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साईकल

Cycle

” Hello! हाँ!..सब बढ़िया! अरे! हम बात कर रहे थे!”।

” हाँ! हाँ! सब मजे में है.. कहो आज कैसे याद किया!”।

पूरे परिवार से बात करने के लिए.. आज बहुत दिनों के बाद फ़ोन लगाया था।

” वीडियो कॉल करें क्या..!!’

अब सारे ही परिवार से हाल-चाल पूछने वाली बात थी.. और थोड़ा गप्पें हाँकने का भी मन था.. तो सोचा.. वीडियो कॉल ही कर लेते हैं।

और वीडियो कॉल पर..

” और सुनाओ..!”।

” बाकी सब तो ठीक है.. टीना स्कूटर चलाना सीख गई है.. बहुत ही अच्छा चला लेती है.. भीड़-भाड़ से भी डर नहीं लगता”।

‘ भई! वाह! बहुत ही अच्छी ख़बर है.. चलो! .. अच्छा ही है! पर तुमको तो साईकल चलानी भी नहीं आयी कभी..हा! हा!”।

भानजी ने स्कूटर चलाना सीख लिया है.. और बढ़िया चला लेती है.. यह जानकर सभी ख़ुश हुए थे.. पर हमारे साईकल न चलाने पर टिप्पणी कस ही दी थी।

हमें बिल्कुल भी बुरा न लगा था.. आख़िर सच भी यही था.. कि लाख कोशिशों के बावजूद बिल्कुल भी साईकल चलानी नहीं आई थी।

नीले रंग की hero company की साईकल हुआ करती थी.. हमारे घर में..

शौक तो पैदा हुआ था.. साईकल चलाने का.. और सवेरे खाली सड़क पर भाई के संग जाने भी लगे थे.. तरीक़े भी सारे ही अपना डाले थे.. 

पर पता नहीं क्यों गिरने के डर से कभी साईकल ही चलानी नहीं आई थी।

हमारे लिए तो साईकल.. साईकल न होकर जैसे रॉकेट हो गया था.. साईकल को देखते ही मन कहने लगता था.. पता नहीं.. लोग इतना मुश्किल काम कैसे कर लेते हैं!

पर चलो! कोई बात नहीं! ख़ुशी है.. कि बिटिया हमारी तरह डरपोक नहीं निकली.. साईकल, स्कूटर तो क्या.. हर वाहन चलाने की काबलियत रखती है।

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