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हर कुत्ते के दिन होते हैं

सपना सोफे पर बैठी हुई थी। पूरा मैंस स्टाफ उसकी खातिरदारी में लगा हुआ था। वह सी ओ साहब की कुतिया – सॉरी माई फॉल्ट, सपना थी। फिर जैसे ही मेजर हैरी – माने हरिन्दर मैंस में अंदर आये थे, सपना उनकी गोदी में आ बैठी थी। ठीक उसी समय सी ओ साहब का आगमन हुआ था। सपना ने कूद कर उनका स्वागत किया था ओर मूक भाषा में कहा था – देखा! कितने अच्छे हैं हमारे हैरी।

“हरिन्दर बेटे! अब तुम छुट्टी जा सकते हो।” सी ओ साहब कह रहे थे। “अब वर्मा आ गया है। संभालेगा तुम्हारा काम!”

मैं नया नया पलटन में पोस्टिंग पर आया था। सपना ने मुझे घूर कर देखा था और निगाहें फेर ली थीं।

“यार कृपाल! मैं कोर्स पर जा रहा हूँ। तू मेरी बोनी को रख ले। कुल तीन महीने की बात है।” अचानक ही मैं राजेश की आवाजें सुनने लगा था।

मैं जानता था कि राजेश और उसका सेवादार दोनों ही बोनी की सेवा में संलग्न रहते थे। अब में अकेला तो नहीं था। कुसुम को यों भी कुत्तों से ज्यादा प्यार लगाव नहीं था। और हमारे तीन बच्चे भी थे। राजेश तो अकेला था अभी और बोनी उसके लिए उसका सर्वस्व थी।

“यार हमारे बस की बात नहीं है।” मैं साफ नाट गया था।

मैं ही क्यों कुसुम भी जानती थी कि आज कल कुत्तों का युग चल रहा था। कुत्तों को कुत्ता नहीं उनके नाम से बुलाया जाता था। उनके कपड़े लत्ते, खाना खुराक और दवा गोली, सब उनकी सेवा में शामिल थे। उनकी गणना वी आई पीज के साथ होती थी। उनके गुण ग्यान की चर्चा करना भी जरूरी होता था। और कोई कुत्ता जैसे कि सपना सी ओ की डॉगी हो तो फिर तो ..

कर्नल जौहर के दो कुत्तों का भी यही हाल था। उनके नाम सोफी और सोनी थे। जो भी उनके घर आता था, उन कुत्तों के गुण जरूर गाता था। हालांकि वो इतने बहादुर थे कि बिजली चमकते ही बिस्तर में घुस जाते थे। लेकिन उनके नखरे राज कुमारों जैसे थे।

“कृपाल तुम्हें कुत्ते क्यों पसंद नहीं हैं?” जब कर्नल जौहर ने पूछा था तो मैं बगलें झांकता रह गया था।

और हां! जब कभी मेरा बंबई जाना होता था तो कपिल कुमार के वो दोनों कुत्ते मुझे आया देख रूठ जाते थे। भाई! थे भी दोनों अजब गजब कुत्ते! कपिल जी जब भी शूटिंग से लौटते तो पहले उन दोनों कुत्तों – रुन-झुन के साथ खेलते, बतियाते, खिलाते पिलाते और फिर उन्हें घुमाने ले जाते। मैं भी उनके साथ साथ लटका रहता। कहां जाता? वो तो बैचलर थे।

“कपिल जी!” मैंने एक दिन उनसे अनुरोध किया था। “शादी कर लो!”

“हाहाहा!” जोरों से हंसे थे कपिल जी। “यू आर जैलस ऑफ रुन-झुन आई नो!” उनका आरोप था।

और अब देखता हूँ कि डॉग्स और डॉगीज का संसार बड़ा ही मोहक बन गया है। घुमाने ले जाते लोग अपने डॉग की पूप उठाने के लिए पत्तल ले कर चलते हैं तो कितने अच्छे लगते हैं! और कुत्तों के नए नए परिधान बड़े ही मोहक लगते हैं। कुत्तों के खाने में आज कल राजमा चावल से लेकर कुछ भी चलता है। आज कुत्ते साथ खाते हैं, साथ नहाते हैं और साथ सोते हैं।

“गेट आउट यू ब्लाडी बिच!” अचानक मेजर हैरी के स्वर चले आते हैं। उन्होंने लात मारकर सपना को मैंस से बाहर फेंक दिया था। सी ओ साहब पोस्टिंग पर चले गये थे। अब सपना निपट अकेली थी। “पूअर थिंग।” मेरे मुंह से निकल गया था तो हैरी ने मुझे मुड़ कर घूरा था।

हर कुत्ते के दिन होते हैं, मुझे याद आ गया था!

मेजर कृपाल वर्मा
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