Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

जख्म भर गया होता

Surinder Kaur Author Praneta
गर तू ही इशक होने से मुकर गया होता।
मेरे अन्दर का वो जख्म भर गया होता।


चहकती फिरती मैं अल्हङ सा यौवन लेकर
रूप मेरा कुछ और निखर गया  होता।


गुब्बार कोई न होता फिर मेरे भी सीने में।
मेरे अंदर का वो शख्स न मर गया होता।


आवारा फिरती न यादें तेरी ज़ेहन में मेरे
तू गर मुझ से किनारा सा कर गया होता।


बात बेबात पे न निकल आते यूँ आँसू मेरे
रंग खुशियों का चार सू बिखर गया होता।
   

सुरिंदर कौर
Exit mobile version