बिठा दिया था – वह वहीं ठीक था।

“मेरा प्रश्न है – जरासंध?” काग भुषंड ने आंखें मटका कर कहा था। “जरासंध का पद क्या होगा? वह युद्ध में कहां होगा?” काग भुषंड ने चारों ओर जमा भीड़ को देखा था। “इस अमोघ अस्त्र का तिरस्कार होते मैं बरदाश्त नहीं कर सकता!” उसने अपने पंख फड़फड़ाए थे। “अगर जरासंध चाहें तो ..” उसने घातक तीर छोड़ा था।

एक सन्नाटा छा गया था। सब की त्योरियां चढ़ आई थीं। सब ने एक साथ जरासंध की ओर देखा था।

तेजी ने अब पृथ्वी राज को इशारे से कुछ जता कर खड़ा कर दिया था।

“जरासंध और मैं एक शरीर और एक आत्मा की तरह आदमी से लड़ेंगे!” पृथ्वी राज ने ऐलान किया था। “हमारी ये अमोघ शक्ति मेरे हाथ में रहेगी और मेरे साथ में रहेगी!” उसने जरासंध को हंसते हुए देखा था। “इन का इस्तेमाल घोर संकट के समय किया जाएगा!” पृथ्वी राज बताता रहा था।

काग भुषंड का मुंह लटक आया था।

अन्य कोई भी पंचायत से अप्रसन्न होकर नहीं गया था।

मेजर कृपाल वर्मा
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