गतांक से आगे :-
भाग -७२
“समझा करो , शब्बो….!” खली जोरों से बोला था . “नहीं हो सकतीं ….शादियाँ , शूटिंग से पहले …!!” उस ने एलान किया था . “डेट्स क्लेश कर रही हैं . ये लोग ….”
“माँ को बता दिया है हमने!” लब्बो शब्बो एक स्वर में बोली थीं. “सब कुछ तय है.” उनका कहना था. “अगर ..”
“माँ को फिर बता देंगे!” बलि का एलान था. “कौनसी क़यामत टूटेगी?” उसने कहा था. “भाई, . टक्कर न बनी तो – सब गुड गोबर हो जायेगा!” उसने हाथ झाडे थे.
“कोई बीच का रास्ता ले लो!” कविता ने बात साधने की गरज से कहा था.
“देयर इज नो शॉर्टकट माँ!” खली ने स्पष्ट कहा था.
“अरे भाई! एक बार शूटिंग हो जाये! फिनिश ..!!” बलि की राए थी. “बाय गॉड! एक .. एक माह का हनीमून ..!” वह हंसा था. “सूरज भाई भी ढूंढेंगे तो हम न मिलेंगे!” उसने जोरों से हँसते हुए कविता को देखा था.
“माँ ..?” प्रश्न स्वयं ही उठ खड़ा हुआ था.
“कहीं भी रह लुंगी रे!” कविता ने स्वयं ही सुझाव दिया था. “मेरा क्या है! गई उम्र!!” उसने हाथ नाच्काते हुए कहा था.
कविता ने झूंठ बोला था .. गलत कहा था! कहीं उसे गहरा आघात लगा था. उसे अहसास हुआ था के वो उड़ने वाले पंछियों के बीच आ बैठी थी. न जाने कौन जाने .. भविष्य में क्या बदा था ..
बुर्ज खलीफा मैं राजन पहली बार आ रहा था!
संभव का ऑफिस .. उसका कारोबार .. और उसका साम्राज्य देख कर राजन दंग रह गया था. उसे इतनी उमीद नहीं थी. वह तो संभव को कोई चालू पुर्जा मान कर चल रहा था. लेकिन आज तो उसके असमंजस का ठिकाना न था.
“ये है .. पूरा प्रोजेक्ट!” जापानी कंपनी के डायरेक्टर ने कंप्यूटर पर प्यार घर आबे का पूरा चित्र खोल दिया था. “समुद्र के भीतर .. तीन सौ किलोमीटर दूर .. हमारा ये प्यार घर आबे .. समुद्र की सतह पर तैरता – एक अजूबा होगा! यहाँ सब होगा – जो आदमी सोचेगा वह होगा!” वह हंसा था! “द मनी इज .. ?” वह रुका था.
“मनी इस नो बोदर मिस्टर सुजुकी!” संभव ने विहंस कर कहा था. “टाइम प्लान एक बार और बता दें तो .. ” उसने राजन की ओर देखा था.
“तीन साल तो मान कर चलते हैं!” सुजुकी का उत्तर था. “बाकि .. प्लस-माइनस तो होता ही रहता है ..!”
राजन अपना हिसाब उँगलियों पर गिन रहा था. उसे पूरा पूरा भरोसा था की प्रोजेक्ट स्टार्ट होने के एक साल बाद ही वह फिनान्सर्स का पैसा फेंक देगा. उसके बाद .. खेल उसका ही था!
“दिवाली के फ़ौरन बाद मै सीड मनी पे कर दूंगा!” राजन ने संभव को बताया था.
बात अंततः तै हो गई थी. राजन बेहद प्रसन्न था. उसे लगा था के आज उसने संभव के रूप में एक सच्चे मित्र और सहयोगी को पा लिया था!
“शादी में नहीं आ रहे ..?” संभव ने राजन से अप्रत्याशित प्रश्न पूछ लिया था.
राजन चौक कर खड़ा हो गया था. वह जनता था के पारुल शादी कर रही थी और उसी होटल में शादी हो रही थी जहाँ उनकी शादी हुई थी. लेकिन पारुल ने उसे निमंत्रण नहीं दिया था. वह जाना भी कहाँ चाहता था ..? लेकिन संभव का प्रश्न एक उल्हाने से कम न था.
“जा तो मै भी नहीं रहा!” संभव ही बोला था. “मुझे तो पारुल ने बुलाया ही नहीं है!” उसने मुस्कुराते हुए कहा था. “हो सकता है .. हाँ हाँ भाई हो सकता है ..”
और वो दोनों हंस पड़े थे ..!!
“मै तो आप के साथ चल रहा हूँ, शेख साहब!” हंस कर बता रहा था भोग. “मुझे बुलाया तो नहीं है .. पर .. पर सच में मै उस देवी के दर्शन करना चाहता हूँ .. और वो भी उस दुल्हन बनी .. महारानी काम कोटि के रूप में .. जिसे शायद देव लोक से लोग देखने आयेंगे!”
“ठीक कहते हो भोग!” शेख साहब ने नज़रें घुमा कर कहा था. “बाई गॉड! मेने अभी तक इतनी .. स्मार्ट .. सुन्दर और .. सुघड़ औरत नहीं देखि, भोग. पारुल जैसा चंचल नयनाभिराम किसी अप्सरा का भी न होगा! चलते चलते .. आदमी का डील चुरा ले जाती है!”
“दे बैठे क्या ..?” भोग ने मजाक किया था. “मेने आपका शीश महल इसी शर्त पर तैयार किया है .. की ..”
“महल तो बना दोगे भोग .. पर उसके लिए पारुल कौन लायेगा, मित्र ?”
दोनों खूब हँसते रहे थे. जोरों से हंस रहे थे.
चन्दन बोस और पारुल की शादी की चर्चा पुरे जगत में थी ..!!
प्रेस और मिडिया के लिए इससे अच्छा मसाला और मौका भी क्या था? जहाँ चन्दन बोस उनका अगुआ था – वहीँ पारुल उनके प्रेस का मन प्राण थी. पारुल के फोटो के साथ कोई भी कहानी आज बिकती थी और चन्दन बोस के नाम से कोई भी हेडलाइन्स बोल पड़ती थी. दोनों का सामूहिक महत्त्व मिडिया की समझ में समां गया था!
और लन्दन में .. पुरे लन्दन में .. चन्दन बोस और पारुल की शादी की चर्चा थी!
लन्दन आगंतुकों की भीड़ से नाक तक भर गया था. रहने खाने के लिए आश्रय पा लेना हर किसी के बस की बात नहीं थी. लोग .. इस शादी को देखना चाहते थे .. देखना चाहते थे दुल्हन बनी पारुल को और दूल्हा बने चन्दन बोस को!!
“२८ .. गुण कभी कभी .. किसी किसी के मिलते हैं!” हवन के बाद पंडित मंगल दुबे बताने लगे थे. लोग उनकी बात गौर से सुन रहे थे. “पुराने .. दो .. बिछुड़े प्रेमी हैं हैं .. आप लोग!” पंडित जी ने गुप्त सहस्य उजागर किया था. “लेकिन .. अंतर के बाद .. मने के इस शादी के बाद बिछोह नहीं है!” उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक कहा था और वर वधु को आशीर्वाद दिया था.
ये बात भीड़ में आग की तरह फैल गई थी ..!!
“थैंक्स गॉड!” एक लम्बी उच्छावास छोड़ते हुए चन्दन बोस ने कहा था.
पारुल हंस पड़ी थी. और कैमरे .. उस हंसी को समेटने के लिए टूट पड़े थे.
“भाभी जी!” अचानक पारुल को किसी पहचानी आवाज ने पुकारा था. मुड कर देखा था तो भोग था. “इसे तो बुलाया ही नहीं था?” पारुल ने स्वयं से प्रश्न पूछा था. “ये मेरे साथ आये हैं!” बगल से शेख बोल पड़ा था. “मै .. आपके चन्दन महल जैसा ही महल भोग से बनवा रहा हूँ.” उसने घबराते हुए कहा था.
“और .. भाभी जी .. मुझे चन्दन महल बनाने के इतने आर्डर मिले हैं .. की मै ..” पारुल ने चन्दन बोस को पुकार लिया था. वह जा रही थी. शेख और भोग दोनों उसे अपलक निहारते रहे थे. दोनों उससे डर गए थे!
“प्रेस के साथ हम दोनों का एक छोटा प्रोग्राम है!” चन्दन बता रहा था. “ये लोग चाहते हैं के हम – खास कर तुम .. विश्व महिला समाज के लिए कोई खास सन्देश जारी करो!” उसने बताया था. “घबराओ मत! मै साथ हूँगा.” उसने पारुल को संभाला था. “जो .. मन आये कह देना .. मै सब संभल लूँगा!” वह हंस पड़ा था. “यू अरे माय इंस्पिरेशन!” उसने पारुल की प्रसंशा की थी.
मित्रो! ध्यान से सुने .. गौर से सुने की अब महारानी काम-कोटि .. विश्व जगत की महिलाओं को क्या सन्देश देती हैं!!
“कम आउट .. ओपन उप .. अंड कमांड योर डेस्टिनी – योरसेल्फ!!” पारुल ने बड़े ही आत्मविश्वास के साथ ये शब्द कहे थे!
खूब तालियाँ बजीं थीं. खूब फोटो खींचे थे .. खूब खूब प्रसंशा हुई थी. पारुल का चेहरा आरक्त हो आया था. उसे लगा था के चन्दन के साथ शादी कर उसने विश्व विजय कर ली थी!
“आओ!” चन्दन ने उसे पुकारा था! “आओ मै तुम्हारा परिचय .. अपने एक खास मित्र से कराऊंगा! मान लो की .. ये मेरा मित्र आज किसी भी संसार के स्वामी से कम नहीं है! मेरे लिए .. जितना इस आदमी ने किया है .. उतना मेरे बाप ने भी नहीं किया!” हंसा था चन्दन बोस. “मिलो ..!” उसने गुप्त दरवाजे के पीछे खड़े व्यक्ति की ओर इशारा किया था. “ये हैं, मिस्टर संभव!” चन्दन ने बताया था. “इनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है!” उसने प्रशंशा की थी.
संभव का सामना होते ही पारुल का चेहरा बेनूर हो गया था ..!!
“मेरा सौभाग्य .. जो आपसे मेरी मुलाकात हो गई ..” चन्दन बोस ने संभव को कहते सुना था. वह चला गया था. वह जानता था की पारुल के हुस्न के जादू के सामने संभव जैसा जादूगर भी बेहोश होकर रहेगा. वह हंसा था. उसे अपनी उपलब्धि पर गर्व था.
“चूहा है .. तुम्हारा .. ये चन्दन!!” संभव बता रहा था. “पर मेरा तो चेला है! अच्छा है. इम्मंदार है!” वह रुका था. उसने पारुल को नई निगाहों से घूरा था. “बेजोड़ लग रही हो!” वह बोला था. पारुल शर्म से दुहरी हो गई थी. “बताना मत इसे!” संभव ने चेतावनी दी थी.
स्वप्न की तरह .. एक साये की तरह .. परछाई की तरह संभव फिर न जाने कहाँ लुप्त हो गया था!
अकेली खड़ी पारुल सोचती रह गई थी की शायद पंडित मंगल दुबे ने झूंठ बोला था ..!!
क्रमशः
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य

