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चतुर चितेरा – जनरल विपिन रावत

मलाल है हमें कि हमने अपने एक चतुर चितेरे को खो दिया है!

जनरल विपिन रावत सी डी एस ने भारतीय सेना के इतिहास में अपने हस्ताक्षर अलग तरह से दर्ज किये हैं! कारगिल युद्ध की हासिल बेजोड़ सफलता और शौर्य प्राप्ति से भी आगे जो कीर्तिमान उन्होंने अलग से हासिल किया वह बेजोड़ है!

मुझे याद है सन् 1971 की लड़ाई के अंत में हमने महसूस किया था कि हम जब आक्रमण करने जाते हैं तो भानु मति के कुनबे की तरह एकत्रित हो कर एक सामरिक टीम बनाते हैं और अजनबियों की तरह आ आ कर एक साथ मिलते हैं और दुश्मन से जाकर भिड़ जाते हैं। और फिर हमने ये भी महसूस किया था कि इसके परिणाम कभी कभी घातक होते हैं और हमें उनका खामियाजा चुकाना पड़ता है!

तनिक विचार को खोल कर बताता हूँ कि हमारी आक्रमण में जाती टीम में मुख्यतः पैदल सेना की जिम्मेदारी होती है कि वो आक्रमण की आगवानी करें, योजना बनाएं, नेता नियुक्त करें और बाकी का सामरिक प्रबंध भी करें! उनकी सहायता के लिए तोपखाने की टीम, इंजीनियर्स की टीम, सिगनल वालों के डिटैचमेंट, टैंकों की टुकड़ी और जरूरत के लिहाज से हवाई और नेवी के हिस्से शामिल होते हैं! ये सब अपनी अपनी फॉरमेशन से आकर पैदल सेना के चुने नेता और उसकी पलटन के हिस्से बन जाते हैं और आक्रमण के लिए एक मुकम्मल टीम का गठन हो जाता है!

लेकिन ये टीम आपसी पूर्व परिचय और पूर्ण सहयोग की मोहताज रहती है! इसी लिए कभी कभी इसके परिणाम भी निराशाजनक होते हैं।

अत: एक सामरिक सोच पैदा हुआ था कि क्यों न हम अपनी आक्रमणकारी टीमों को पूर्व नियोजित बनाएं और क्यों न हम अपने अपने दायित्व पहले से ही निश्चित कर लें ताकि युद्ध के समय कोई नयापन हमें न सताए और हम एक शुद्ध और सामूहिक इरादे के साथ रणभूमि में उतरें और दुश्मन के होश उड़ा दें!

पूर्व नियोजित टीम के फायदे और कायदे हम सब की समझ में आ गये थे और अब इस विचार को अपनी तीनों सेनाओं – आर्मी, नेवी और एअर फोर्स को बेचने का था।

कहते हैं – किसी भी पुराने विचार को भुलाना और किसी भी नए विचार को मिलाना सैनिकों के लिए महान कठिन काम होता है। अत: वर्षों से चली आई इस परम्परा को तोड़ना आसान नहीं होता।

इसी लिए हमारा ये नया विचार वर्षों तक हवा में झूलता रहा था और अपने जन्म के लिए मोहताज हुआ किसी महान जनरल की प्रतीक्षा में अड़ा ही रहा था।

हमारे श्रद्धेय और हमारे कामना पुरुष जनरल विपिन रावत सी डी एस ने इस विचार का आदर किया और इसे नाम दिया – थियेटर कमांड! उनकी सामर्थ्य, उनकी सोच और उनका सहज स्वभाव इस कठिन काम को कर पाया – यह एक युग बोध जैसा है जो हमें हमेशा याद रहेगा!

थियेटर कमांड का यह कॉन्सैप्ट भारतीय सेना के हाथों में थमा कर यों अचानक जनरल विपिन रावत हमसे विदा मांग लेंगे कभी सोचा भी न था!

उनके स्वर्गारोहण के लिए हम सब प्रार्थनीय हैं और उनके परिवार जनों के आभारी हैं जहां उनका जन्म हुआ!

हे भारत भूमि के महा नायक तुम्हें शत शत प्रणाम!

मेजर कृपाल वर्मा
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