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जंगल में दंगल महा पंचायत छह

“नकुल नालायक है!” पृथ्वी राज आग बबूला हुआ आंगन में चक्कर लगा रहा था। “हाथियों ने काग भुषंड से हाथ मिला लिया है!” वह बार बार बड़बड़ा रहा था। “खाली डींगें मारता है मूर्ख!” उसने तेजी को घूरा था। “तुम भी हो कि उसे सर पर चढ़ा कर रखती हो!”

“क्यों कि वो हमारा वफादार है ..” तेजी ने तर्क दिया था।

“गद्दार है गद्दार!” भभक उठा था पृथ्वी राज। “जग हंसाई हो रही है!” उसने तेजी को आंखों में देखते हुए कहा था। “मुंह दिखाने लायक नहीं रहे हम!” उसने पैर पटकते हुए कहा था। “हाथियों ने सरे आम ऐलान किया है! कौवों के साथ हाथी गये और हम रह गये मझधार में!”

अब तेजी की आंखों में भी घोर निराशा के पहाड़ उठ बैठे थे। हाथों से खिसकता साम्राज्य उसे भी बुरा लगा था। दिल्ली की महारानी बनने का सपना सच होते होते झूठ में बदल गया लगा था। उसे भी अब नकुल पर क्रोध आ रहा था। वह अपनी भी मूर्खता पर शर्म के सागर में डूबती चली जा रही थी।

“सत्ता मिलना एक बात है और उसे चलाना दूसरी बात!” पृथ्वी राज तेजी को समझा रहा था। “टुच्चे लोगों के कहे गंवारू जुमलों में जो पड़ जाए – समझो कि ..”

“मैं कौन सा नकुल से ..?” तेजी रोने रोने को थी।

“क्यों ..? तुम तो वीरांगना हो ..?” व्यंग किया था पृथ्वी राज ने। “अब दिखाइये अपने जौहर ..?”

तेजी की आंखों से आंसू चुचा रहे थे!

“अरे करामाती ..?” अचानक पृथ्वी राज ने सामने आ गये करामाती को देख लिया था। वो बमक पड़ा था। घोर निराशा के पेट से जैसे एक आशा किरण का जन्म हुआ हो – ऐसा लगा था।

“तुम कब आये करामाती?” उसने पूछा था।

“कीमती से सुना कि नकुल नालायक निकल गया है .. तो ..”

पृथ्वी राज ने नजर घुमाई थी तो उसे कीमती हंसती हुई नजर आई थी। उसे हंसते देख कर पृथ्वी राज को लगा था जैसे उसका साम्राज्य उसके पास लौट आया हो!

डूबते को तिनके का सहारा भी कितना बड़ा सहारा लगता है!

“कोई बड़ी खबर है?” पृथ्वी राज ने सीधा प्रश्न दागा था।

“खबर ही नहीं बड़ी खुश खबरी भी है!” कीमती ने कहा था।

“मुबारक हो महाराज!” अब करामाती ने भी जयघोष किया था। “अब तो आप अवश्य ही इस पृथ्वी के पृथ्वी राज होंगे!”

“सो कैसे जी?” तेजी बीच में कूद पड़ी थी।

अब पृथ्वी राज ने घूर कर तेजी को देखा था तो वह पानी पानी हो गई थी!

उस एक पल कि चुप्पी में पृथ्वी राज को अपना दम घुटता लगा था। वह चाहता था कि जो है वह जल्दी से सामने आये!

“जरासंध आपके मुलाहजा के लिए आ पहुंचे हैं, मान्य वर!” अबकी बार ऐलान शेखू ने किया था। “इजाजत हो तो ..?” उसने अलग से सलाम दागा था।

“अरे रे ..!” पृथ्वी राज बेहद विनम्र हो आया था। “उनके लिए इजाजत की जरूरत कब से आन पड़ी?” उसने बेहद मीठे स्वर में कहा था। “ये तो अमर हैं .. अजेय हैं .. अगोचर और अदृश्य हैं!” उसने एक बारगी जरासंध की स्तुति गान जैसा किया था। “हमारा और इनका तो बड़ा भाईचारा है!” उसने दुम हिलाई थी। “यों छोटे मोटे मन मुटाव तो कहां नहीं होते भाई!” उसने सामने खड़े शेखू को घूरा था। “इन्हें आदर सहित अंदर ले आओ शेखू!” पृथ्वी राज ने आज्ञा दी थी।

तेजी का रंग गुलाबी हुआ लगा था!

देव ने जैसे पृथ्वी राज की पुकार सुन ली थी! डूबते डूबते नाव भंवर से बाहर आ गई थी। वह जानता था कि जरासंध के साथ मिल कर तो उनका संगठन हर किसी पर भारी पड़ना था।

“ये समझौता सुर्खियों में नहीं आना चाहिये शेखू!” पृथ्वी राज ने एक बड़ी हिदायत दी थी। अब उसने मुड़ कर तेजी को भी घूरा था। तेजी थर थर कांप रही थी। “दीवारों के भी कान होते हैं, तेजी!” पृथ्वी राज ने कहा था। “अब तुम दीवारों से भी दूर रहना!” पृथ्वी राज तनिक मुसकुरा गया था।

तेजी की भी जान में जान लौट आई थी!

“गजब हुआ है – गीदड़ भाई!” शशांक के होश उड़े हुए थे। “मान लो कि मर गये!” वह हाथ पैर छोड़ कर जमीन पर लेट गया था। “बर्बाद हो गये भाई!” उसने अपनी पलकें मूंद ली थीं। “सारा करा धरा चौपट!” उसकी सांसें रुकती नजर आईं थीं।

अब लालू भी सकते में आ गया था। अब तक की मिली तमाम सफलताएं परचमों की तरह उसके जहन में लहरा रही थीं। लेकिन आज ऐसा क्या गजब हुआ था जो शशांक जमीन पर जा बिछा था?

“हुआ क्या है .. प्यारे?”

“लाइलाज ..!” शशांक कठिनाई से कह पाया था।

“खोजेंगे इलाज!” लालू तनिक संभला था। “बताओ तो भाई?” उसने बहादुरी के साथ शशांक को राज उगलने के लिए राजी कर लिया था।

शशांक जमीन से उठा था। उसने दो चार लम्बी लम्बी सांसें ली थीं। फिर उसने हवाईयां उड़ाते लालू के चेहरे को देखा था। गीदड़ कितना डरपोक होता है – उसने आज पहली बार अपनी आंखों से देखा था।

“जरासंध पृथ्वी राज से जा मिला है!” शशांक ने बम विस्फोट जैसा किया था।

लालू को काटो तो खून नहीं!

बहुत भीषण खबर थी। परिणाम भी बहुत घातक थे। अगर यह सच था तो दूसरा सच यह भी था कि अब लालू कभी भी पृथ्वी का सम्राट नहीं बन सकता था। उसे अपना समाजवाद का सपना चकनाचूर हो गया लगा था।

पृथ्वी राज तो बना बनाया सामंती था। जरासंध के साथ आने पर तो वह पृथ्वी पर एक छत्र राज करेगा – यह लालू भी जानता था।

“लेकिन ये हुआ कैसे शशांक?” लालू को होश लौटा था तो पूछा था। “जरासंध को तो मैंने कब का मना लिया था?”

“सब सुंदरी की शय पर हुआ है!” शशांक ने स्पष्ट कहा था।

लालू को यकीन ही नहीं हुआ था। वह यह मानने को बिलकुल तैयार न था। उसने अब शशांक को भी प्रश्न वाचक निगाहों में भर कर तौला था।

“मैं .. मैं मानूंगा नहीं शशांक .. कि ..” लालू की जबान लड़खड़ा रही थी। “सुंदरी ..?”

“उसे तुम पर शक हो गया है, मित्र!” शशांक ने दो टूक कहा था। “शेर को भी उसने उलटी पट्टी पढ़ा दी है!” शशांक ने एक और संगीन सूचना दी थी।

मानो पहाड़ खिसल पड़ा हो – लालू के तो हाथ पैर ही सुन्न हो गये थे। अब तो उसके प्राण भी निकलने निकलने को थे। वह जानता था कि शेर निरा क्रोधी था और निरा मूर्ख भी। सुंदरी के तनिक से इशारे पर वह लालू की जान ले लेगा, वह जानता था!

मूर्ख दोस्त से चालाक दुश्मन भला!

“शशांक ..!” लालू के मुंह से शब्द कठिनाई से बाहर आये थे। “अब क्या होगा मित्र?”

“मैंने इलाज भी खोज लिया है!” शशांक ने लालू को प्राण दान दिया था। “फिक्र मत करो लालू!” शशांक ने सांत्वना दी थी। “तुम्हारे समाजवाद के नारे को मैंने बुलंद कर दिया है!” उसने आंखें मटकाईं थीं। “और देख लेना यह जरूर रंग लाएगा!” उसने उम्मीद जताई थी।

“कहीं डूब गये तो मित्र ..?” लालू ने शशांक से विनती जैसी की थी।

“नहीं! डूबेंगे नहीं!” शशांक की बात में दम था।

शशांक का मत था कि प्रपंच की अपनी एक अलग ताकत होती है और अगर ये पनप जाये तो सेनाओं का सफाया होने में भी देर नहीं लगती!

मेजर कृपाल वर्मा

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