गतांक से आगे :-
भाग – ८०
“चन्दन …! हम लुट गए ….!!” फोन पर आती कविता की डकराहट ने चन्दन महल को बुरी तरह हिला कर धर दिया था ! “लड़कियां …नहीं पहुँचीं …! न जाने ….कहाँ …गायब हो गया …ज-हा-ज ….?” बिलख -बिलख कर बता रही थी – कविता !
चन्दन को जैसे फालिज मार गया हो – बुत बना कविता की डकराहटो को सुन रहा था. वह होश भूल गया था. उसके हाथ कांप रहे थे. होठ हिल रहे थे .. पर शब्द बहार न आ रहे थे. ऑंखें फटी की फटी रह गई थीं…!
“म .. म .. मै करता हूँ कुछ ..!” उसने फोने बंद कर दिया था.
चन्दन महल अब प्रशांत ख़ामोशी में डूब गया था. वह जानता था कि पारुल सोई पड़ी है. गहन निद्रा में डूबी पारुल .. हर घटना से बेखबर है .. बेवकूफ है .. पगली है ..!
“उठो ..!!” चन्दन ने जोर से पलंग में लात मारी है. “गेट उप…!!” वह जोरों से चिल्लाया है. उसे लगा है – जैसे पूरा का पूरा चन्दन महल चीख पड़ा है .. दहला गया है .. रो उठा है.
“क्या हुआ ..?” पारुल उठ कर बैठ गई है. “क्या .. क्या ..!” वह ऑंखें फाडे चन्दन को देख रही है. “मा-ज-रा क्या है ?”
“लड़कियां .. नहीं पहुंची …!” चन्दन सीधा प्रहार करता है. “ज-हा-ज गायब है…!”
“ओह गॉड ..!!” पारुल ने आह रिताई है. चन्दन को गौर से देखा है. बेहोश हो कर वापस पलंग पर लेट गई है ..!
चन्दन ने गप्पा को फोन करके बुलाया है. उसे पारुल की जिम्मेदारी सौंप स्वयं सीधा ऑफिस गया है. जाते ही संभव को फोन किया है. संभव ने उसे आश्वाशन दिया है. पूरा दम लगाने का जिम्मा लिया है.
“पापा ..!” खली का फोन है. “पापा .. वी ….आर फिनिश्ड .. डूमड….!!” वह रो रहा है. “न जाने कहाँ है .. जहाज ..!” वह बिलख रहा है.
“लेट्स नोट लूज होप, बेटे !” चन्दन ने धीरज बंधाया है. “सब ठीक हो जायेगा ! मै लगा हूँ .. कोशिश कर रहा हूँ ..!”
कविता और उसके दोनों बेटों का एक बेहद सुन्दर सपना समुद्र में डूब गया है !
खबर फैल रही है. कयास लगाए जा रहे हैं. टक्कर की जोरों की पब्लिसिटी थी. जरुर ही किसी का किया कुकर्म है ! हो सकता है .. समुद्री डाकू उठा ले गए हों .. राजकुमारियों को ! ये भी हो सकता है कि .. जो लोग नहीं चाहते .. उन्होंने ही कोई स्वांग रचा हो ..?
कंपनी एडी चोटी का दम लगाकर भी जहाज का पता नहीं कर पाई है. आश्चर्य है कि जहाज यूँ कैसे गायब हो गया ? हिन्द महासागर के बारे में ख़बरें आ रही हैं. कहा जा रहा है – कि इतना खतरनाक और कोई सागर नहीं ! होने को तो कुछ भी हो सकता है ..
शूटिंग के लिए तैयार टीम का हाल बुरा है. हाथ पर हाथ धरे बैठे लोग खून के आंसू रो रहे हैं ! यूँ मझधार में डूब गए ‘टक्कर’ के सपने पर हर आँख में आंसू भरे हैं. उन्हें लग रहा है कि अब पटरी बैठेगी नहीं .. ये फिल्म बनेगी नहीं ..! लोगों ने खिसकना आरम्भ कर दिया है ..
“मै खाली बैठी हूँ .. चन्दन …! पैसे नहीं हैं .. जो बिल चुका दूँ ..! बेटे हैं .. कि पागल हो गए हैं ! ” कविता ने फोन पर बताया है. “आ- जा-ओ… चन्दन .. ?” प्रार्थना की है कविता ने.
पारुल ने सब सुना है. सब समझा है. सोच रही है – जाने से पहले चन्दन उसे पूछेगा जरुर ! लेकिन चन्दन सीधा निकल गया है. लक्षद्वीप चला गया है – अपने परिवार को लेने ! “नमक हराम ..!” पारुल ने दांती भींची है.”अब नहीं…! हरगिज .. हरगिज नहीं .. नहीं रहूंगी .. इसके साथ !” पारुल ने प्रतिज्ञा की है. और चन्दन महल को यूँ ही सूना छोड़ निकल गई है.
फिल्म जगत में हंगामा मचा है. टक्कर की हीरोइने गायब हैं. जहाज ही लापता ..! कोई सुराग तक नहीं ! और लम्बे-लम्बे कॉलम .. ऊँचे-ऊँचे कयास .. और अवधारणाएं हवा में तेर आई हैं !
चन्दन कविता और बेटों को घर छोड़ कर लौटा है …!
पारुल के चले जाने के बाद चन्दन महल बे-नूर हुआ खड़ा है. चन्दन को लगा है कि सागर में हिलता-डुलता उसका प्रतिबिम्ब कभी भी टूट कर पानी में घुल जायेगा. उसे अकेले घर में घुसने में डर लग रहा है. “पारुल कहाँ गई होगी ?” एक विचार आया है और चला गया है. “जाये जहन्नुम में !” किसी ने उसके कान में कहा है.
“अकेले हो ..!” फोन बजा है. चन्दन बमका है. “कहो तो .. मै आ जाऊ ..?” उसने पूछा है.
“के-त-की ..?” चहका है, चन्दन. “चली आओ, यार…!” उसने खुल कर निमंत्रण दिया है.
राजन का बुरा हाल है. मरणासन्न हालत में वह चन्दन महल पहुंचा है. वह जानता है कि उसके इंतजार में दरवाजा खुला होगा. उसने दरवाजे को धक्का देना चाहा है .. और …….
“अरे, रे…! हिजड़ा……!!” कार से केतकी ने कूद कर उसका हाथ पकड़ा है. “दरवाजा मेरे लिए खुला है ! तुम्हारी तो गई….!” उसने हंस कर बताया है. “मेने कहा था न .. कि – हिजड़े ! तुझे ये औरत कभी नहीं मिलेगी…? हा हा हा ..! उड़ गई ..!!” केतकी हंस रही है. “हट, परे ..! भाग….!!” उसने राजन को धक्का दिया है ..!
“ब… ब.. बो-त-ल….?” राजन ने कठिनाई से मांग की है.
“ले ..! मर ..!!!” कहती हुई केतकी चन्दन महल की सीडियां चढ़ गई है. दरवाजा भीतर से बंद है.
दरवाजे से टेक लगा कर पीने लगा था, राजन……
न जाने कितने दिनों के बाद वह पी रहा था..? न जाने आज कौन सा दिन था .. तारीख थी ..? न जाने क्यों उसे पारुल नहीं मिल रही थी ? कहाँ खो गया था – उसका वह सुनहरी सपना …! वो .. वो… गोल्ड वाच .. वो-वो .. छोटी का छूना .. और .. वो .. पानी का ज-हा-ज…..!!
“समुद्री डाकू की कहानी चल पड़ी है !” संभव बता रहा था. पूरे दिन की मानस की सैर करने के बाद अब वो दोनों विचित्र लोक में इत्मीनान से बैठ बियर पी रहे थे. “चन्दन ने कहा है कि .. समुद्री डाकू अगर राजकुमारियों को लौटाने की फिरौती मांग बैठे तो .. पारुल देगी – वह नहीं …! हा हा हा….!”
“हा हा हा….” पारुल ने संभव का हंसी में साथ दिया है. “कमीना है ..! और ये कविता है न, अ… क्रूड.. सॉर्ट ऑफ़ अ वोमन ! बहुत घटिया है ..!! कहती है – मेरी मंद बुद्धि बहन .. ! बड़ा घमंड है इसे- अपने उन वाहियात बेटों पर ! और ये चन्दन .. कहता है – ब्रोडली स्पीकिंग .. इट मेक्स नो सेंस …!” मुस्कुराई है, पारुल ! “करले अब शादी….? ले लो… राजकुमारियां .. बहुएं .. धन-माल .. काम-कोटि ..!” पारुल ने संभव को देखा है. “व्हाट अ जोक, यार….! एक हाथ में .. सब इनका…..!” उसने संभव को देखा है. “कविता .. फिल्म इंटरनेशनल ..! कविता .. प्रोड्यूसरस ओफ ‘टक्कर’ ..!! माई… फुट ..!! हा हा हा ….!!”
“हिम्मत कर ली तुमने .. वरना तो ..” संभव ने एक खतरनाक सम्भावना को सामने रख दिया है.
“अब नहीं ! नो होप ..!! दो चार दिन और .. बात बह जाएगी ..! उसके बाद तो अपना अमर-प्रेम ..” संभव ने पारुल को देखा है. “परसों .. रात के तीन बजे निकलेंगे !” उसने बताया है.
रात के तीन बज गए हैं ! राजन – पीने के बाद भी बेहोश नहीं हुआ है. उसके जहन में पारुल कांटे की तरह बार-बार चुभ रही है .. चैन नहीं लेने दे रही है. वह उठा है और चल पड़ा है. सड़क पर वह अचानक मुडा है. पुलिस स्टेशन का बोर्ड सामने है. लिखा है – पुलिस अधीक्षक रमेश कुमार ! वह ठिठक कर खड़ा हो गया है ! “हिजड़े…! तुझे .. ये औरत…” केतकी की आवाजें आ रही हैं ! “ये औरत नहीं .. नागिन है !” राजन ने स्पष्ट कहा है. फिर कुछ सोच कर बोला है – नहीं, नहीं ! ये सती है .. सच्ची है .. पतिव्रता है ..! पा लिया न इसने चन्दन को ..? और .. पारुल ..? ‘दगाबाज .. तोरी बतियाँ .. ‘ गा उठा था, राजन. “बेईमान औरत ..!” उसने कहा था. घृणा से राजन के बदन में आग जल उठी थी.
“ये आदमी ..!” उछल पड़े थे, रमेश कुमार! वह अभी भी गायब हो गई राजकुमारियों की तलाश में लगे थे. “अरे, रे…! तुम .. राजन ..?” चलते हुए उन्होंने आश्चर्य व्यक्त किया था. “कैसे ..? उनका प्रश्न आया था.
“ये उस जहाज पर था, जनाब .. जो मिल नहीं रहा है !” इंस्पेक्टर प्रमोद ने बताया था. “आपको कुछ बताना चाहता है !”
“बयान लिख लो …!” रमेश कुमार ने आदेश दिए थे.
“मुझे याद है .. मै जहाज पर था ! सब सो गए थे. मुझे नीद नहीं आ रही थी .. नशा भी न था .. पर में सपने .. माने के सपने संजो रहा था. तभी जहाज अचानक गोल-गोल घूमने लगा था. तीन चक्कर काट कर फिर एक ओर भाग निकला था. मै घबरा गया था. मेने अपनी गोल्ड वाच उतार कर टैग पर टांग दी थी .. और लगा था .. खिड़की का शीशा तोड़ने ! मेने उठा कर भारी हैमर कांच पर दे मारा ! कांच टूटा – हैमर भागा और मै भी हैमर के साथ समुद्र में जा गिरा. जहाज तो भाग गया ….और…. मै ..”
“बच कैसे गए ..?” इंस्पेक्टर प्रमोद ने पूछा था.
“पता नहीं ..! कहते हैं – मछुआरे,… कि समुद्री तूफान ने मुझे उठा कर उनकी नाव पर फेंक दिया था. फिर उन्होंने .. बचा लिया .. और बम्बई भेज दिया !”
“कंपनी वाले आ गए हैं !” रमेश कुमार कह रहे थे. “प्रमोद ! इसे इन के हवाले कर दो …!” उनका आदेश था.
गोल्ड वाच के सूत्रों को पकड कर कंपनी ने जहाज की लोकेशन तलाश कर ली थी. जहाज और लाशें सभी बरामद हो गए थे. पूरे विश्व में ये एक हंगामा खबर थी ! हर अखबार में चित्र छपे थे राजन के… और एक बार फिर वह सुर्ख़ियों में आ गया था…! उसकी कहानियां छपने लगी थीं ..
“क्यों रो रही है माँ ..?” कन्हयाँ ने सावित्री से पूछा था. वह देख रहा था कि सावित्री की मोटी-मोटी आँखों में गरम-गरम आंसू बह कर अखबार में छपे राजन के चित्र पर जा गिरे थे. “कौन है ,ये आदमी ..?” कन्हयाँ ने पूछा था. “आप जानती हैं, इसे ..?”
“ले ..! पढले ना ..? सावित्री ने आंसू पोंछ अख़बार कन्हयाँ को पकड़ा दिया था.
नए साम्राज्य का उत्साह .. उमंग .. और स्वप्न आ आ कर संभव और पारुल के पास बैठ रहे थे. हर बार कोई नई ख़ुशी खोज लेते .. तो हर बार किसी पुरानी घटना पर हंस लेते ! और न जाने उन दोनों ने कितनी बार उलट-पुलट कर देख लिया था – अपने नए संसार को. सुन्दर था .. सात समुन्दर पार था .. अज्ञात था .. और हर आंख से परे था …! संभव ने अबकी बार कोई गलती की ही न थी. नयी-नयी संभावनाएं आज उन दोनों के आजू-बाजू खड़ी थीं .. हंस रही थीं …!
कब तक हँसे – कोई …? वक्त तो ठहर कर खड़ा हो गया था …! तीन बज कर ही न दे रहे थे. अभी तक कुल दो बजे थे. आज नीद तो लौटी ही नहीं. शायद उसे पता था कि ..
“टन- टन- टन …!” घंटी बजी थी. लेकिन क्यों ..? टैक्सी वाले को तो तीन बजे बुलाया था …?
“मै देखता हूँ ..!” सहमते हुए संभव उठा था. “तुम ठहरो यहीं !” उसने संकेत दिया था. फिर बड़े ही एतिहात के साथ दरवाजा खोला था.
रमेश कुमार का चेहरा देखते ही संभव को सांप ने सूंघ लिया था……!
“हमारा प्रेम .. श्रापित है, संभव…..!” पारुल बिफर-बिफर कर रो रही थी.
“चलिए ..!!” रमेश कुमार ने बड़ा ही सभ्य आग्रह किया था !
उस रात काम कोटि खाली हो गई थी ..
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य …!!

