“हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा मांगेंगे!

एक बाग नहीं, एक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे!”

लंदन के क्षितिज पर चढ़ कर यह गीत लहरी लगातार बज रही थी। लंदन में होते महा सम्मेलन के उपलक्ष में दुनिया को खुला संदेश जा रहा था कि इस महा रैली का उद्देश्य क्या था। और पूरे विश्व को याद दिलाया जा रहा था कि मध्यम वर्ग आज भी भूखा नंगा बैठा था, जबकि बाकी लोग माला-माल थे – खुशहाल थे। कितने ही विचारक आए, दार्शनिक पहुंचे, समाज सुधारकों ने दम लगाया, विश्व युद्ध हुए और नर संहारों की तो कोई गिनती नहीं। लेकिन मध्य वर्ग आज भी अपनी गरीबी के पास ही बैठा मिला।

“लूट हुई। जमकर लूटा लोगों ने। पागल पैसे वालों के घर के सामने सात-सात कारें खड़ी हैं, तो उद्योग पतियों ने देश के बाद देश अपने नाम लिख लिए हैं। ब्यूरोक्रेट के आठ-आठ बंगले तो नेताओं के पास अस्सी एकड़ जमीन के पट्टे। अब उनके पास मजदूर को देने के लिए तो कुछ बचा ही नहीं।”

कूड़ा क्रांति आई और दुनिया को शहरीकरण का दुर्भाग्यपूर्ण श्राप देकर लौट गई। प्रदूषण की मार सहता मध्यम वर्ग अब करे तो क्या करे?

स्टेज पर खड़ा गोल्डी पूरे विश्व से आए मध्यम वर्ग को उसकी विवशता की कहानी सुना रहा था।

“लेकिन मित्रों। इस बार हम धोखा नहीं खाएंगे।” गोल्डी के बाद लिंडा ने माइक संभाला था। “पैस वालों की रची इस भ्रामक व्यवस्था को समाप्त कर देंगे।” उसने उच्च स्वर में घोषणा की थी। तालियां बज उठी थीं। “अब मजदूर के पसीने की एक-एक बूंद का हम हिसाब लेंगे।” लिंडा कह रही थी। “शेयर मार्केट का ये शगूफा बंद करेंगे। फाइलों में रेंगते भ्रष्टाचार का अंत ला देंगे। नो दलाली .. एंड नो कमीशन।” लिंडा वायदा कर रही थी।

तालियों की गड़गड़ाहट से आसमान कांप उठा था।

“हम बहुध्रुवीय दुनिया का स्वागत करेंगे दोस्तों।” किट्टू कामरा ने ऐलान किया था। “बॉडर लैस वर्लड का सपना पूरा करेंगे। सब एक होकर रहेंगे। विविधता है तो रहेगी। एक ही राष्ट्र, एक ही भाषा या एक ही धर्म सर्वोपरी क्यों हो? मानव धर्म श्रेष्ठ है। हम सब इसी को मानेंगे।” उसने हाथ उठा कर आह्वान किया था।

मंजूर है। मंजूर है। मंजूर है। पब्लिक का उत्तर आया था।

“वसुधैव कुटंबकम का भारत का संदेश सही है।” उदय भास्कर बोल रहे थे। “सर्वे भवंतु सुखिन: सर्वे संतु निरामया का मंत्र हम मान कर चलेंगे।”

मंजूर है। मंजूर है। मंजूर है। फिर से लोगों ने हाथ उठा कर उदय भास्कर के संदेश का स्वागत किया था।

“कार्ल मार्क्स बकवास है।” जर्मनी से आए जोग ने ऐलान किया था। “हम नए संसार की संरचना करेंगे मित्रों। किसी एक राष्ट्र की दादागीरी अब नहीं चलेगी।” उसका ऐलान था।

“संसार की सेनाओं का सामूहिक इस्तैमाल करेंगे।” चीन से आए लो चिन अपने सुझाव बता रहे थे। “सैनिकों का वेतन दोगुना कर देंगे और जनरल्स को जागीरें देंगे।” उन्होंने एक महत्वपूर्ण घोषणा की थी।

लोग उछले थे, कूदे थे और – मंजूर है, मंजूर है के नारे लगाए थे। “सैनिक हम सबकी सुरक्षा करते हैं तो हम सब भी उन सब का वैलफेयर अवश्य देखेंगे।” बात तय हो गई थी।

“जालिम का नहीं राज आपका होगा मित्रों।” गोल्डी माइक पर लौटा था। “अब राज मध्यम वर्ग करेगा।” उसने घोषणा की थी। “19 अप्रैल की तारीख अब मई दिवस के स्थान पर मनाई जाएगी – ये जालिम का ऐलान है।”

मंजूर है। मंजूर है। भयंकर उत्साह के साथ भीड़ ने उत्तर दिया था।

एक विश्वव्यापी घटना फिर एक बार लंदन में घटी थी।

आंखें बंद किए जालिम रजिया सुल्तान द्वारा अंग्रेजी में रूपांतरित कि अपनी कहानी बड़े ही मनोयोग से सुन रहा था।

बीच-बीच में वह आंखें खोल अंग्रेजी बोलती रजिया सुल्तान को बड़े ही चाव से निहारता और उसके सुर्ख लाल होठों को अंग्रेजी के शब्दों की शक्ल देते ध्यान से देखता। उसका मन मुग्ध था और रजिया पर निछावर हुआ लगा था।

“समर कोट मुझे एक अजूबे की तरह देख रहा था।” जालिम ने रजिया को कहानी की अगली कड़ी सुनाना आरंभ किया था। “और मैं भी समर कोट के लोगों को नई निगाहों से घूर रहा था। मेरा जैसा लंबा चौड़ा आदमी समर कोट के लोगों ने शायद पहली बार देखा था।” जालिम तनिक सा मुसकुराया था। उसने निगाहों में भर कर रजिया सुल्तान को बड़े प्यार से देखा था।

“फिर ..?” रजिया सुल्तान ने जालिम की निगाहें चुरा कर प्रश्न किया था।

“फिर क्या – मैं दनदनाता फनफनाता समर कोट में घुसता ही चला गया था। मुझे न किसी ने रोका था न टोका था। और मैं अचानक ही लगे राज दरबार में जा घुसा था। हाहाहा। मुझे आया देख पूरा दरबार सकते में आ गया था। सोने के सिंहासन पर बैठे महा राजाधिराज गंधर्व सैन मुझे सामने खड़ा देख थर-थर कंपने लगे थे। सारे दरबारी मुझे आंखें फाड़े देख रहे थे।” रुका था जालिम। उसने रजिया सुल्तान की प्रतिक्रिया पढ़ी थी। वह हैरान थी।

“फिर ..?” रजिया से रहा न गया था तो पूछा था।

“महाराज गंधर्व सैन की महारानी मुझे देख कर बेहोश हो गई थी। हाहाहा।” जोरों से हंसा था जालिम। “लेकिन मैं अपने पूरे होशोहवास में था। मैंने लपक कर महाराजा गंधर्व सैन की गर्दन को गाही में भर लिया था और फिर वही बशीर हाट वाला दृश्य घटा था। मैंने लाश हुए गंधर्व सैन को दरबारियों के सामने फेंक चलाया था। सिंहासन पर बैठ मैंने सीधी घोषणा की थी – अब से हम महाराज हुए। अब हमारा हुक्म चलेगा।” कह कर जालिम ने रजिया सुल्तान के बिगड़ते चेहरे को देखा था। उसने अगला प्रश्न नहीं पूछा था तो जालिम ने स्वयं बताना आरंभ किया था। “कमाल देखो रजिया कि मेरे विरोध में एक भी आवाज न उठी थी। उस दिन ही मुझे यकीन हो गया था कि मैं शहंशाह पैदा हुआ था। हाहाहा।”

“फिर ..?” रजिया ने फिर से प्रश्न पूछा था।

“अब मैं समर कोट का शासक था और ग्यारह बच्चों की मां महारानी शैव्या का पति था।” जालिम ने रजिया सुल्तान पर नजर घुमाई थी। “शैव्या ने मेरे सामने समर्पण कर दिया था।”

“क्लैवर वूमन।” रजिया सुल्तान ने अपने मन में कहा था। “शी गॉट द लीज आफ लाइफ।” रजिया की सीधी समझ में आ गया था। “आज भी वह अपने ग्यारह बच्चों के साथ सुरक्षित थी।

“आज के लिए इतना ही।” जालिम मुसकुरा रहा था। “अगली कहानी हम दोनों साथ-साथ दिल्ली पहुंच कर लिखेंगे। हम दोनों – मैं शहंशाह जहांगीर द्वितीय और आप होंगी हमारी मलिका रजिया सुल्तान द्वितीय। हाहाहा। एक नया निकोर साम्राज्य रचेंगे बेगम।” जालिम ने कई पलों तक ठहर कर रजिया की आंखों को पढ़ा था।

लेकिन रजिया सुल्तान चुप ही बनी रही थी। उसने अपनी सहमति न दी थी।

“19 अप्रैल के बाद जालिम पूरे संसार का स्वामी होगा।” जालिम किसी भी तरह रजिया की रजामंदी चाहता था तो उसने अगली सूचना दी थी। “मेरे डर से अमेरिकन्स चूहों की तरह बिलों में घुस गए हैं। आज की दुनिया में मेरा कोई जोड़ नहीं है बेगम।” मुसकुराया था जालिम।

लेकिन रजिया सुल्तान की आंखों में एक गहरी निराशा झलक आई थी।

सच था कि जालिम आज भी अजेय था। आज भी सोफी के पास कोई तरकीब न थी कि वो जालिम को जिंदा पकड़ कर अमेरिका के हवाले कर दे।

“क्यों क्या हुआ?” रजिया सुल्तान को गमगीन हुआ देख जालिम ने पूछा था।

“मेरा तो अंश वंश सब डूब गया।” रजिया सुल्तान सुबक रही थी – रो रही थी।

“मेरा भी तो कोई नहीं है।” जालिम ने भी अपना सच सामने धरा था। “दोनों – हम दोनों दिल्ली चल कर एक नया घर संसार बसाएंगे, बेगम। मैं एक ऐसा साम्राज्य तुम्हारे नाम लिखूंगा मेरी रज्जो जो जमाना सदियों तक जानेगा। हाहाहा।” जालिम ने रजिया सुल्तान को मना ही लिया था।

Major Kripal Verma Retd.

मेजर कृपाल वर्मा रिटायर्ड

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