Site icon Praneta Publications Pvt. Ltd.

Hindoo – Raastra

मेरी रूह काँप-काँप गई थी !

भारत का जाग्रत भविष्य !!

उपन्यास -अंश :-

मैं ही क्यों पूरा जगत जैसे आतंकित हो उठा था – सिकंदर लोधी के किए अत्याचारों से !!

बोधन को आज मालिकों के चौराहे पर जिन्दा जलाया जाना था . बहादुर खान का फरमान लोधी के फरमान के साथ-साथ हवा पर लहरा रहा था . जन-मानस को आदेश थे कि वो बोधन की चिता का निर्माण करें . और अब मालिकों के चौराहे पर एक विशाल चिता का आयोजन किया जा रहा था . लोग घर-घर से आ कर कंडे,उपले ,लकड़ी और घी-तेल उपलब्ध करा रहे थे . बहादुर खान ने बोधन को ठीक चिता के ऊपर टांगने के लिए ख़ास किस्म का एक ढांचा तैयार कराया था ताकि लोगों को बोधन जिन्दा चिता में जलता दिखाई दे !

अनिष्टकारी एक द्रश्य घटता ही चला जा रहा था !! 

बहादुर खान के चार सिपाही बोधन को जंजीरों में बांधे मालिकों के चौराहे पर ले आये थे ! गैरिक अलफी में लिपटा बोधन का शरीर जर्जर हो चुका था . लेकिन उस के चहरे पर जो तेज धरा था -अविस्वसनीय था !

मैं छुप कर घर से निकला था . मुझे पता था कि माँ मुझे किसी भी कीमत पर बोधन के होते बध को देखने की इजाजत न देंगीं . लेकिन मुझे तो उसे उत्सर्ग करते देखना था ! मुझे तो इतिहास के एक सच्चे गवाह की तरह बोधन के चरित्र को ले कर चलाना था !!

हिन्दूओं के हौसले पस्त करने का ये सिकंदर लोधी का एक जौमदार उपक्रम था ! 

उन के धर्म-गुरु ,मसीहा, कर्णधार , महात्मा और महान पुरुष को यों जिन्दा चिता में जला कर मारना एक असाधारण घटना थी . हिन्दूओं के लिए मैदान में आने की खुली चेतावनी थी और उन के लिए धर्म- परवर्तन करने के लिए सही मौका था ! बहादुर खान इस घटना को तूल दे रहा था और वह चाह रहा था कि हिन्दू बड़ी से बड़ी संख्या में धर्म-परिवर्तन करें !

यह एक विचित्र उत्सव था जो आंसूओं और कहकहों के बीचों-बीच से गुज़र रहा था !! 

मैं न तो रो ही पा रहा था …. न ही हंस पा रहा था और न ही वक्त को रोक पा रहा था ! अपने छुटपन पर उस दिन मुझे पहली बार शर्म आई थी . समर्थवान बनने की मेरी लालसा का उस दिन ही उदय हुआ था .! मैंने …कुछ …कोई …या कि  एक पुरुषार्थी …मनुष्य बनने की शपथ ली थी …..और उसी दिन निर्णय लिया था कि मैं  इन होते अत्याचारों से लडूंगा ….मानूंगा नहीं !!

"खड़ा करो इसे चिता पर ला कर ……!" बहादुर खान का हुक्म गूंजा था . 

दो पहर हो चुकी थी . सूरज आसमान पर सीधा खड़ा था . आग वरस रही थी . निराशा के बादल गहरा रहे थे . लोगों के मन-प्राण पर ग्रहण लगा हुआ था . 

बोधन ठीक चिता के ऊपर एक दुर्दांत शेर की तरह आ खड़ा हुआ था !! 

"कहो ….जो भी कहना है …..!" बहादुर खान ने आदेश दिया था . 

बहादुर खान को उम्मीद थी कि बोधन अब प्राण-दान की भीख मांगेगा . वह जानता था कि वो ….शायद लोगों से धर्म-परवर्तन के लिए भी कहे ताकि उसे प्राण-दान मिले . लोग भी अब बोधन को सुनने के लिए बैचैन थे . बोधन उन का 'देव-पुरुष' था – ये सभी जानते थे ! 

बोधन ने जमा भीड़ को आँखें पसार कर देखा था !! 

बहुत सारे हाथ थे …जो एक साथ बोधन के समर्थन में उठे थे ……हिले थे ….हवा में लहराए थे …..और फिर उस के उठे हाथ के साथ ….हवा पर तने ही रहे थे !!

"दुराचारिओ !" बोधन की जौमदार आवाज़ आसमान पर चढ़ कर गूंजी थी . "ये ज़मीन वन्द्या नहीं है ! क्रांति यहाँ अंतरतम से आती है …और अजश्र प्रवाह बन कर प्रेत-घरों को रेत -घरों में बदल देती है ! भूमि-पुत्रों की अवहेलना कई सिंहासनों को लील गई है ! भूमि-पति कोई नहीं . और अगर किसी को सिकंदर लोधी की तरह भूमि -पति होने का भ्रम हुआ है ….तो उसे स्वाभि-शाप के सर्पों ने डसा है . अत्याचार और अनाचार होने पर घनघोर तमिश्रा की कोख से कारागार में जनाकांक्षा के प्रतीक , बदलाव के संवाहक शिशु का जन्म होता है ! युगांतर की पीड़ा झेलती है – धरती …..धरती के लोग ….और ये बदलाव प्रसव की पीड़ा से कम नहीं होता …..! क्रूरता,अन्धता,बधिरता,कुटिलता और कु-मंत्रणाएं  क्रमश अंतिम आहूतियां बनती हैं ….और लाक्षा-ग्रहों के स्मृति-शेष बन जाते हैं …..और साम्राज्य अन्ततह …भस्मीभूत हो जाता है !" बोधन ने फिर से हाथ उठाया था . उस ने फिर से जमा लोगों को आँखें पसार कर देखा था .

"मैं अब श्राप देता हूँ ….!!" बोधन का स्वर गरजा था . "लोधी-वंश का सर्वनाश होगा ……! न कोई नाम लेवा बचेगा …..न कोई पानी देवा रहेगा ….!!" वह रुका था . इस बार उस की द्रष्टि बहादुर खान पर आ कर टिक गई थी . "और तुम – बहादुर खान .मेरे पूर्व शिष्य प्रेम…..! धर्म-परिवर्तन के अपराध-स्वरुप कोढ़ी हो कर मरोगे …..!!"

"लगा दो ….आग ….! जला दो …इस पाखंडी को …..!!" बहादुर खान ने हुक्म दागा था .

मेरी रूह काँप-काँप गई थी !

चिता में अग्नि प्रज्वलित हुई थी . धू-धू कर आग चिता के चहुँ ओर उठ खड़ी हुई थी . बोधन का शरीर लपटों ने लपक कर लीलना आरम्भ कर दिया था . लोगों से ज्यादा बहादुर खान को उम्मीद थी कि जिन्दा जलने की मर्मान्तक पीड़ा से बोधन चीखेगा-चिल्लाएगा ….रोयेगा ….हाथ=पैर फेंकेगा …और तब वो बोधन से उसे दिये श्राप का प्रतिकार चुकाएगा ! हंसेगा वह ….खुल कर हंसेगा …..तालियाँ बजा-बजा कर हंसेगा …..अपने सैनिकों के साथ …और धर्म-परिवर्तन को फिर से जनता के सामने एक चिनौती के रूप में रख देगा !

लेकिन असमंजस ही था कि चिता में जिन्दा जलते बोधन की और से 'गायित्री-मंत्र' के जाप के ही स्वर सुनाई दिय थे . बोधन ने अपने दुश्मनों के दिल जैसे दहला कर धर दिय थे . बहादुर खान के चहरे का नूर जाता रहा था और उस की आँखों में घोर निराशा घिर आई थी ! 

हार हुई थी – सिकंदर लोधी की ! बोधन – एक महात्मा के हाथों आज बादशाह सिकंदर लोधी हार गया था !! बोधन का दिया श्राप दशों दिशाओं में गूंजा था ….आसमान पर चढ़ कर बिजली की तरह चमका था …..और जनता के दिल-दिमाग में एक अजेय अस्त्र की तरह दर्ज हो गया था ! 'परमसत्य' है ! लोगों ने बोधन के कथन को समर्थन दे दिया था . 'देव-पुरुष' झूठ नहीं बोलते ! सिकंदर जैसे आताताई का अंत तो आ कर ही रहेगा ! और ये बहादुर खान – रंगा गीदड़ अवश्य ही कोढ़ी हो जाएगा और ….डकरा-डकरा कर मरेगा . राजा हो कर इस तरह के दुष्कर्म शोभा नहीं देते …..लोगों की अंतिम राय थी ! 

बोधन जैसा महात्मा क्या मांग रहा था सिकंदर लोधी जैसे सम्राट से ….?

मेरी समझ में बोधन का कहा एक-एक शब्द अर्थ ओढ कर आ खड़ा हुआ था . 

सिकंदर लोधी को लोगों के सामने फटकारना और श्राप देना -बोधन की ओर से आया प्रत्याक्रमण था . जहाँ सम्राट ने बोधन के पार्थिव शरीर को जला कर भस्मीभूत कर दिया था ….वही बोधन ने सिकंदर लोधी को जीते-जी मार डाला था ! जनता के जहन  में अब वह था ही नहीं …..और लोधी-वंश भी एक लाश बन कर झूल गया था ! बहादुर खान तो जैसे सड़कों पर कोढ़ी बना उन के आमने-सामने मारा-मारा फिर रहा था ….और लोग उस में जूते मार रहे थे ….पूछ रहे थे – 'और बनेगा मुसलमान ….?' धर्म-परिवर्तन पर तो बोधन की मौत ने पहरे बिठा दिए थे . अब लोगों को अपनी जान तक की परवाह नहीं थी !!

युग का अमर प्रणेता बन गया था – बोधन …..!!

"अच्छा नहीं हुआ , हेमूं …..!" गुरु जी हिलकी बांध कर रो रहे थे . "हम …हिन्दू ….न जाने क्यों सब कुछ होने के बाद भी …..परास्त हो जाते हैं …..?" उन का उल्हाना था .

"हम परास्त हुए कहाँ हैं , गुरु जी …..!" मैंने प्रतिवाद किया था . "जो महात्मा बोधन का मर्म है …वह तो सिकंदर लोधी समझ ही नहीं सकता ! हिन्दूओं की तो जीत के नगाड़े बज रहे हैं ……और …."

"वो कैसे ….?"

"सिकंदर लोधी ही नहीं …..'लोधी-वंश' का अंत आया मनो !" मैंने अपना मत बताया था . 

"तुम्हारे मुंह में घी-शक्कर , बेटे ! पर ……?" 

"पर क्या ….! में तो चाहूंगा कि हम ……महात्मा बोधन की समाधि मालिकों के चौराहे पर बनाएंगे ….."

"वक्त आने दो , बेटे !" गुरु जी ने मुझे आशीर्वाद दिया था . "में चाहूंगा कि तुम पहले समर्थ बनो …..! तुम ……" चुप हो गए थे , गुरु जी . 

उन के मन में कुछ था . वह कुछ कहना चाहते थे . लेकिन न जाने किस डर के भय से कह नहीं पा रहे थे . आज तो में भी चाह रहा था कि हम दोनों के बीच बातें खुल जाएं ! हमारे बीच का पर्दा आज हट जाए !! 

"चाहत तो हम दोनों की एक है ….., गुरु जी !" मैंने उन की आँखों में झांका था . "में भी एक सामर्थवान पुरुष बनना चाहता हूँ …..में चाहता हूँ कि …इतनी शक्ति-संचय करूं …..जो किसी भी उठते गलत हाथ को मोड़ दे ! में तो चाहता हूँ कि ……."

"लोधी वंश का अंत तुम्हारे हाथों हो ……..मेरी भी यही मनोकामना है , हेमूं !" गुरु जी अंतरतम की गहराइयों से बोले थे ! 

फिर हम दोनों चुप हो गए थे ! शायद हमें वक्त की राय भी ले लेनी चाहिए थी …..!!

……………………….

श्रेष्ट साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

Exit mobile version