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बेईमान

कविता

न सही ताजमहल ,शीश महल पर -
    मैने बनादिया है -राज महल,
   और ले बेटे के फलैट की चाबी-
    ये रही रानी तेरी बेटी की कोठी,
  और येे देख मेरे कमाल का धमाल-
न सही हम अरवपति - खरवपति ...पर
   राज -मेरी प्रियतमा , मेरी हमसफर,
    ये देख तेरे हुस्न पर खिलता ये हार,
  और ये ले ए सी, फ्रिज,कार,पी सी-
    साथ में नौकर,आया और सेवादार ।
न सही मधुशाला,मदिरालय पर हैं तो -
    तेरी ऑखों के मस्त प्याले,पिलादे ?
    पी मेरे प्रेम देवता,चल गंगा तीरे,
    ले उड़ती हूॅ-बिठा कर पंखोंं पर -
    उन स्वर्गो के समीप -जहॉ हम ....
न न , रूको राज ,ठहरो तनिक-सुनो ।
    कोई न जाने कौन मुझे -हमें -
    चीख-चीख कर ,रो रो कर -
    गा-गा कर ,नाम धर-धर कर -
    हमाारे काम गिन-गिन कर-हमें ,
गरिया रहा है और पुकार रहा है,हमें 
    बेईमान बता रहा है....? 
कृपाल 
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