गतांक से आगे :-
भाग – ५०
“कैरी डूब गया …!” राजन ने कहा है . उस के स्वर मैं एक दर्प उभर कर आया है . जैसे सावित्री पर हुई यह उस की पहली फतह हो – उसे लगता है. “मै .. मतलब कि मुझे .. सब सौंप रहा है.” राजन ने सूचना दी है.
सावित्री ने उडती निगाहों से राजन के चेहरे को पढ़ा है. एक लालची गीदड़ से आगे राजन उसे कुछ और नहीं लगा है. वह जानती है कि राजन घोर स्वार्थी और एक आत्मकेंद्रित आदमी है. अचानक ही उसकी आँखों के सामने कैरी आ खड़ा होता है. उसके हुस्न का दीवाना .. कैरी…..! उसे प्राप्त करने के लिए पागल हुआ कैरी .. उसपर तन-मन निछावर करने को तैयार कैरी और फिर राजन .. ? कैसी धूम मची थी सावित्री के सौन्दर्य की .. कितना छपा था – उनके बारे ..? कितनी प्रेम कहानियां इजाद हुई थीं ? आसमान भर गया था .. उनके प्रेम के उन्माद से ..!!
राजन ही छोटा पड़ गया – पारुल ने उन दोनों को देखकर अनुमान लगाया है. राजन – सावित्री के लायक था ही नहीं ! कैरी जैसे लोग .. राजन जैसे लोगों को नाप लेते हैं ! वर्ना .. तो ..
“मै तो पारुल को लेने आई थी ..?” सावित्री ने असम्पृक्त भाव से कहा है.
“ले जाओ !” राजन ने सहज भाव से कहा है. “मुझे तो लास वेगस में वक्त लगेगा.” उसने सूचना दी है. “सब तै करके ही लौटूंगा.”
वक्त गोल-गोल छल्ले बन उन तीनो के सामने नाचने लगता है .. मरने लगता है .. और बताने लगता है .. कि वो ही प्रबल है .. आदमी नहीं !
सब होता ही चला जा रहा है. काम-कोटि में होती हलचल और विचित्र लोक का निर्माण .. एक नई बात है. जुए का खेल – भारत के लिए कोई नई खोज नहीं है ! लेकिन तब आम आदमी की हिम्मत कम पड़ती थी और इसे समाज में एक ‘निषेध’ की तरह लिया जाता था. लेकिन अब काम-कोटि में इसे तयशुदा शर्तों पर खेला जायेगा ! आम आदमी खेलेगा .. हारेगा .. जीतेगा .. पायेगा .. खोएगा .. डूबेगा और उछलेगा ! एक अनोखा ही चलन – बिगड़ने का औजार जैसा था – जुआ !
पत्र-पत्रिकाओं में चर्चा जोरों से थी. काम-कोटि के चित्र छपे थे. प्रक्रति के सौन्दर्य की बड़ाई के पुल बंधे थे. और सबसे आगे – सभी अग्रिम मुख पृष्ठों पर .. छपी थी पारुल ! पारुल .. काम-कोटि की महारानी ..! उसके .. काम-कोटि को अंतर्राष्ट्रीय जुए का अड्डा बनाने के संकल्प , .. विचित्र लोक का सैलानियों के लिए खुला अनमोल – संसार और सब कुछ काम-कोटि में एक साथ सब के लिए हो जाना, एक बड़ी बात थी…!!
“आइये आप काम-कोटि में – आपके सकल मनोरथ पूरे होंगे !” एक नारे की तरह गूंजता मन्त्र था जो हर किसी को भाने लगा था !
अस्पताल के एकांत को बर्दाश्त करने की गरज से गप्पा ने पारुल के पास ढेर सारी पत्रिकाएं भेज दी थी. पारुल को भी अपना यह एकांत अच्छा लगा था. वह माँ बनने वाली थी. उसने इस घटना को एक गुप्त राज बना लिया था. बेटियों को भनक तक न थी कि वह माँ बनने वाली थी. और न ही इसकी चर्चा कहीं काम-कोटि में थी. जो चर्चा थी वह केवल विचित्र-लोक और जुआ घर के विमोचन की थी. इसका सारा श्रेय उसका था .. वह सर्वश्रेष्ट थी .. वह ..
“अरे,अरे ..!” पारुल तनिक चौंकी थी. उसके हाथ लगी, ‘न्यू वेगस’ पत्रिका में मुख पृष्ट पर राजन का चित्र छपा था ! बड़ा ही प्रभावशाली फोटो था ! पारुल कई पलों तक उस चित्र को देखती ही रही थी.
“हूँ ..!!” उसने एक लम्बी सांस छोड़ी थी. “बहुत गहराई में हैं, महाशय !” उसने राजन को लक्ष्य करके कहा था. “आदमी बहुत होशियार है !” पारुल का निर्णय था.
“भारत का भविष्य है ..!” फोटो के निचे लिखा था.
“गप्पा ने बताया क्यों नहीं इसके बारे ?” पारुल चिंतित थी.
पत्रिका के मध्य में राजन के बारे एक छोटा लेख भी छपा था. लिख था – व्यापार जगत को नई दिशा देने वाला एक जादूगर .. राजन – लास वेगस को कई बार करारी मात दे चुका है ! और अब लास वेगस जैसे भव्य संसार का निर्माण काम-कोटि में कर रहा है. नया संसार देगा .. आपको .. नए सपने बेचेगा – नए-नए खेल दिखाएगा और आप का मन मोह लेगा .. ये ..
पारुल ने पढना बंद कर दिया था. उसका माथा घूम गया था!
“किसने लिखा है, ये सब ?” पारुल ने फोन पर गप्पा से पूछा था.
“चन्दन बोस का आर्टिकल है, मेम !” गप्पा ने बताया था. “वो भी तो जादूगर हैं !!” गप्पा हंसी थी. “मेने आपके बारे भी ..” गप्पा बताती रही थी.
लेकिन पारुल की आँख अब चन्दन बोस पर जा टिकी थी !!
लास वेगस उठकर भारत आ रहा था – कुछ ऐसा प्रतीत होने लगा था ! भारत का नाम विश्व-व्यापार में बुलंदियां चड़ता ही चला जा रहा था !
“आपको आना चाहिए, सर!” गप्पा ने चन्दन बोस से आने को कहा था.
“इतनी सी छोटी घटना के लिए मुझे न्योता दे रही हो ..?” चन्दन बोस ने गप्पा को अपना स्थान याद दिलाया था. “जानती तो हो .. कि मै ..”
“छोटी घटना नहीं सर …! ये एक अंतर्राष्ट्रीय इवेंट है ! आने पर आप कुछ खोएंगे नहीं .. पर बहुत कुछ पा जायेंगे !” गप्पा ने चन्दन बोस को मनाने का प्रयत्न किया था. “आपके लास वेगस का अपना क्लाइंट कैरी भी ..” गप्पा ने सूचना दी थी.
“मै .. तुम्हारी .. राजमाता ..?” चन्दन बोस से रहा न गया था. उसने पारुल का जिक्र छेड़ ही दिया था. वह पारुल के बारे अब तक बहुत कुछ पढ़ चुका था. और जो पारुल के मोहक चित्र छपे थे उन्हें देख कर वह पुलकित हुआ था. न जाने कैसे पारुल उसकी कमजोरी बनने लगी थी. “क्या कुछ है, गप्पा ?” चन्दन बोस ने प्रश्न पूछा था.
“मिलेंगे तो देखते रह जायेंगे, सर !” गप्पा का चेहरा खिल उठा था. वह चन्दन बोस को खूब जानती थी. हुस्न के ग्राहक थे.
और चन्दन बोस का काम-कोटि आना तय हो गया था …..!
सावित्री तन मन से पारुल की सेवा में लगी थी. जो सावित्री की माँ के सपने थे – कि जब सावित्री माँ बनेगी तो क्या-क्या होगा, अब वही सब पारुल के लिए होता चला जा रहा था. सावित्री के पास हर काम और हर नाम की लिस्ट थी. सब कुछ क्रमबद्ध हो रहा था. पारुल प्रसन्न थी. पारुल सावित्री की आभारी थी.
“बस चलता तुम्हारा .. दीदी, तो मेरी प्रसव पीड़ा भी ..?”
“चाहती थी मै इस प्रसव पीड़ा को .. भोगना, पारुल !” सावित्री की आँखें नम हो आई थी. “पर अब .. प्रसन्न हूँ कि तुमने मुझे ये सौभाग्य तो दिया कि .. मै ..” सावित्री का गला रुंध गया था. “औरत .. औरत ही तब बनती है .. जब वह माँ बन जाती है !” सावित्री का मत था.
लेकिन पारुल के लिए माँ बनना जैसे कोई महत्त्व ही न रखता था……!!
“बहुत काम पड़ा है, दीदी !” पारुल शिकायत कर रही थी. “ये तुम्हारे नंदलाल न जाने कब तक मुझे .. अस्पताल में बिठा कर रखेंगे !” पारुल का उलाहना था. “यू नो .. दीदी……?” वह कुछ कहना चाहती थी.
“मै सब जानती हूँ, पारुल !” गंभीर स्वर में सावित्री बोली थी. “मुझे क्या पता नहीं है, मेरी बहन !” टीस आई थी सावित्री. “आदमी .. किस्मत के सामने हारता है ..”
“मै तो किस्मत को मानती नहीं, दीदी …..!”
“तुम बड़ी हो ..!” सावित्री ने बहस करना उचित न समझा था. “कृष्ण -कन्हयाँ की माँ .. देवकी हो ! जगत तुम्हे जानेगा .. पारुल ……!!”
“क्या पता, दीदी .. क्या होगा ..?” पारुल तनिक चिंतित थी. “पीड़ा होने लगी है !” उसने शिकायत की थी. “शायद .. ” वह चीख पड़ी थी.
सावित्री ने नवजात शिशु को आये वरदान की तरह संभाला था !
“बना बनाया राजन है !” पारुल ने देखते ही कहा था. “तुम्हारा सपना सच हुआ, दीदी !”
“मै तुम्हारी ऋणी रहूंगी पारुल…..!!” सावित्री गदगद हो आई थी. “मै तुम्हारा अहसान ..”
“आशीर्वाद ही मांगती रहूंगी .. आपसे ..” पारुल ने प्रसन्न हो कर कहा था और सावित्री को उसका कन्हयाँ सौंप दिया था.
फिर न जाने कैसे अस्पताल के उस एकांत में ही .. चन्दन बोस ने प्रवेश किया था …..!
“नई दुनिया ने कलकत्ता में .. तीन प्रताड़ित महिलाओं के केस खुलवाये हैं ! बधाई ..! प्रसन्नता है कि हमारा महिला जगत जागृत हो रहा है ! पुरुष प्रधान समाज की छीछालेदर हो रही है ! महिलाओं के साथ होते अत्याचारों के नगाड़े बज रहे हैं ! सुन रहे हैं .. न .. आप …..?” चन्दन बोस का लेख था. पारुल ने उसे स-शब्द पढ़ा था. ठहर-ठहर कर पढ़ा था. जब तक पढ़ा था .. तब तक चन्दन बोस का चेहरा उसके सामने न आ गया था…….!
पारुल ने एक पुत्र-रत्न को जन्म दिया था – पर उसे किसी मातृत्व की ममता ने छुआ तक न था ! लेकिन हाँ .. चन्दन बोस .. अब पारुल के लिए एक नई चुनौती के रूप में उतरा था.
संभव तो …. था .. ! पर न जाने कहाँ और कितनी दूर जा बैठा था – वह …….!!
क्रमशः- …..
मेजर कृपाल वर्मा साहित्य

