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जंगल में दंगल संकट सात

सुंदरी के पास अब अजब गजब के संदेश आने लगे थे।

एकाएक सुंदरी जंगल की जान बन गई थी। न जाने रातों रात उसने इतने सारे गुण और इतना सारा ज्ञान कहां से पा लिया था? न जाने क्यों अब सभी पशु पक्षियों, कीड़े मकोड़ों और जरासीम – जिन्नों को सुंदरी साक्षात देवी स्वरूप नजर आने लगी थी। लखिया वन से हुल्लड़ हाथी उसके लिए नजराना लाया था। बहुत देर तक बेचारा दो पैरों पर खड़ा रहा था। जब सुंदरी ने उसका जुहार स्वीकारा था और उसका हाल चाल पूछा था – तभी वह बोला था।

“बहिन जी! सच मानिये जब हमने सुना कि आप का इरादा आदमी को समूल नष्ट कर देना है तो हमारे उल्लास का अंत न हुआ अब तक!” हुल्लड़ ने सीधा सुंदरी की आंखों में देखा था। चाल और चालाकियों के लिए मशहूर लोमड़ी हुल्लड़ को अब साक्षात जादूगरनी लगी थी। “हमारी तो दुर्गति कर दी इस आदमी ने!” हुल्लड़ की आवाज में दर्द था। “हमारी तो कमर टूट गई है – बोझा ढोते ढोते! सारे कुकर्म हमीं से कराता है जालिम! और ऊपर से भूखा भी रखता है! हमारे पेट को भी कोसता है। चारा भूसा भी नसीब नहीं, करें तो क्या करें?

“अब आप को कुछ करना ही नहीं होगा भाई साहब!” सुंदरी मुसकुराई थी। “वक्त आने पर आप सब लोग अपना अपना मोर्चा संभालें बस!”

“माने कि – युद्ध!” हुल्लड़ की चीख सी निकल गई थी। “अरे रे .. नहीं, बहिन जी नहीं!” वह थर्रा गया था। “हमने तो इस आदमी को लड़ते देखा है!” उसने अपनी सूंड़ को खखारते हुए कहा था। “सच मानिए बहिन जी! गरमा गरम गोलियां, बम धमाके और न जाने क्या क्या लेकर लम्हों में चढ़ आते हैं! हम तो आबले बाबले हो कर भागने का रास्ता तक भूल जाते हैं!” वह तनिक ठहरा था। उसने आजू बाजू लटके लालू, शशांक और जंगलाधीश को घूरा था। “इन लोगों की चिकनी चुपड़ी बातों में मत आ जाना!” उसने सुंदरी को स्पष्ट चेतावनी दी थी। “आदमी भड़क गया तो बाल नहीं बचेगा!”

हुल्लड़ की दी चेतावनी के बाद बहुत देर तक सन्नाटा छाया रहा था। सुंदरी ने जब शशांक पर नजर डाली थी तो वह गोल मटोल गेंद सा बना बैठा ही रहा था। जंगलाधीश हुल्लड़ की कायरता पूर्ण बातें सुन कर क्रोधित हो गये थे।

“घास खा खा कर मनों में गोबर करते हो हुल्लड़!” जंगलाधीश गर्जा था। “जंगल तो अब रहेगा नहीं! लखिया वन में कब तक छुपे रहोगे? गीदड़ की मौत मरोगे भाई!”

“गीदड़ नहीं मरेंगे!” अब मौका पाते ही लालू गरजा था। “गीदड़ों का तो आदमी बाल बांका भी नहीं कर सकता – हम कहे देते हैं!” लालू ने सीधा हुल्लड़ की आंखों में झांका था। “अरे तुम इतने बड़े जिस्म के मालिक हो, इतनी जान के धनी हो! चिंघाड़ते हो तो रोंगटे खड़े होते हैं ओर अब तुम कहते हो कि ..”

“क्या आदमी के लिए तुमने जंग नहीं लड़ीं?” शशांक भी कूद कर सामने आ गया था। “तब तो ठठ के ठठ आदमी तुम्हारे सामने नहीं ठहरते थे! तब तो तुम रोके नहीं रुकते थे ..”

“तब तो बात ही और थी शशांक भाई!” हुल्लड़ चिंतित था। “उन तीर तमंचों से हम नहीं डरते थे! तलवार के वार तो हम पर असर ही नहीं करते थे। हमारी चिंघाड़ सुन कर ही आधे सैनिक भाग लिया करते थे। लेकिन ..”

“लेकिन ..?” जंगलाधीश ने कठोर स्वर में पूछा था।

“अब वह जालिम सामने आता कब है?” हुल्लड़ की आवाज में फिर से एक दर्द उभर आया था। “कहीं दूर बैठ कर निशाना साधता है और मौतें बांटता चला जाता है .. लाशें ही लाशें .. खून ही खून और भीषण हाहाकार ..!

“हम भी आमने सामने लड़ने की बात नहीं सोच रहे हैं हुल्लड़ भाई!” सुंदरी ने मुसकुरा कर कहा था। “जब वह छुप कर वार करता है – तो हम भी छुप कर वार करें!” सुंदरी ने तरीका सुझाया था।

“पर ये कहां छुपा लेगा अपने आप को हाथी!” शशांक मुसकुराया था। “ये तो पूरे का पूरा पहाड़ है! गजर मजर कर जब चलता है तो धरती हिलती है – धरती!”

“मजाक नहीं, शशांक!” हुल्लड़ खीजने लगा था। “पैर रख दिया तो पेट फट जाएगा!” उसने शशांक को चेतावनी दी थी। “तुम तो दोगले हो! उसका दिया भी खाते हो और अब इस खेमे में भी खड़े हो!”

“तुम भी तो उसकी नौकरी बजाते हो?” शशांक सीधा हो आया था। “अब जब सब लोग एक होकर लड़ने की बात कर रहे हैं तो तुम लीद किए जा रहे हो?” शशांक कूद कर जंगलाधीश के पास जा बैठा था।

हुल्लड़ अब निपट अकेला रह गया था। उसकी आंखों में उसका अतीत झांकने लगा था। वह तो आदमी का अभिन्न अंग बन गया था!

कभी आदमी ने गजराज को पूजा था। शाही फौजों का सरगना बन गया था हाथी। मेले दशहरों पर उसे सजाया जाता था। सवारियां निकलती थीं – उसपर बैठ कर! शाही खजानों में उसका हिस्सा था। उसका जैसा खाना दाना मिलता किसको था। कितनी सेवा चाकरी करता था उसकी ये आदमी! वक्त से नहाना, वक्त से खाना और वह फाका मस्ती ..

अब तो उसे कोई मुड़ कर भी नहीं देखता था! बच्चों तक के लिए अब वह कोई अजूबा नहीं रहा था! भूखे पेट यों ही पड़ा पड़ा निरीह आंखों से आदमी को देखते रहना और उससे दया की भीक मांगते रहना ..

“भूखे मर जाओगे गजराज!” लालू गीदड़ ने भविष्य वाणी की थी। “जब जंगल ही नहीं रहेगा .. तो हाथी ..?”

“दूसरी बात ये है भाई साहब!” सुंदरी ने मधुर मुस्कान बखेरी थी। “कि अगर हम सब मिल कर आदमी को छल से, कपट से, हुनर से या हंगामे से मार डालते हैं तो ..?”

“तो – जंगल ही जंगल! चारों तरफ जंगल फिर से उग आएगा! ये धरती हमारी होगी! खूब पानी होगा .. और खूब पेट भर कर खाना होगा ..!” शशांक बता रहा था।

“जंगल में मंगल ही मंगल होगा!” लालू भी हंसा था। “खूब मौज मस्ती होगी। और हम सबका राज होगा!” उसने मुड़ कर जंगलाधीश को घूरा था। “हम सब के हक सुरक्षित होंगे और सत्ता में भी हम सबका साझा होगा!”

हुल्लड़ चकरा गया था। उसकी समझ से बाहर का खेल था। फिर भी जो चल रहा था उसी में शामिल होना उसे अपनी भलाई लगी थी।

“हम तो आपके साथ ही हैं बहिन जी!” हुल्लड़ ने जुहार बजाते हुए कहा था। “अगर जंगल ही जंगल हो और जंगल में मंगल ही मंगल हो तो हमें हानि क्या है?” उसने अब लालू को घूरा था। “सत्ता जो चाहे सो चलाए!” उसका दो टूक जवाब था।

“अब की न कांटे की बात!” लालू उछला था। “हम जानते थे हुल्लड़ कि मोटी अक्ल का मोटा कांटा निकालने में वक्त लगेगा!” अब उसने जंगलाधीश की ओर देखा था। “बहुत लंबी गुलामी किये हो ना!” लालू ने व्यंग मारा था।

“देख लालू ..” हुल्लड़ का अब मिजाज बिगड़ा था।

“अरे नहीं भाई साहब!” सुंदरी ने उसे साधा था।

“साले साहब की बातों का बुरा मत मानिए भाई साहब!” अब की बार जंगलाधीश भी मुसकुराए थे।

अच्छे वक्त आने की एक संभावना मात्र से जमा जानवरों के तन मन खिल उठे थे। लगा था जैसे सुखद पुरवइया कहीं से छूटा हो और उनके गले मिल रहा हो!

“पिछले पड़ाव पर ही छोड़ आये थे हम अपने साथियों को!” हुल्लड़ ने हंस कर बताया था। “हम सोचे न जाने क्या अबाल बबाल हो! सो अकेले ही देख लें तो अच्छा!”

“बहुत डर गये हो न आदमी से!” जंगलाधीश ने हंस कर कहा था। “अब जाओ और खूब ऐशों आराम से रहो!”

“डर को मन से निकाल दो बस!” शशांक भी हंसा था। “हाथी हो! अरे हमें देख लो पिद्दी न पिद्दी का शोरबा लेकिन जंग में सबसे आगे!”

“गीदड़ और शेर का फर्क तो तुम्हें जब नजर आएगा जब जंग होगी!” लालू ने भी व्यंग किया था। “आदमी का सीना फाड़ कर गीदड़ ही दहाड़ेगा!” उसने दांती भिंच कर कहा था। “तुम देखना हुल्लड़ भाई ..”

“साले साहब!” हंसा था हुल्लड़। “अब आपकी बातों का बुरा भी मानें तो क्यों? अब रिश्तेदारियां ही जुड़ गईं हैं तो सब चलेगा!” वह जोरों से चिंघाड़ा था।

“अरे भाई ये गधे नहीं हैं – हाथी हैं!” जाते हुए हुल्लड़ को देख कर सुंदरी ने कहा था। “पल्ले की अक्ल इनके पास है!” उसने मुड़ कर लालू को देखा था।

“ये आदमी का साथ भी दे सकते हैं क्या?” जंगलाधीश ने प्रश्न किया था।

“दे सकते हैं!” शशांक बोला था।

“कैसे ..?” जंगलाधीश तिलमिलाए थे। उन्हें शशांक का उत्तर बुरा लगा था।

“आदमी तो गधे को भी बाप बना लेता है! फिर ये तो हाथी हैं हाथी!” वह जोरों से हंसा था। “आज भी क्या आदमी इनकी कमर पर बैठकर शिकार नहीं करता? देखते नहीं कितनी होशियारी से अंधेरे में आदमी को कमर पर चढ़ा कर जंगल के बीचों बीच ले जाते हैं और निरीह जानवरों को मरवा देते हैं!”

“हाथियों पर भरोसा नहीं किया जाए तो ..?” अब लालू गंभीर था।

“काम नहीं चलेगा!” सुंदरी का दो टूक जवाब था। “हाथी जैसे बलवान को हम आदमी के खेमे में नहीं जाने देंगे!” सुंदरी ने स्पष्ट कह दिया था!

मेजर कृपाल वर्मा

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