Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

हम आखिर

Surinder Kaur Author Praneta
भूलने को तो बहुत सी बातें भूल जाती हूँ मैं
मगर जो भूलना चाहती हूँ वो क्यू याद आते है।

कुछ लोग बिछङ कर भी साथ साथ होते है।
कुछ साथ हो कर भी क्यू बिछङ जाते है।

हमसफर ,हमराह ,हमजुबाँ तो मिल जाते हैं
हमख्याल, हमनवाँ ही क्यू दिल को भाते हैं।

सजाये रखते हैं हम जिनको दिल के कूचे मे
हम आखिर उनके दिल तक क्यू नही जा  पाते हैं।

दहशत पसरी है हर बस्ती में खौफ है हर तरफ
गर हम आदमी हैं तो इंसान क्यू नही बन पाते।           

सुरिंदर कौर
Exit mobile version