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आज कल की औलाद

Surinder Kaur Author Praneta
आज कल की औलाद  , औलाद  क्यू नही?
हर मकान  घर जैसा  आबाद  क्यू नही?


 वैसे तो रहते है हम एक ही छत के तले
पर होता दिनो तक,आपसी संवाद  क्यू नही?


सब कुछ होते हुए  भी  दुखी है हम सारे,
ऐ खुदा इन दुखो का,कोई अपवाद क्यू नही?


शायद  बसती है कुछ अच्छी रूहे अभी  जहा मे
नही  तो ये दुनिया पूरी  अभी,बर्बाद  क्यू नही?


Surinder kaur
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