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Chunav !

अमरबेल !!

“हर बार आता हूँ , खाली हाथ चला जाता हूँ !” मैं गरजने लगा था . मुझे क्रोध चढ़ आया था . “जब देखो …तब चोथा नहीं है …! मिलाता ही नहीं है ….”

“जब भी आते हो ….खाली हाथ चले आते हो …!” मेरे सामने पदम् कान्त पटवारी खड़ा था. “भले आदमी ! कुछ तो लिहाज करो ….”

“क्यों …..? मुफ्त पट्टे उठ रहे हैं . सरकार …..” मैंने तुरप लगाईं थी .

“तो सरकार से ही जा कर ले आओ , पट्टा ….! यहाँ क्यों चले आते हो …?” पदम् कान्त पटवारी ने मुझे लताड़ा था . “करोंड़ों का पट्टा तो चाहिए ….देने के लिए कौड़ी भी नहीं ….!” व्यंय था , पटवारी का .

मुझे पता लगा था कि ….पदम् कान्त पटवारी ने रेट तो पहले ही खोल दिए थे . पट्टे तो कब के उठ चुके थे . लेने वाले ले गए थे ….और देने वाले दे गए थे ! मैं तो मूर्ख था जो ….चोथा से आस लगाए बैठा था  ….कि …..

तब ….हाँ, तभी …..उन पलों में ही मैंने अमरबेल को उगते देख लिया था ! मैंने देख लिया था  …कि …उस का आरंभ कहाँ है …! पर मुझे उस का अंत नज़र नहीं आया था ! और उस आरंभ का नाम मैंने दिया था – चुनाव !

मैं छोटा था . बच्चा था . पर उस आज़ादी के उत्सव में मैंने भी देश-भक्ति के गीत गाए थे . देश में चलते आज़ादी के पर्व का मैंने भी पूरे मनोयोग से साथ दिया था ! देवी-देवताओं के स्थान पर ..हमने नए नेताओं के नामों के नारे लगाए थे . हमने माना था कि ये नेता ….ये देश-भक्त ….ये हमारे बलिदानी और …बुजुर्ग अब हमें नई राहों पर लेकर चलेंगे …विकास की ओर …..! तभी समाज में एक विशेश प्रकार की सम्पन्नता आएगी …..बराबरी लौटेगी !

तभी तो हमने प्रजातंत्र को अपनाया था !!

चुनाव होने लगे थे . गाँव में सब से पहला चुनाव प्रधान का हुआ था . कौन बनेगा प्रधान – ये प्रश्न उछला था . एक चुहल का जन्म हुआ था …! पदम् कान्त पटवारी ने ही इस चुनाव को गंभीरता से लिया था . बाकी सब तो यों ही हँसते-हंसाते रहे थे ! उस ने चोथा का नाम प्रधान पद के लिए सामने रखा था . ठूंठ-गंवार था – चोथा ! किसान-मज़दूर था . रोज लाता था – रोज खाता था ! सात बच्चों की गुज़र जैसे-तैसे ही चलती थी . कुछ लोगों ने ….जब शंकाएं सामने रखीं थीं तो पदम् कान्त पटवारी ने दलील दी थी , “लेन-देन में ईमानदार है , चोथा ! नांक पर मक्खी नहीं बैठने देता ! ऐसा आदमी आज मिलता कहाँ है …?”

लोगों ने समझ लिया था कि …पदम् कान्त पटवारी प्रधान के रूप में चोथा का चुनाव करा कर …अपने लिए एक मुफ्त का मज़दूर मांग रहा था ! सरकार से मिलने वाले सात रूपए चोथा की पगार होनी थी . ..और काम उसने पदम् कान्त पटवारी का करना था ! और फिर चोथा …गाँव में सभी का मज़दूर ही तो था ….!!

निर्विरोध चुनाव हुआ था – चोथा का …!!

पदम् कान्त पटवारी की चांदी हो गई थी . उस ने अब चोथा का नया नाम – ‘जोधा सिंह प्रधान’ धरा था और उस के नाम की मुहर बनवा कर उसे सरकारी स्वरुप पहना दिया था ! लेकिन पदम् कान्त पटवारी भी ज्यादा दिन चल न पाया था . जैसे ही जोधा सिंह प्रधान का बड़ा बेटा -प्रकाश , बड़ा हुआ कि पदम् कान्त पीछे आ गया ! फिर विधायक के चुनावों में जोधा सिंह प्रधान की पत्नी – चमोला को टिकिट मिली ! बड़ी ही धूम-धाम से उस ने भी चुनाव जीता और लखनऊ आने-जाने लगी ! फिर ग्रामीण बैंक का चेयरमैन भी जोधा सिंह प्रधान ही बना . छोटे बेटे  ने भी वकालत छोड़ कर राजनीति में प्रवेश पा लिया . बेटी ने स्कूल …याने कि ‘कान्वेंट’ स्कूल खोला …और उसे कॉलेज तक ले आई . यूनिवर्सिटी का विचार तो चमोला का था …पर प्रकाश की बहू बाहर पढ़ कर आई थी …विदेश की हवा का प्रभाव था – ये – ‘योधा यूनिवर्सिटी’ और इस के लिए पिचहत्तर एकड़ ज़मीन का प्रबंध तो पदम् कान्त पटवारी पहले ही कर गए थे !

फिर तो जोधा सिंह प्रधान के देहावसान के बाद …बचत की पड़ी नौ एकड़ भूमि में उन के नाम का ‘योधा -उद्यान’ लगाया गया . और उन के ‘योधा-धाम’ स्मारक बनाने में तो ….सत्ताईस करोड़ का बज़ट पास हुआ ! जोधा सिंह प्रधान का -‘योधा’  के रूप में आना और पूरे द्रश्य पर छा जाना – एक आश्चर्य जैसा ही था ! ‘योधा’ के बारे में लोग लेख लिख रहे थे ….सैमिनारें हो रहीं थीं ….और देश-विदेश पूरा मिल कर उन्हें ‘महान’ बनाने में लगा था !

“यमुना की सफाई के लिए सैंतीस करोड़ मिला पैसा ….’योधा सफाई योजना’ के नाम पर खर्च हुआ है ?” पहली बार प्रश्न उठे थे . “हो क्या रहा है , विकास के नाम पर ….? केवल ‘योधा’ …और ‘योधा’ …….!! ये क्या बबाल है ….?”

“माया तेरे तीन नाम -परसी, परसा और परशुराम !” जनता के बीच से ही उत्तर आया था . ” विकास के काम पर …केवल तीन नाम – चोथा ,जोधा और ‘योधा-धाम’ !”

अमरबेल की तरह चोथा का परिवार पूरे देश-विदेश …प्रदेश -प्रांत पर छा गया था ! सत्ता के स्वामी थे ‘योधा’ परिवार के लोग ! चपरासी से लेकर चेयरमैन और ….विधायक से ले कर …चीफ मिनिस्टर तक – उन के अपने ही थे ! भावी प्रधान मंत्री के पद की दावेदारी भी वो कर बैठे थे !

और हम जैसे लोग – वो लोग जिन्होंने डिग्रियाँ लीं ….नौकरियां हासिल कीं ….अब पेन्सन लेकर घर लौट आए थे ! बच्चों के एडमिशन कराने की दौड़ में शामिल थे . बड़ी-बड़ी नौकरी पाने के लिए …छोटे-छोटे ‘दलित’ और ‘महा -दलित’ के प्रमाण-पत्र पाने के लिए ‘योधा’ परिवार के दरवाजों पर दस्तक दे रहे थे !

“आने दो अब की बार , चुनाव !” कुछ लोगों को कहते सुना था . “एक वोट नहीं देंगे ….” वो धमकी दे रहे थे .

लेकिन वो भी जानते थे कि ….आज किसी भी चुनाव में ….’योद्धाओं’ को हराना असंभव था ! हर पार्टी को पता था कि ….चुनाव जीतने के लिए ‘योद्धाओं’ के पैर पकड़ना ही एक मात्र रास्ता था ! वो वोट बैंक थे . सत्ता के स्वामी थे !!

अमरबेल ने अब पूरे आकाश को अपना कर लिया था . अब सूरज की रोशनी उस की थी . वह छाँह तो बाँट सकती थी – पर प्रकाश नहीं !

प्रजातंत्र आहत है ….! स्वतंत्रता शर्मिंदा है …और चुनावों के जिस्मों को ‘योद्धाओं’ के राहू-केतूओं ने टुकड़ों-टुकड़ों में काट कर फ़ेंक दिया है !!

लेकिन चुनाव ….तो फिर से आ रहे हैं ! लड़ेंगे ….., आप ….?”

…………………….

श्रेष्ठ साहित्य के लिए – मेजर कृपाल वर्मा साहित्य !!

 

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