दाल-मखनी, वही साबुत उड़द, माँ की दाल या काली वाली दाल.. कोई भी नाम दे सकते हैं।
हम तो भई! सदा से ही साबुत उड़द कहते आए हैं। या फ़िर यूँ कह दिया करते थे..
” माँ! आज वो काली वाली दाल बना देना!”।
बहुत ही स्वादिस्ट दाल बनाती थीं.. माँ! यह काले उड़द।
वो आजकल वाली दाल-मखनी का procedure न follow करते हुए.. पता नहीं! कौन सी ट्रिक लगाया करतीं थीं.. कि बस! दाल तो दाल ही हुआ करती थी.. अँगुली चाटते रह जाया करते थे, हम!
बस! अदरक, लहसुन काट कर डाले.. फ़िर न जाने कौन सी जादू की छड़ी घुमाई.. न कोई मिक्सी, न ही कोई you-tube वाले वीडियो की कॉपी.. हाँ! मसाले और हरी-मिर्च वगरैह होतीं थीं.. पर ऐसा कोई ख़ास मसाले का नाम नहीं लिया करतीं थीं।
बस! अपने ही अंदाज़ में उस काली दाल का ऐसा स्वाद तैयार किया करतीं थीं.. जो आजकल वाले तरीकों से कहीं बेहतर था।
दाल-मखनी सभी की favourite दाल है! और मैं भी काफ़ी बढ़िया बनाना जानती हूँ। माँ वाले तरीके को अपने तक ही सीमित रखा.. और इस दाल को प्रोफेशनल level पर बनाने का सोचा।
कई सारे वीडियो देख.. बिल्कुल उसी तरह से तैयार की.. मैने यह दाल।
पर हुआ यह.. कि, कोई दाल में प्याज़ पसंद नहीं कर रहा था.. तो किसी को टमाटरों से तकलीफ़ थी।
अब घर में कोई चीज़ मेहनत से सामान डालकर बनाई जाए.. और मन से परिवार नहीं खाए, तो थोड़ा अच्छा सा नहीं लगता।
खैर! दाल-मखनी के वीडियो को एकतरफ रख.. मैने परिवार की पसंद को देखते हुए, अपनी recepie से दाल-मखनी तैयार की।
एक सबसे बड़ी कटोरी साबुत उड़द की दाल में एक सबसे छोटी कटोरी राजमा लेकर अच्छे से धो-कर कुक्कर में या किसी बर्तन में नमक डालकर भिगो कर रख दिया। राजमा लाल या सफ़ेद कोई भी ले लिए।
मैं ज़्यादातर सब्ज़ी सुबह ही तैयार कर लेती हूँ, इसलिए.. दाल और राजमा भी शाम को ही भिगो कर रख दिए थे।
सुबह कुक्कर खोल कर देखा, बढ़िया राजमे के साथ दाल फूल गयी थी। बस! हल्का सा पानी ऊपर था.. ज़्यादा नहीं! और मैने कुक्कर गैस पर चढ़ा दिया था।
लगभग दो-तीन प्रैशर लगाने के बाद मैने गैस बंद कर दिया था.. गैस को कम कर दाल पकाने का झंझट नहीं किया था।
प्रैशर ठंडा होने के बाद.. कुक्कर का ढक्कन, खोलने पर.. दाल और राजमा पक तो गए थे.. पर पूरी तरह से गले नहीं थे।
पानी भी दाल ने पूरा ही सोक लिया था।
आधा किलो फुल क्रीम दूध की थैली को मैने दाल में खोलकर अच्छे से चमचे से हिलाते हुए, कुक्कर गैस पर चढ़ा दिया था। लेकिन दूध और दाल को मैं लगातार चमचे से हिला रही थी। दरअसल, एकबार हुआ यूं.. कि, दूध डालकर मैने कुक्कर बंद कर, प्रैशर लगा दिया था.. जिससे सारा दूध फट गया था.. और मेरी दाल भी ख़राब ही गई थी।
तब से कान पकड़े, और दाल मखनी को खोलकर ही पकाने का सोचा।
दाल और दूध खदकने लगे थे.. और मैं लगातार दाल को चमचे से हिला रही थी.. दाल दूध में पकते हुए, अब फूल रही थी.. और दूध कम हो गया था।
मैने और थोड़ा दूध डालकर.. चमचे से दाल को हल्का-हल्का सा भींचते हुए, चमचे से चलाने की प्रक्रिया को जारी रखा था।
गैस को धीमी आँच पर कर.. दाल कहीं कुक्कर के तले में लग न जाए.. तड़के की तैयारी एकतरफ शुरू कर थी।
एक छोटा सा लहसुन छील कर बारीक काट लिया था.. बस! और कुछ नहीं! टमाटर, प्याज़ तो ज़्यादा पसन्द करते ही नहीं हैं.. बेशक ऊपर से दाल में काट लें।
इधर दाल और दूध उबलते हुए, रल-मिल गए थे। अब मैंने इसमें और ज़्यादा दूध न डालते हुए, क्योंकि ज़्यादा दूध-दूध अच्छा नहीं लगता.. एक 100gm वाली अमूल मक्खन की टिक्की डाल थी। हाँ! थोड़ा गाढ़ा पतले के हिसाब को देखते हुए, पानी का इस्तेमाल दूध की जगह किया था।
दाल में ज़्याका डालने के लिए.. थोड़े से तेल में जीरा और लहसुन भून कर डाल दिया था.. बारीक हरी मिर्च काटकर और साथ में थोड़ा अदरक कसकर.. लाल-मिर्च पाउडर, गर्म मसाला और सबसे ज़रूरी चिकन मसाला डालकर लगभग दाल को पंद्रह-बीस मिनट और उबाला था.. न दाल ज़्यादा गाढ़ी रखी थी.. और न ज़्यादा पतली ही कि थी। नमक-वमक तो स्वाद अनुसार डालना ही था।
चिकन मसाला दाल के स्वाद में चार चाँद लगा देता है। दाल का स्वाद बढ़कर चार गुना हो जाता है। एकदम होटल जैसा स्वाद आ जाता है.. चिकन मसाला डालकर।
कुछ खाद्य पदार्थ ऐसे होते हैं.. जो अपना ही एक ख़ुद का स्वाद लिए हुए होते हैं। उन्हें उनके स्वाद को उभारने के लिए.. हल्की-फुल्की चीज़ों की ही ज़रूरत पड़ती है।
इनमें से एक यह काली उड़द भी है।
अपना ही एक स्वाद लिए हुए है.. तभी दालों की मलिका कहा गया है.. काले उड़द को।
खैर! मेरी साधरण सी recepie से बनी दाल मखनी तैयार हो चुकी थी।
परोसते वक्त बारीक कटे प्याज़ों ने और भी रंगत बढ़ा दी थी.. प्यार से यह ज़्याकेदार दाल बनाकर कुलचों संग परिवार को परोसी थी.. मैने।
दाल भी बहुत बढ़िया बनी थी, और सबके मन को भी भा गई थी.. पर फ़िर माँ के हाथ की उस काली वाली दाल के आगे आज भी कहीं फ़ीकी ही पड़ गई थी।
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