“इस औरत के साथ स्वामी जी बंधे बंधे लगते हैं! घूम फिर कर इसी को देखने चले आते हैं!” सेवक शंकर की शंका थी। “लेकिन जब जय वीर कोमा में था और छह माह तक बेहोश पड़ा रहा था – ..?”
“पागल! तुझे पता नहीं जय वीर क्या कहता है? कहता है – ये पुनर्जन्म है मेरा जो स्वामी जी की देन है! मेरी हार को जीत में बदलने का श्रेय स्वामी जी को है! जबकि मेरे अपनों ने मेरा सब कुछ लूट कर मुझे मरने के लिए लावारिस छोड़ दिया था!” हरी बताने लग रहा था। “अब जय वीर स्वामी जी का दाहिना हाथ है!” उसने हंस कर बताया था।
अब मैं क्या करूं? चोरी तो पकड़ी जाएगी। आज नहीं तो कल सब लोगों को पता चल जाएगा कि गुलनार का पीतू मैं हूँ! मैं .. मैं .. कचौड़ियां बनाने वाला पीतू, पव्वा पी कर पार्क की बेंच पर सूरज की धूप सेकता घंटों तक बेसुध पड़ा पीतू और कोई नहीं – मैं हूँ ..
“भाग लो!” मेरे मन ने आदेश दिया है। “इससे पहले कि आश्रम के लोग तुम्हें जूतों से मारें – दफा हो जाओ पीतू! भूत विद्या, मल्लही बारह बरस चल्लई! बहुत हुआ – अब भागो!”
“गुलनार को यूं ही बेहोश पड़ा छोड़ जाओगे?” प्रश्न मेरा ही है और उत्तर भी मुझे ही देना होगा!
“गुलनार को बेवफाई के नाग ने कब डसा – कुछ याद है पीतू?” अचानक मेरा पक्ष बोला है। “उसे तुम से ..”
मान लूं इसकी बात? मान लूं कि गुलनार मेरी नहीं रही थी और उसने मुझे ..”
सब छोड़-छाड़ कर भाग लो पीतू!” मेरी आवाज आती है। ये मेरे मन प्राण की पुकार है।
मैं भागा हूँ। चंद्र प्रभा को पार कर गया हूँ। जंगल में आ घुसा हूँ। तनिक होश लौटा है क्योंकि अब मुझे कोई नहीं देख रहा!
“कहां चले मित्र?” जंगल भी पूछ रहा है। “सच्चाई से कितनी दूर भी भागो लेकिन सच तो सच रहता है!” हंस पड़ा है जंगल।
“तो ..?”
“मुकाबला करो! तुमने तो कोई गुनाह नहीं किया? फिर भागते क्यों हो?”
“लोगों को पता चलेगा तो?”
“तो कह देना – मैं पीतू था! अब मैं स्वामी पीताम्बर दास हूँ!”
“लेकिन भाई ..”
“सच कभी नहीं हारता दोस्त!”
“और गुलनार ..?”
“गुलनार जाने! तुम्हें क्या पता कि वो क्यों आई है? वह स्वयं बताएगी!”
हिम्मत को टटोला है – मैंने। मन को कसा है। सच की शरण में गया हूँ। अपने मंत्र – जय श्री राम का जाप किया है और मैं आश्रम में लौट आया हूँ!
“उस औरत को होश आ गया है – स्वामी जी!” शंकर ने बताया हैं।
मैंने कोई उत्तर नहीं दिया है!
मैं अब अशांत नहीं हूँ! अपनी जीने की राह पर अडिग हूँ!
मेजर कृपाल वर्मा

