” हा!…हा!..ही!..ही!…..हु!…हु!
” अरे!.. क्या है!”।
” कुछ नहीं! चल…..!!”।
पेट पकड़कर क्लास से स्टाफ़ रूम तक हमारे साथी हमें अपने साथ हँसते हुए. लेकर चल रहे थे।
कमाल तो यह था.. कि.. बात तो कोई थी ही नहीं..पर पता नहीं क्यों.. मित्रगणों की हँसी हमें ही देख-देख रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
” ही! ही!.. क्या हो गया यार!.. आख़िर ऐसा क्या दिख रहा है.. मेरे अंदर जो तुम लोग चुप होने का नाम ही नहीं ले रहे हो!..चलो! क्लास में!.. मैं तो जा रही!’।
” हा!…हा!…हा!.. नहीं! नहीं! चल.. एक चक्कर ground का भी मार कर आते हैं!”।
और ठहाके मारते हुए.. हमारा हाथ पकड़कर ख़ूब ज़ोर-ज़ोर से हँसते हुए.. ग्राउंड के चक्कर लगाने चक्कर शुरू कर दिए थे। मित्रों को यूँ हम पर ज़ोरों से हँसता देख.. हमें भी अब थोड़ी बहुत हँसी आनी शुरू हो गयी थी।
जैसे-तैसे पूरे स्कूल का चक्कर काट. हँसी में लोट-पोट होते हुए.. हम लोग अपनी क्लास में लौट आए थे।
जैसे ही हमारा क्लास में आना हुआ था.. और पीठ कर अपनी डेस्क पर बैठना हुआ था.. कि सारा क्लास रूम हमें देख ठहाकों से गूंज उठा था।
सबके ठहाकों में जो केवल हमारे कारण ही थे.. अब अपने ऊपर हँसने का कारण जानने के लिए.. हमनें भी चारों तरफ़ अपनी सीट से खड़े हो.. नज़र घुमाई थी।
और दूर बैठे हमारे एक क्लास के छात्र ने पेपर पर 420 बड़ा-बड़ा लिख और एक छोटे से गंजे चोर का मुहँ बनाकर हमारे स्वेटर की तरफ़ इशारा किया था।
समझदार को इशारा काफ़ी होता है..
फटाक से अपनी स्कूल यूनिफार्म का नेवी ब्लू कलर का स्वेटर उतार हमनें चेक किया था,” ओहो! तो ये बात थी!”।
हमारे पीछे वाले सीट पर बैठे हमारे प्यारे मित्रों ने यह प्यारी सी शरारत हमारे संग कर डाली थी.. हमारे स्वेटर पर 420 लिख.. और छोटे से गंजे चोर का सफ़ेद chalk से चित्र बनाया हुआ था।
सफ़ेद chalk से लिखे 420 और गंजे चोर के मुहँ का चित्र देख… अब हम भी ठहाका लगा ज़ोर से हँस दिये थे.. और हमारी भी हँसी न रुकी थी।