गतांक से आगे :-
भाग – ५४
कलकत्ता मैं अजब-गजब की धूम मची थी !!
चन्दन बोस कलकत्ता का जाना माना नाम था .. कलकत्ता का ही था और अब एक बार फिर कलकत्ता वासिओं के सामने आ रहा था ! मुकाबले में थीं – नारी नश्वर, बिहार की समाज सेविका जो आज के जगत में अपना जोड़ न रखती थीं. कई बार उनकी झडप सीधी प्रधानमंत्री से हुई थी. लोगों ने खूब रंग लिया था. खूब लाल गुलाल उडा था और नारी नश्वर की निर्भीकता लोगों के लिए अनुकरणीय बन गई थी.
एक बात और खास थी. आज कलकत्ता अपने पुराने प्रेमी सावित्री और राजन को भूल एक नए नाम को जानने लगा था. पारुल अचानक ही कलकत्ता के लिए प्रासंगिक हो उठी थी. उसका समाज सेविका का नया किरदार बहुतों को भा गया था. दो चार केस जो पारुल की न्यूज़ एजेंसी ने कर दिखाए थे – समाज के लिए प्रेरणा स्रोत बन गए थे.
और अब .. जो पारुल ने एक अखाडा रोपा था .. एक दंगल कलकत्ता में ला खड़ा किया था .. लोगों में आनंद की लहर दौड़ गई थी. कलकत्ता के लोगों को इस तरह के अखाड़े अच्छे लगते थे ! हर अखबार .. और हर गली-कुचे में होते चन्दन बोस और नारी नश्वर के मुकाबले का जिक्र जारी था.
“चन्दन का क्या उठेगा ..?” लोग कह रहे थे. “इसे तो बोलने ही नहीं देगी !” लोगों का मत था. “चंडी है ..!” लोग बता रहे थे. “बिच्छु की तरह डंक मरती है .. सांप की तरह डंस लेती है !” उनका मत था.
लेकिन चन्दन के समर्थक किसी हालत में ये मानने के लिए तैयार न थे कि उसे नारी नश्वर जैसी लेखक समाज सेविका हरा देगी !
स्टूडियो भीड़ से खचाखच भरा था…!!
चन्दन बोस का जोरदार स्वागत हुआ था. कलकत्ता अपने होनहार पत्रकार चन्दन बोस को भूला कब था ! लेकिन जब नारी नश्वर आईं तो दृश्य दूसरा था ! नारी समाज ने अलग से नश्वर का स्वागत किया था ! नारी जगत की वो वीरांगना थीं. उनकी जय जयकार थी. बड़ा ही लोमहर्षक बन गया था- दृश्य …..!
दोनों अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठे एक दूसरे को तौल रहे थे !
“पुरुष नारी पर अत्याचार करता है ! क्यों ..?” गोली की तरह नारी नश्वर ने प्रश्न दागा था. “नारी .. माँ है, वह पत्नी है .. बहिन है .. बेटी है और नानी-दादी है ! फिर भी पुरुष ..?” नारी नश्वर के तेवर तन आये थे !
“मै प्रणाम करता हूँ, पूज्य नारी को ..!” चन्दन बोस ने मधुर मुस्कान के साथ कहा था. तालियाँ बजी थीं. हर्षध्वनि सुनाई दी थी. एक प्रशंशक लहर दौड़ गई थी. नारी नश्वर की भवें झुक आई थीं. “आपने ठीक फ़रमाया है कि .. नारी महान है .. नारी प्रकृति का रूप है .. और यह दृश्यमान जगत नारी की ही देन है !” चन्दन बोस बड़े ही सलीके से बोल रहे थे. “लेकिन पुरुष ..?” उन्होंने आंख उठाकर पुरे दृश्य को देखा था. “लेकिन .. पुरुष प्रकृति का ही एक प्रतिनिधि है ! नारी का पैदा किया ही रूप-स्वरुप है ! नारी से संस्कार लेकर ही आया .. एक देव दूत है .. जिसे अनागत का स्वागत करना होता है !
फिर तालियाँ बजी थीं …….!
“बहकाओ मत .. चन्दन !” नारी नश्वर गरजने लगी थीं. “मुझे अपने प्रश्नों के उत्तर .. आज स्पष्ट चाहिए ! तुम से लूंगी ये उत्तर .. आज ..”
“मै सत्यता से उत्तर दूंगा .. माननीय !” चन्दन बोस शांत थे. “मै एक ओर इशारा अवश्य करूँगा ! वक्त बदल रहा हे .. परिवर्तन आ रहा है .. और ये शायद आपके हर अनुत्तरित प्रश्न को हल कर दे !!”
फिर तालियाँ बजी थीं ….!!
“आप उत्तेजित न हों ! जीत आपकी होगी .. जीत नारी की होगी ! क्यों कि पुरुष तो उसका बच्चा है ! जगत नारी का है .. पुरुष का नहीं !” चन्दन बोस मुस्कुराए थे. “पुरुष तो उसका बंधुआ मजदूर है .. महामना !!”
कैसा परिदृश्य था ! कैसा उदार वातावरण था ! लोगों ने चन्दन बोस के गले में मालाएं डाली थीं. नारी समाज ने नारी नश्वर को बधाइयाँ दी थीं !
पारुल अतिरिक्त रूप से मुखातिब हुई थी, चन्दन बोस से ! विलक्षण व्यक्ति थे- चन्दन बोस – पारुल मान गई थी !
“चाय पीना न भूलें मित्रो, देवियों और सज्जनों !” घोषणा हुई थी. “आपका स्वागत होना शेष है ! आइये .. पधारिये ..!!” घोषणा होती रही थी.
आगंतुकों के लिए चाय का विशेष प्रबंध था …..!
चाय पीते-पीते लोग नारी और पुरुष के संबंधों की चर्चा में लीन थे. न जाने क्या था कि आज सभी लोग इन संबंधों को लेकर बहुत भावुक थे. समाज की बिगडती दशा के लिए कौन उत्तरदाई था – यह हर कोई तय करने में लगा था. दोष पुरुषों के गले में ही बांधा जा रहा था. नारी नश्वर का बस चलता तो आज ही सारे पुरुष समाज को फांसी चढ़ा देती !!
लेकिन लोगों ने उन्हें सुना था .. सम्मान दिया था और चन्दन बोस को सराहा था कि वो बड़ी ही चतुराई से नारी नश्वर के नाग-पाश से बच निकले थे. भीड़ कुंडली मार कर नारी नश्वर को सुन रही थी. चाय पीते पीते लोग उनके तीखे प्रश्न-प्रहारों को सुन कर आल्हादित हो रहे थे. जबकि चन्दन बोस शांत मुद्रा में सोफे पर बैठे चाय की चुस्कियां ले रहे थे. उनका दिमाग कहीं और था. उन्हें रुपे अखाड़े से जैसे कोई सरोकार ही न था. उनकी निगाहें कुछ और ही तलाश रही थीं.
“अरे, गप्पा ..!” चन्दन बोस चौंके थे. “हाँ, हाँ ! तुम ही तो हो !” उन्होंने कुछ याद करते हुए कहा था. “लेकिन .. ”
“आइये न !” गप्पा ने विनम्रता पूर्वक कहा था. “आपसे .. मिलने ..”
“चलो, चलो !” चन्दन बोस तुरंत उठ कर गप्पा के पीछे चले गए थे. किसी की आँख तक न हिली थी. नारी नश्वर ने भीड़ को अपने गिर्द समेट सा लिया था.
“स्वागत है ..!” पारुल ही बोली थी.
“आभारी हूँ .. महारानी ..” चन्दन बोस ने पारुल के हुस्न को गौर से निहारा था. चांदनी का-सा आभास हुआ था, उन्हें ! शायद पहली ही बार उन्होंने किसी ‘महारानी’ के दर्शन किये थे ! “कृतार्थ किया .. आपने बुलाकर ..!” मुस्कुराए थे चन्दन बोस. “कहाँ भिड़ा दिया ..!!” उन्होंने नारी नश्वर को कोसा था. “जान बची तो लाखों पाए !!” वह हँसे थे.
पारुल भी हंस पड़ी थी. दोनों खूब हँसे थे. नारी नश्वर उन दोनों के लिए एक अलग से अजूबा सिद्ध हुई थी.
“जवाब नहीं .. आपका !” पारुल ने पलकें झुका कर कहा था. लज्जा का भेजा निमंत्रण चन्दन बोस के पास सीधा पहुंचा था. “लोग अविभूत थे .. आपके दिए उत्तरों से ..” पारुल प्रशंशा कर रही थी. “मै तो डर ही रही थी कि कही .. आपकी बेइज्जती न कर बैठे .. ये ..”
“अरे, नहीं !” चहके थे चन्दन बोस. “इन बातों से लेना-देना क्या होता है !” उनका सपाट बयान था. “ये तो हमारे लिए रोज रोज की घटनाएँ हैं !” वह बता रहे थे. “हम लोगों का और काम ही क्या है ..?”
“ये कम बड़ा काम है, क्या ..?” पारुल ने चन्दन बोस की आँखों में देखा था. “मेरी जैसी तो नर्वस ही हो जाये !” पारुल मुस्कुराई थी. “सच! आपमें विलक्षण तेज है .. और ..”
“चाय पिलाओगी .. या मै .. जाऊं ..?” चन्दन बोस ने कटाक्ष किया था. “अरे, भाई ! दो मतलब की बाते हो जाएँ ..?” चन्दन बोस पारुल के बहुत समीप चले आये थे. “मै .. आपके लिए .. विशेष तौर पर ..”
“मुझे प्रसन्नता है !” पारुल ने आभार माना था. “उमीद से अलग पाया मैने !” वह कह रही थी. “आप ..”
अब वह दोनों एक दूसरे से सीधे आ मिले थे. दोनों रुके थे .. थमे थे .. उद्वेलित थे .. भावुक थे .. और अब दोनो आशिक थे ! पारुल की निगाहों ने झुककर जैसे सलाम किया था .. और चन्दन बोस की उँगलियाँ पारुल को छूने के लिए कांप उठी थीं !
गजब का रोमांच था .. श्रेष्ठ रोमांस था .. जिसका उन दोनों ने मन प्राण से स्वागत किया था !
“आ रहे हैं न, काम-कोटि ?” पारुल ने विनम्रता पूर्वक पूछा था.
“आपने बुलाया है .. तो आना ही होगा !” चन्दन बोस ने भी प्रेमिल आवाज में कहा था.
“वक्त लेकर आइयेगा …..!” पारुल ने आग्रह किया था .. इशारा किया था और उत्तर भी माँगा था.
“जो .. हुकुम ..!!” चन्दन बोस ने पारुल के सामने जुहार बजाते हुए स्वीकारा था.
एक अजस्र प्रसन्नता का पुल उन दोनों के बीच खड़ा रहा था !
लेकिन चन्दन बोस को जाना तो था ही …….!!
क्रमशः
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य

