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जंगल में दंगल महा पंचायत बारह

चुन्नी के इंतजार ने नकुल को थका दिया था। वह बेताब था कि चलकर मणि धर से मिले और समाजवाद के मुद्दे को तय कर दे। लेकिन चुन्नी के न लौटने का सबब समझ नहीं पा रहा था। जंगल में बहती बयार कुछ ज्यादा ही पेचीदा हो गई थी। अब ऊंट किस करवट बैठेगा – किसी को कुछ पता नहीं था। सब कयास लगा रहे थे – बेकार।

उसे न जाने क्यों तेजी फिर से याद हो आई थी। उसका मन तेजी से मिलने के लिए उतावला बावला हो उठा था।

“अच्छा हुआ आप चले आये देवर जी!” तेजी ने नकुल का मीठी मुस्कान के साथ स्वागत किया था। “अगर आप नहीं आते तो मैं आती।” उसने नकुल को सूचना दी थी। “मैंने पृथ्वी राज को बहुत लताड़ा था।” तेजी बता रही थी। “आपके जाने के बाद मैं खूब रोई थी।”

नकुल तेजी के आगत स्वागत में आकंठ डूब गया था। उसे बहुत भला लगा था कि तेजी उसके प्रति सहृदय थी, उसकी शुभ चिंतक थी और उसकी कद्र भी करती थी।

“कहां हैं भाई साहब?” नकुल ने पूछा था। “पृथ्वी राज भाई साहब ..?”

“रहते कहां हैं घर पर!” तेजी ने उलाहना दिया था। “मैंने तो कह दिया है – यही हाल रहा तुम्हारा तो मैं नकुल भाई साहब के साथ रहने लगूंगी।”

“सच ..?”

“सचच!” कहकर हंसी थी तेजी।

नकुल के सामने एक स्वर्ग जैसा कुछ आकर बस गया लगा था। वह और तेजी .. साथ साथ रहें और अकेले रहें? फिर बेखबर बने रहें दुनियादारी से और फिर ..?

“मैंने आपको महामंत्री चुन लिया है, नकुल भाई साहब!” तेजी तनिक खिसक कर नकुल के पास आ बैठी थी। “अब हमारा मणि धर से समझौता हो गया है! भोली मौसी ने हमारा साथ दिया है। अब जरासंध भी हमारा है और सत्ता भी हमारी।” हंस गई थी तेजी। “और अब आप ..”

“महामंत्री ..?” नकुल ने एक किलक लील कर पूछा था।

“हॉं हॉं! महामंत्री देवर जी! आप होंगे महामंत्री आप!” तेजी नकुल से लिपट जाना चाहती थी।

“और पृथ्वी राज ..?”

“छोड़ो भी उसे!” मुंह बिचकाया था तेजी ने। “काम का ही लहोकर है। सो लगा रहेगा काम से।” तेजी ने आंखें मटकाई थीं। “सत्ता तो मैं और आप ही मिलकर संभालेंगे देवर जी।” तेजी ने घोषणा की थी।

अच्छा हुआ जो वह चुन्नी के चक्कर से बच गया – नकुल सोचे जा रहा था। मणि धर तो यहां आ मरा। लालची है। अगर चूहे खाने को मिल जाएं तो फिर धरती जाए भाड़ में।

सब अपना अपना स्वर्ग देखते हैं – नकुल सोच रहा था। वही एक अकेला सूरमा था जो औरों के लिए लड़ता मरता रहता था।

अब उसे भी अपना सोच बदल देना चाहिये था – आज नकुल ने निर्णय ले लिया था। तेजी के साथ मिलकर, महा मंत्री के पद पर आसीन होकर उसकी कमान खूब चढ़ेगी – वह प्रसन्न था। इसमें बुरा क्या था?

“मैं आपको कभी भूला नहीं भाभी!” नकुल की जबान से रस टपक रहा था।

“तुम हमारे ही रहोगे देवर जी।” तेजी ने भी हंस कर कहा था। “तुम्हारा तो हम पर अधिकार है।”

मणि धर चूहों से जा मिला था – यह एक गरम गरम खबर थी। उसके विरोध में मणि धर के बैरी नकुल ने भी इस खबर का खंडन नहीं किया था – यह भी एक दूसरा अजूबा था।

तो क्या सांप और नेवला एक थे, और मिल गये थे? लेकिन क्यों? ऐसा क्या जादू हुआ जो दोनों पुश्तैनी वैर भाव को छोड़ कर गले आ मिले थे?

खबर ये भी थी कि ये गुल तेजी ने खिलाया था।

“मेरे तो होश उड़ गये हैं, शशांक!” लालू भी बेदम हुआ जा रहा था। “जिस तरह से ये काला कौवा शोर मचाता फिर रहा है – अगर जंगलाधीश को शक भी हो गया हम पर .. तो समझो?”

“जान तो जाएगी ही पर ..”

“जान जाने की नहीं शशांक अब जान बचाने की सोचो मित्र।” लालू ने आग्रह किया था। “अब कुछ ऐसा करो कि इस कौवे की बात बह जाए।”

“गरुणाचार्य को कह कर इसके पंख कतरवा देता हूँ।” शशांक बोला था।

“हॉं हॉं बिलकुल ठीक! करो इसका इलाज .. जल्दी करो!” तड़प कर कहा था लालू ने।

“ये लो हुल्लड़ भाई!” काग भुषंड हुल्लड़ की कमर पर आ बैठा था। “और भी सुनो!” उसने आंखें मटकाई थीं। “अब और सुनो कि चूहों का राज होगा।” हंस रहा था वह। “कैसे रहे भाई?” उसने प्रश्न पूछा था।

लेकिन हुल्लड़ हंसा नहीं था। उसे तो काग भुषंड की लाई खबर पर यकीन ही न हुआ था। वह तो इसे मजाक ही मान रहा था।

“अब तो मेंढकी भी नाल ठुकवाएंगी?” व्यंग किया था काग भुषंड ने। “अब सब छोटे छोटे मिलेंगे और राज करेंगे!” काग भुषंड ने एक नई व्याख्या जैसी की थी। “सब मिल कर चूहे को ही राजा बनाएंगे और फिर सभी मौज लेंगे!” वह बड़बड़ाता जा रहा था। “न हम कुछ रहे और न तुम हाथी।” उसने एक उलाहना दिया था।

“आदमी के बाद तो राज हाथियों का ही होगा, मृत्युंजय!” हुल्लड़ ने बड़ा ही सधा हुआ संवाद कहा था। “चूहों की तो औकात से बाहर की बात है सत्ता।” उसने दो टूक कहा था। “हाथी ही आदमी के बाद हर तरह की व्यवस्था चला सकते हैं।”

“मैं तो कब से कह रहा हूँ यह।” अब काग भुषंड सामने आ बैठा था। “लेकिन मेरी मानता कौन है?” उसने उलाहना दिया था। “गरुणाचार्य को ही ले लो!” उसने हुल्लड़ को घूरा था। “मैंने जब कहा – करो हमारी घोषणा तो मुकर गया!”

“लेकिन क्यों? हम उसे अच्छे नहीं लगते क्या?”

“अरे नहीं सौदा कर बैठा है लालू के साथ।”

“सौदा! कैसा सौदा?”

“राज आधा आधा!” काग भुषंड ने खुलासा किया था। “सत्ता में साझा – आधा आधा – हमारा तुम्हारा!” वह हंसता रहा था।

हुल्लड़ को हाथ से जाती सत्ता को देख रोष चढ़ आया था। अब वह लालू की बात भी समझ गया था। शेर की दलाली करता लालू और मीठी तुरपें लगाता शशांक हुल्लड़ की आंख में आ लड़े थे। उसका मन हुआ था कि इन दोनों को एक साथ पैर के नीचे धर कर भिंच दे और बना दे इनकी चटनी।

“अगर ये मजाक है तो ठीक है काग भुषंड भाई।” हुल्लड़ ने तनिक संयत होते हुए कहा था। “लेकिन अगर ये कोई गंभीर बात है तो सुनो। चूहे, बिल्ली, नेवले और गीदड़ अगर ये सोच रहे हैं कि आदमी आसानी से मर जाएगा तो गलत सोच रहे हैं!” उसने सामने बैठे काग भुषंड को घूरा था। “आदमी को हम से ज्यादा जानता कौन है भाई!” उसने गंभीरता पूर्वक कहा था। “हमने तो साथ साथ जंग लड़ी हैं! हमने तो उसके साथ धरती का सृजन किया है। हमने तो साथ साथ सब कुछ सहा है और सब कुछ बदा है!” उसने एक लम्बी सांस छोड़ी थी। “आदमी जितना जालिम और है कौन? एक एक की खबर रखता है! सब की नस नस को पहचानता है!”

काग भुषंड तनिक डर गया था। आदमी की ताकत का बखान करता हुल्लड़ उसे बुरा लगा था।

“एक आदमी ही तो है जिसे कुत्ता, बिल्ली, तोता, मैना – शेर बघेर और हाथी चीते सब के सब प्यारे लगते हैं! अब तो वह सब को बचाने की फिक्र में है। वह सबके बारे में सोच रहा है। वह सब प्राणियों के साथ अब हेल मेल से रहने की बात करता है।”

“ये बात गलत है – हुल्लड़ भाई!” भड़क गया था काग भुषंड। “आदमी ही तो है जो सबका हक मार रहा है। ये आदमी कितना नीच है ..”

“हॉं इतना नीच और कोई भी नहीं है!” हुल्लड़ ने भी हामी भरी थी। “और अगर आदमी को भनक भी लग गई कि हम उसका सफाया करने की सोच रहे हैं तो सोच लो सबका सफाया हुआ धरा है!” हुल्लड़ ने अपनी सूंड़ को फटकारा था। “सब को मार देगा और बना लेगा नकली तोता मैना, शेर बघेर और हाथी रीछ!”

थर्रा गया था काग भुषंड! साम्राज्य बनाने का सपना उसे हवा में उड़ गया लगा था। हुल्लड़ की बातों में दम था – वह सोचने लगा था।

“तो क्या तुम भी आदमी को नहीं रोक पाओगे हुल्लड़ भाई?”

“अकेले अकेले तो नहीं!” हुल्लड़ का दो टूक जवाब था। “और हॉं! अगर चूहे राजा बनते हैं – तो बिलकुल नहीं!” उसने जोरों से कान हिलाए थे। “अरे भाई! राजा भी हो और राजा भी न लगे? लगे तो साला चूहा! बहुत जग हंसाई होगी मृत्युंजय!” भभक उठा था हुल्लड़। “हम नहीं मानेंगे किसी पंचायत को। और राजा होंगे हम!”

काग भुषंड उड़ गया था। उसकी आंखों में भरी घोर निराशा को हुल्लड़ ने भी पढ़ लिया था।

चतुराई और चालाकी दो कदम से ज्यादा नहीं चलती!

जंगल की हवा फिर से ठहर गई थी।

मेजर कृपाल वर्मा
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