गतांक से आगे :-
भाग – ७०
केतकी का जैसे तीसरा नेत्र खुल गया था ! और वो जो देख रही थी – अप्रत्याशित था …..एक अजूबा ही था ….!!
सुबह की ब्रह्म मुहूर्त बेला में .. भीगे-भीगे समुद्र तट पर आहिस्त-आहिस्ता .. सधे और संभले क़दमों से एक परछाई चलकर जाती थी .. चलती चली जाती थी – इस तरह जैसे वह कोई दिव्य छाया हो .. स्वर्ग से उतर कर धरा पर चली आई हो – न जाने क्यों ? शायद किसी श्राप वश उसका आना हुआ होगा – केतकी का अनुमान था !
जिस तरह वह चलती थी .. जिस अदा से वो विचरती थी – और जिस परिधान में वह सजी संवरी होती थी – केतकी के लिए वह सर्वथा नया था !
और, हाँ ! हाँ…..! शाम के आलोक में भी वह चली आती थी. देर रात तक यूँ ही डोलती रहती थी और फिर जाती थी .. आहिस्ता- आहिस्ता अस्ताचल में अलोप हो जाती थी ..
“कहाँ जाती है ..?” केतकी जाना चाहती थी. और फिर जब उसने रात में उसका पीछा किया था तो उसे एक सदमा लगा था – यह जानकार कि वह तो पारुल थी .. और चन्दन महल में चली गई थी …!
केतकी को अचानक याद हो आया था कि चन्दन महल की रौशनी रात भर रहती थी ! कौन सा रतजगा चल रहा था ..? क्यों चल रहा था ..? कहाँ जाती थी वह, यह जानने के लिए अब उसने चन्दन महल पर पलकों के पहरे बिठा दिए थे !
चन्दन अफ्रीका में था – केतकी यह तो जानती थी ..!!
लेकिन जिस जंग को पारुल लड़ रही थी – उसका किसी को भान तक नहीं था !
वह अकेली थी – निपट अकेली. आज उसका इस संसार में कोई न था. चन्दन – जिसे वो अपना सर्वस्व सौंप बैठी थी – इस जंग से बेखबर था ! वह चाहती भी न थी कि चन्दन को अपनी इस जंग में उतारे ! वह तो उसका जिक्र तक चन्दन से न करना चाहती थी. चन्दन तो उसके लिए ..
“और चन्दन बोस .. कौन सा प्रिन्स है ..?” लब्बो की आवाज थी .. “और आप भी कौनसे राजवाड़े की बेटी हैं ..?” शब्बो पूछ रही थी.
मात्र स्मरण से पारुल को पसीना आने लगा था. उसी की बेटियां आज उसी से प्रश्न पूछ रही थीं ! और फिर .. महारानी सोना की घूरती आँखें .. और वो समीर सेकिया का फन फैलाकर खड़ा अजगर ..! बारी-बारी उसे बाँट रहे थे .. तोड़ रहे थे .. काट रहे थे ..! पूरा का पूरा सेकिया राज-कुल एक हो – उस अकेली पर हमला कर रहा था और उसे परास्त कर देना चाहता था और चाहता था कि .. वो ..
“नहीं, नहीं !” पारुल ने अस्वीकार में सर हिलाया था. “मै हारुंगी नहीं …!” उसने शपथ ली थी. “सेकिया राज-कुल का ऋण है तो चुकाउंगी ..!!” वह मुस्कुराई थी.
पारुल का दिमाग अब लड़ाई के लिए हतियार तलाशने निकला था …!
वह चाहती थी कोई ऐसा हथियार जो उसकी बेटियों के कोमल-कोमल बदन छूकर लौट आये .. बिना कोई दंस दिए .. बिना घायल किये .. और उन्हें प्रेम-पूर्वक उसकी सम्मति के साथ लाकर बिठा दे .. और उन्हें राजी कर ले कि वो राजे-रजवाड़ों के राजकुमारों के साथ ही शादियाँ ..
“शादी ही तो हतियार है, पारुल !” न जाने कहाँ से और कैसे पारुल अचानक क्रिस्टी की आवाजें सुन रही थी. “अकल से पैदल हो पारुल …!” उसने उलाहना दिया था. “रिंग पहन कर बैठी हो ,…..हो गया बेकार- वो पुरानी शादी का टोटका …!” वह मुस्कराई थी. “खा जायेंगे .. तुझे तेरे ये दुश्मन ! ये नहीं भूले हैं तुझे ….!!” क्रिस्टी बताने लगी थी.
“तो ..?” घबराते हुए पारुल ने पूछा था.
“शादी कर ले, .. पेड़ से .. पत्थर से .. कुत्ते से ….!” बेबाक आवाज थी क्रिस्टी की. “फिर जब चाहे लात मार कर भगा देना ..! हा हा हा…! मुझे देख, न …! एश ले रही हूँ, पारुल !”
चन्द्रमा पर लगा ग्रहण जैसे समाप्त हो गया हो – इसी तरह पारुल एक साथ प्रकाश में आ खड़ी हुई थी. आशाओं और आकांक्षाओं ने उसे एक साथ आकर अधर उठा लिया था ! वह उल्लसित हो उठी थी. चन्दन, हाँ ! उसे चन्दन से विवाह करने का तो मन-प्राण से इन्तजार था. चन्दन तो विवाह के प्रस्ताव पर उछल पड़ा था. चन्दन से विवाह करने के बाद तो – सोना महारानी का सर कट जाएगा .. और उसका भूत भाग जायेगा .. समीर सेकिया का विषधर और फिर तो ..उसकी प्यारी-प्यारी बेटियां ..भी …
“न जाने कब लौटेगा चन्दन ?” एक नई चिंता ने आ -दबोचा था पारुल को !
अब उसे चन्दन के आने का इंतजार था .. अब वो पलक-पायंडे बिछाये अपने प्रियतम चन्दन के आने के इंतजार में एक पाँव पर खड़ी थी. सोते जागते उसे चंदन ही दिखाई दे रहा था और जाने अनजाने उसे अपनी शादी के नगाड़े बजते सुनाई देने लगे थे !
चन्दन महल फिर से क्यों सोने लगा था – केतकी समझ न पाई थी…. !!
‘प्यार घर’ बनने के विचार के साथ राजन आसमान पर ऊँचा उड़ रहा था…..!!
जापान की कंपनी ‘के सी’ के साथ उसका अनुबंध होने वाला था. उन्हें राजन का ‘प्यार घर’ का विचार और सौदा पसंद था. उन्हें लगा था कि ‘प्यार घर’ का प्रोजेक्ट अगर संभल गया तो उनकी कंपनी के लिए जन्नत के दरवाजे खुल जायेगे ! फिर न जाने कितने-कितने सपने उनके पास होंगे…. और ..”
“गिन के बताओ कितने इतने लोग हैं जो समुद्र में भीतर जा कर ठिकाने तैयार करेंगे .. और बताओ कि कित्ता लोहा लगता है ..?” हेलीकाप्टर में उड़ते हुए राजन ने नजर भर कर चन्दन महल को देखा था. “कुछ भी नहीं ..!” उसने स्वयं से कहा था. “इस बार तो राजन स्वर्ग बसा कर रहेगा .. अपनी ..” ‘पारुल’ कहते-कहते राजन रुक गया था. “नहीं, नहीं ! लेकर रहूँगा पारुल को ..!” उसने फिर से अपने इरादे को दोहराया था.
“साब आ रहे है!” गप्पा का फोन था. “आप .. जायेंगी या फिर मै ..?” उसने पूछा था.
“..न .. नहीं !” पारुल उछल पड़ी थी. “म-म .. मै ही जाउंगी, गप्पा !” उसने आल्हादित होते हुए कहा था. “बस .. मै गई ..!” वह उठकर तैयार होने लगी थी.
सामने खड़ी पारुल को चन्दन बहुत देर तक देखता ही रहा था……!!
पारुल का चेहरा जर्द पीला पड़ गया था. लग रहा था – वह सालों से बीमार थी. उसका कोमल गात मुरझा गया था. उसकी उमंग मिटी -मिटी -सी लगी थी. लगा था – पारुल ने कोई संग्राम लड़ा है – और हारी है ! अवश्य ही उसकी अनुपस्थिति में कुछ हुआ है- जरुर…….!
“क्यों पीला पड़ गया है, चेहरा ..?” चन्दन ने पूछ ही लिया था.
“तुम्हारी याद में .. वियोग में .. बिछोह में ..” पारुल की आवाज आद्र थी. “मै .. मै .. अकेली .. और तुम्हारा .. ये प्रेम-नीड़, चन्दन महल…..!” पारुल चन्दन के बहुत समीप थी. “सच चन्दन .. एक पल की जुदाई .. बर्दाश्त नहीं होती…..!” उसने चन्दन से चिपक कर कहा था. “और एक – तुम हो…!” पारुल का उलाहना था. “जाने के बाद तो .. घर का रास्ता ही भूल जाते हो ….!”
“काम .. डार्लिंग ..!” चन्दन ने स्नेह पूर्वक कहा था. “मानोगी पारुल .. करोडो के वारे-न्यारे करके आ रहा हूँ…! बिलकुल एक नई लाइफ ला देनी है…! लोगों की जब नीद खुलेगी तो अपना सूरज चमक रहा होगा …!” चन्दन की आवाज में जीत की खनक थी. “तुम्हारा .. चन्दन ..”
“वो – तो मै .. जानती हूँ!” पारुल प्रसन्न थी.
चन्दन महल में आज पारुल जश्न माना रही थी – अपनी जीत का जश्न……!!
चन्दन भी तनिक हैरान तो हुआ था – लेकिन फिर पारुल के साथ मिलकर जश्न मनाने लगा था. विशेष प्रकार का खाना-पीना .. संगीत और सजावट आज पारुल के ही दिमाग की उपज थी. एक लम्बे अंतराल के बाद लौटे चन्दन के लिए यह एक सौभाग्य जैसा था. वह बेहद प्रसन्न था.
“बहुत मानती हो तुम मुझे ..!” चन्दन ने पारुल को बाँहों में लेकर कहा था.
“तुम्ही तो मेरे सर्वस्व हो च ..न्द..न……!!”
“मै तुम्हारे लिए और क्या कर सकता हूँ ..?” चन्दन पूछ रहा था.
“शादी ..!” पारुल ने प्रेम-पर्वक उत्तर दिया था. “बोलो .. कब ..?” उसने पूछ लिया था.
“जब .. हमारी मलिका कहें तब !” चन्दन का बेलाग उत्तर था.
और केतकी ने महसूसा था कि .. चन्दन महल की बत्तियां बुझ गई थीं ….! चन्दन आ गया था .. शायद ..!!
के सी कंपनी की टीम के साथ काम होने के बाद राजन फिर अकेला था !
“चल …! उसकी तलाश में चलते हैं …!!” राजन के मन ने कहा था. “क्या पता .. किस्मत कब रंग ले आये ….?” वह प्रसन्न हुआ था. “डोल आते हैं .. उसी बीच पर .. ! देख आते हैं .. चन्दन महल को…!!” उसने अपने आप को ताना मारा था.
“तू फिर आ गया ..?” अचानक राजन को किसी ने ललकारा था. उसने मुड कर देखा था. केतकी थी. “बोतल है ..?” केतकी ने पूछा था.
राजन कई पलों तक केतकी को घूरता रहा था. ‘बला’ है !’ उसने मन में कहा था .. ! अपनी जेब से बोतल खींच केतकी को पकड़ा दी थी.
“सुन ..!” बोतल लेकर केतकी प्रसन्न थी. “मेरी बात .. ध्यान से सुनना ..!” केतकी कह रही थी. “मेने .. उसे देख लिया है ..! परियों की तरह चलती है ..! क्या ग्रेस है, ब्बे ..!” हाथ नचा कर कहा था, केतकी ने. “वाह, वाह…! कैसा श्रृंगार करती है .. किस तरह परछाई की तरह .. डोलती है ..!”
“तेरे उसका क्या रहा ..?” चिढ़कर पूछा था राजन ने.
“एक दिन .. पके आम की तरह .. टपक के टूटेगा…!” बोतल में घूंट मारते हुए कहा था केतकी ने. “और मै .. उसे लप्प से लूट लूंगी ..!” वह हंस पड़ी थी. “लेकिन! देख हिजड़े…..!! तुझे ये औरत कभी नहीं मिलेगी …..!!! कभी नहीं .., शर्त लगा ले ..” उसने राजन के सामने हाथ फैला दिया था.
“चल, ब्बे .. साली… !!” राजन ने क्रोध में केतकी को गाली दी थी.
वह निराश और उदास होटल लौट आया था…..!!
क्रमशः-
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !

