लेकिन गहन शांति में डूबा मैं अचानक ही रोने लगता हूँ!
“मॉं .. मॉं ओ मेरी मॉं ..! मइया ..! कहॉं चली गई तू ..?”
“रो मत बेटे, राे मत! इतना ही साथ था हमारा!” मोहन लाल गौतम – मेरे पिता मुझे समझा रहे थे। “मैं हूँ न ..!” वह मुझे दिलासा दे रहे थे।
“चौधरी जी! आप से कहॉं चलेगी गृहस्ति? सुधड़ कन्या है! मैंने बात कर ली है। केवल .. केवल एक ऑंख से कानी है! लेकिन .. अब .. आप भी ..” गोपाल पंडित ने प्रस्ताव सामने रक्खा था तो पिता जी मान गये थे।
“क्यों रे! तेरा बाप कानी से ब्याह कर रहा है?” कुल्लू – मेरा दोस्त पूछ रहा था।
“हॉं! कानी से ब्याह हो रहा है! मैं भी बारात में जाऊंगा – हाथी पर बैठ कर!” मैं खुशी से उछल रहा था!
और .. और कानी ने आते ही घर संभाल लिया था। मुझे घरेलू नौकर बना दिया था। मैं अब खाना बनाता था। घर की साफ सफाई करता था और ..
“ओ मॉं सारा दूध गिरा दिया?” कानी चीख पड़ी थी। “नहीं सुधरेगा तू!” उसने मुझे पीटना आरम्भ कर दिया था।
“मत मार कानी .. मत मार! मैं ..” मैं अनुरोध कर रहा था।
“कानी कहता है! न कह मुझे मॉं – ममता ही कह दे! नहीं ..! तू तो कानी ही कहेगा नास पीटे!”
कानी ने एक जोर की लात लगाई थी मुझमें!
“ओ मेरी मइया!” मैं जोरों से डकराया था। “पापा ..!” मैंने सामने खड़े पापा से गुहार लगाई थी। लेकिन पापा मौन ही खड़े रहे थे। वो कानी को न रोकते थे न टोकते थे।
आंगन में पड़ा पड़ा न जाने कब तक रोता रहा था मैं! मुझे किसी ने भी धीर नहीं बंधाया था – गुलनार!
“फिर ..?” गुलनार ने पूछा था। उसकी ऑंखें नम थीं।
“मैं उसी रात घर छोड़ कर गांव से भाग आया था!” मैंने गुलनार को बता कर उसकी आंखों में देखा था।
“हाय राम!” गुलनार ने आह भरी थी। “अनाथों का कोई नहीं होता!” गुलनार ने कहा था और मुझे गले से लगा लिया था।
हम दोनों मिलने लगे थे। साथ साथ जीने लगे थे!
“स्वामी जी!” चौंका दिया है मुझे इस आवाज ने। ऑंखें खोली हैं तो पाया है कि सेवक शंकर मुझे लेने खड़ा है। “आइये!” उसने आग्रह किया है।
मैंने आंसू पोंछे हैं तो पाया है कि आज बहुत ज्यादा भीड़ है। एक बस खड़ी है। दो चार कारें भी हैं। मैं उठा हूँ और उन्हें आशीर्वाद देने चल पड़ा हूँ!
मेजर कृपाल वर्मा

